सुखद यात्रा

पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तीन दिवसीय श्रीलंका यात्रा सुखद प्रभाव वाली रही। उन्हें वहां सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाज़ा गया है। इसके साथ ही कई अहम क्षेत्रों में समझौते भी किए गए। श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके द्वारा स्पष्ट शब्दों में कहना कि श्रीलंका की धरती का भारत के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा, विशेष महत्व रखता है। श्रीलंका में 23 सितम्बर, 2024 को नई सरकार के अस्तित्व में आने के बाद यह आशंका अवश्य पैदा हुई थी कि उनकी सरकार विचारधारा के रूप में अलग राह पर चलते हुए भारत से दूरी बना कर रखेगी, परन्तु दोनों देशों के विगत लम्बे समय से चलते आ रहे संबंधों को देखते हुए श्रीलंका की नयी सरकार ने भारत के प्रति अपनी नीति में बदलाव अवश्य किया है। 
इसका एक कारण यह भी कहा जा सकता है कि श्रीलंका में वर्ष 2022 के आर्थिक संकट के समय भारत ने तुरंत उसकी सहायता की थी। उस समय भारत ने उसे 34 हज़ार 330 करोड़ रुपये अर्थात 4 बिलियन डॉलर का ऋण ही नहीं दिया था, अपितु व्यापक स्तर पर प्रत्येक तरह की खाद्य सामग्री भेज कर भी उसकी सहायता की थी। नि:संदेह चीन हिन्द महासागर में अपनी विस्तारवादी नीतियों पर क्रियान्वयन करने के लिए उत्सुक है। चीन ने श्रीलंका के साथ भी एक समझौते के तहत वहां के दक्षिणी शहर हंबनटोटा में तेल रिफाइनरी लगाई है, परन्तु दिसानायके की सरकार बनने पर उसने भारत तथा श्रीलंका के बीच पैदा हुई आशंकाओं को दूर कर दिया है। राष्ट्रपति के रूप में उनकी सबसे पहली भारत यात्रा ने ही मित्रता तथा सहयोग की भावना का प्रकटावा किया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सबसे पहले वहां की यात्रा करने का भी उनकी ओर से निमंत्रण दिया गया था। इस यात्रा के दौरान जो प्रभाव बना, उससे साफ ज़ाहिर होता है कि श्रीलंका भारत से ही प्राथमिकता के आधार पर सहयोग चाहता है। विशेष रूप में रक्षा के क्षेत्र में दोनों देशों में समझौता बहुत महत्व रखता है। इस समझौते में दोनों देशों की सेनाओं के युद्ध अभ्यास भी शामिल हैं, और इसके साथ ही दोनों की ओर से हथियारों के उत्पादन में भी सहयोग किया जाएगा। इसी क्रम में ही ऊर्जा समझौता किया गया है। श्रीलंका पैट्रोलियम पदार्थों संबंधी पूरी तरह अन्य देशों पर निर्भर है। अब ऊर्जा के क्षेत्र में श्रीलंका संयुक्त अरब अमीरात द्वारा आपसी सहयोग से वहां के बड़े शहर त्रिंकोमाली में ऊर्जा उत्पादन केन्द्र स्थापित करना जहां तीन देशों की बड़ी छलांग है, वहीं आगामी समय में भी इससे आपसी सहयोग और बढ़ने की सम्भावनाएं पैदा हुई हैं। हिन्द महासागर में श्रीलंका एक विशाल द्वीप है, जो सदियों से भारत के साथ प्रत्येक तरह की निकटता में रहा है। सदियों से ही वहां लाखों की संख्या में तमिल मूल के अल्पसंख्यक लोग भी रहते हैं। 
निकटवर्ती द्वीप होने के कारण भारत से ही बुद्ध धर्म के प्रचार के लिए वहां भिक्षु जाते रहे थे। वैसे वहां बढ़ते तमिलों की अपनी समस्याएं भी रही हैं। भारत की पूर्व सरकारें भी अपने-अपने ढंग से उनकी बेहतरी के लिए यत्नशील रही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी तमिल लोगों की समस्याओं का मुद्दा राष्ट्रपति दिसानायके के साथ साझा किया है, जिस संबंध में उन्हें वहां भारी समर्थन मिला है। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच समुद्र की साझ होने के कारण भारतीय मछुआरे श्रीलंका के पानी में चले जाते हैं, जिस कारण दोनों में तनाव वाली स्थिति भी बन जाती है। इस यात्रा के दौरान इस समस्या का समाधान करने के लिए भी कोई अच्छे ढंग-तरीके तलाश करने बारे विचार-विमर्श किया गया है। दोनों देशों में संस्कृति एवं परम्पराओं की भी बड़ी साझ बनी रही है, जिसे आपसी सहयोग से और मज़बूती मिलने की सम्भावना पैदा हुई है। यह समूचा सिलसिला दोनों देशों में एक नया अध्याय जोड़ने के समर्थ होगा। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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