तापमान बढ़ने से पक्षियों का जीवन संकट में

पिछले चार-पांच वर्षों से मार्च से जून तक मौसम के गर्म रहने व मानसून पूर्व बारिश की गतिविधियों में कमी से देश के पक्षियों के जीवन चक्र पर संकट बढ़ता जा रहा है। अत्यधिक तापमान का पक्षियों के प्रजनन से लेकर स्वास्थ्य तक पर असर पड़ रहा है। विपरीत मौसम में पक्षियों के पलायन व इनकी संख्या में कमी से जैव-विविधता के असंतुलित होने व इको सिस्टम (परिस्थितिकी तंत्र) के बिगड़ने की आशंका वन्य जीवन के विशेषज्ञों ने ज़ाहिर की है। इस वर्ष भी मार्च से ही तापमान औसत से दो से पांच डिग्री सेल्सियस ऊपर रह रहा है। लगातार तीसरे वर्ष भी 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान वाले दिनों की संख्या कुछ जगहों को छोड़कर शेष हिस्सों में बढ़ी है।  पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार लगातार भीषण गर्मी की वजह से पक्षियों को लू और डिहाइड्रेशन होने के साथ उनकी प्रजनन की क्षमता कम या खत्म हो जाती है। घोंसलों में चूज़े भी मरने लगते हैं। 15 से 20 दिनों तक तापमान 40 से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच बने रहने पर कई पक्षियों के लिए इसे सहन कर पाना मुश्किल होता है। पिछले वर्ष हुई गणना में राज्य में 365 प्रकार के पक्षी पाए गए थे। पहले इसकी संख्या 400 के ऊपर थी। पक्षियों की गणना एक  क्लब, प्रोफेशनल पक्षी विशेषज्ञ व प्रोफेसर- छात्रों की कई टीमों ने मिलकर की थी। कड़ी धूप की वजह से पक्षियों के आहार पर भी संकट आ जाता है। ज़मीन पर पाए जाने वाले कीड़े-मकौड़े, टिड्डे के साथ पानी सूख जाने या उसके गर्म होने से जलीय जीव घोंघा, मेढ़क, केकड़े आदि मरने लगते हैं। लू व गर्मी से ऊर्जा  खत्म हो जाने से भोजन के लिए पक्षी ज्यादा दूर तक उड़ नहीं पाते है। सामान्यत: बस्तियों, बगीचे व पेड़ पौधे पर घोंसला बनाकर रहने वाले पक्षी 10 किलोमीटर तक आहार की तलाश में उड़कर जाते हैं, लेकिन इन दिनों दो-तीन किलोमीटर भी जाना इनके लिए मुश्किल होता है। नतीजन पक्षियों को कुपोषण से कमज़ोरी हो जाती है।
अधिक प्रभावित होने वाले पक्षियों में कामन मैना, गौरैया, सोनकंठी, कोयल, तोता, कबूतर, मोर, गिद्ध, बतख, बुलबुल, कौवा, उल्लू, लौह सारंग, जांघिल, पलाई कैच, टेरेक, सैंड पाइपर, स्पेन चिरैया, तीतर, बगुला, नीलकंठ, बाज, बगेरीए ईगल, हंस शामिल है। (अदिति)

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