हरियाणा विधानसभा को विपक्ष का नेता कब मिलेगा ?

हरियाणा में कांग्रेस पार्टी पिछले 6 महीनों से अभी तक अपना विधायक दल का नेता नहीं चुन पाई। इस दौरान हरियाणा विधानसभा के बजट सत्र सहित दो सत्र भी गुज़र चुके हैं। अब उम्मीद की जा रही है कि कांग्रेस के अहमदाबाद में हो रहे राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद कांग्रेस पार्टी इस बार पार्टी विधायक दल का नेता चुनने में सफल हो जाएगी और प्रदेश को नेता प्रतिपक्ष भी मिल जाएगा। अक्तूबर 2024 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 37 सीटें हासिल हुई थीं और कांग्रेस पार्टी मुख्य विपक्षी दल के तौर पर उभर कर सामने आई है। इन चुनावों में भाजपा को 48 सीटें मिलीं और इनेलो को 2 व निर्दलीय 3 विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस आलाकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा को टिकट वितरण में फ्री हैंड दिया था और सबसे ज्यादा भूपेंद्र हुड्डा के समर्थकों को ही टिकट मिले थे। इसी के चलते चुनाव जीतकर आए 37 विधायकों में से सबसे ज्यादा विधायक भूपेंद्र हुड्डा गुट के हैं। पिछले 6 महीने से कांग्रेस विधायक दल का नेता व नेता प्रतिपक्ष का नाम तय न होने से यह संकेत जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष बनाने के पक्ष में नही है।  हुड्डा गुट फिर से भूपेंद्र हुड्डा को विधायक दल का नेता और नेता प्रतिपक्ष बनाना चाहता है। इसी खींचतान में मामला अटका हुआ है और अभी तक किसी के नाम पर अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका। कांग्रेस में चल रही असमंजस की स्थिति से पार्टी को लगातार तन्ज़ भी सुनने पड़ रहे हैं और कांग्रेस की प्रदेश में जगहंसाई भी हो रही है।
11 साल से नहीं बना संगठन
नेता प्रतिपक्ष का चयन होने के बाद जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष का भी निर्णय होना है। इस समय हुड्डा समर्थक उदयभान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर हैं और पिछले विधानसभा चुनाव में वह प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए भी खुद अपना चुनाव हार गए थे। कांग्रेस को सिर्फ नेता प्रतिपक्ष व नया कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव ही नहीं करना बल्कि प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के संगठन का गठन भी करना है। हरियाणा में पिछले 11 सालाें से कांग्रेस पार्टी का कोई संगठन नहीं है। पार्टी की आपसी खींचतान के चलते न तो कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी का गठन हुआ और न ही जिला अध्यक्ष व हल्का अध्यक्षों का चयन किया जा सका। इतना ही नहीं, प्रदेश में कांग्रेस के जिला पदाधिकारियों व ब्लॉक पदाधिकारियों का चयन न होने से पार्टी की गतिविधियां लगभग ठप्प सी हुई पड़ी हैं और पार्टी में संगठन के अभाव में फैली सुस्ती से कांग्रेस पार्टी को प्रदेश विधानसभा के पिछले 3 चुनावों में लगातार हार झेलनी पड़ी है। 
कई बड़े नेता छोड़ गए कांग्रेस
हरियाणा कांग्रेस में फैली गुटबाजी के चलते पार्टी के कई वरिष्ठ नेता धीरे-धीरे कांग्रेस से किनारा कर गए और कुछ नेता पिछले कुछ समय से निष्क्रिय हो गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय बंसीलाल की पुत्रवधु किरण चौधरी व उनकी बेटी श्रुति चौधरी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गई थीं। इस समय किरण चौधरी भाजपा की ओर से राज्यसभा सांसद हैं और उनकी बेटी श्रुति चौधरी हरियाणा की नायब सैनी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। इसी तरह भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई व उनका परिवार भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गया था। प्रदेश के लोग पिछले 3 चुनावों में कांग्रेस की हार के लिए पार्टी की गुटबाजी को ही जिम्मेदार मानते हैं। उनका कहना है कि अगर कांग्रेस ने समय पर संगठन बनाया होता और पार्टी नेता सभी को साथ लेकर चुनाव में जाते तो प्रदेश की राजनीतिक तस्वीर इससे एकदम अलग हो सकती थी। अब अहमदाबाद अधिवेशन में हरियाणा को लेकर कांग्रेस पार्टी कोई चर्चा करेगी या नहीं और हरियाणा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस संगठन गठन की कार्यवाही हो पाएगी या नहीं, यह तो समय बताएगा लेकिन हरियाणावासी उम्मीद कर रहे हैं कि कांग्रेस शायद नींद से जागे और नेता प्रतिपक्ष के नाम का निर्णय लेने के साथ-साथ पार्टी संगठन खड़ा करने की दिशा में भी कोई ठोस कदम उठाए। 
 नहीं मिली सेवा संभाल की ज़िम्मेदारी
हरियाणा के लोगों ने करीब पौने तीन महीने पहले 19 जनवरी, 2025 को वोटों के जरिए पहली बार हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के 40 नए सदस्यों का चुनाव किया था। इनके अलावा हरियाणा कमेटी के लिए 9 सदस्य मनोनीत भी किए जाने थे। मनोनीत किए जाने वाले सदस्यों में अनुसूचित जाति, सामान्य वर्ग के सदस्य, महिलाएं व सिंह सभाओं के प्रतिनिधि शामिल होंगे। 40 सदस्यों का चुनाव होने के बाद अभी तक न तो इन सदस्यों को शपथ दिलाई गई है और न ही 9 सदस्य मनोनीत किए गए हैं। इसी के परिणाम-स्वरूप अभी तक हरियाणा कमेटी के नए अध्यक्ष, पदाधिकारियों, कार्यकारिणी के सदस्यों का चुनाव भी नहीं हो पाया है। अभी तक पुरानी नामज़द कमेटी के पदाधिकारी ही हरियाणा के गुरुद्वारों के प्रबंधन का काम देख रहे हैं। वैसे कहा जाता है कि जैसे विधानसभा व लोकसभा के चुनाव होते हैं और नए सदस्य चुनकर आते हैं तो उनके नतीजे आते ही पुरानी विधानसभा व लोकसभा भंग कर दी जाती है। नए सदस्यों को शपथ दिलवा कर उन्हें कामकाज चलाने की ज़िम्मेदारी दे दी जाती है। अब हरियाणा कमेटी के मामले में चाहे नए सदस्य चुनकर आ चुके हैं, इसके बावजूद पुरानी कमेटी अभी तक भंग नहीं की गई और नए चुने सदस्यों को शपथ दिलाकर उन्हें हरियाणा कमेटी के कामकाज चलाने की ज़िम्मेदारी भी नहीं मिल पाई है। 
उठने लगे सवाल
नए निर्वाचित सदस्यों के स्थान पर पुराने नामज़द सदस्यों द्वारा हरियाणा कमेटी का कामकाज चलाने को लेकर तरह-तरह के सवाल उठने शुरू हो गए हैं। कुछ सदस्यों ने यह भी कहना शुरू कर दिया है कि यह मामला जानबुझकर लटकाया जा रहा है। नए चुने गए सदस्यों से यही कहा जा रहा है कि अभी नए नियम बनाए जाने हैं और विभाग नए नियम बनाकर सरकार के पास भेजेगा और फिर नए नियम मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद लागू हो जाएंगे। इस बार हरियाणा कमेटी के लिए सबसे ज्यादा निर्दलीय सदस्य चुनकर आए हैं। उनका कहना है कि जब 2014 से नामजद कमेटी गुरुद्वारों की सेवा-संभाल का काम देख रही है तो नए चुने सदस्यों की कमेटी को कामकाज चलाने की ज़िम्मेदारी क्यों नही दी जा रही। उनका यह भी सवाल है कि अगर कामकाज चलाने के लिए अभी नियम नही बने हैं तो फिर नामजद कमेटी बिना नियमों के कैसे काम करती रही है, क्योंकि निर्वाचित नए सदस्यों को हरियाणा गुरुद्वारा कमेटी का कामकाज़ सौंपने में लगातार देरी हो रही है। इसको लेकर तरह-तरह के सवाल भी उठने लगे हैं और नियम बनाने को लेकर हो रही देरी भी सवालों के घेरे में है। हरियाणा गुरुद्वारा कमेटी के नए चुनकर आए 40 सदस्यों को कब शपथ दिलाई जाएगी और निर्वाचित सदस्य कब मनोनीत किए जाने वाले 9 सदस्यों का चयन करने के साथ-साथ हरियाणा कमेटी के लिए प्रधान व अन्य पदाधिकारियों का चयन करेंगे, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इस मामले में हो रही निरंतर देरी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

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