एक दशक से भारत ने अपने हिस्से का पूरा पानी नहीं इस्तेमाल किया
साचे तो पवना भइया पवनै ते जलु होइ।।
जल से त्रिभवणु साजिया घटि घटि जोति समोइ।।
(सिरी रागु म. 1, अंग 19)
‘पानी ही जीवन है’, श्री गुरु नानक साहिब जी के इस कथन से आधुनिक विज्ञान भी सहमत है, कि हवा और पानी के बिना जीवन की उत्पत्ति ही संभव नहीं। नि:संदेह जीवन के लिए हवा और पानी से अधिक महत्व किसी भी अन्य चीज़ का नहीं हो सकता, पर हम हवा भी पलीत कर रहे हैं और पानी भी।
यू.एन.ओ. की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में कम से कम 300 स्थानों पर पानी के लिए संघर्ष होने का खतरा है। विश्वसनीय पत्रिका ‘न्यूयार्क’ ने अप्रैल 2013 के अंक में लिखा था कि दुनिया में किसी भी समय पानी के कारण लड़ाई छिड़ सकती है। चाहे भारत व पाकिस्तान में शुरू हुई झड़पों में युद्धविराम हो गया है। परन्तु जिस प्रकार की कटुता भारत द्वारा ‘सिंधु जल संधि’ को स्थगित कर देने के फैसले पर पैदा हो रही है, पता नहीं कब यह आग फिर भड़क जाए। वैसे भी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी साफ ऐलान कर चुके हैं कि आतंकवाद के विरुद्ध शुरू किया गया ऑपरेशन सिंदूर अभी भी जारी है।
गौरतलब है कि भारत को सिंधु जल संधि में अपनी ज़रूरतों को मुख्य रखते हुए कुछ बदलाव तो करने ही पड़ेंगे क्योंकि भारत के पास दुनिया में उपलब्ध मानवीय उपयोग हेतु (भाव पौटेबल) पानी सिर्फ 4 प्रतिशत ही है। वैसे तो भारत के पास धरती और भी कम सिर्फ 2.4 प्रतिशत ही है। फिर जिस प्रकार पानी की स्थिति में भारत पाकिस्तान को जाने वाले तीन दरियाओं पर बैठा है, उसी प्रकार कुछ दरियाओं पर चीन भारत से ऊपर बैठा है। चीन तो दरिया ब्रह्मपुत्र पर भी एक बड़ा बांध बना रहा है, जो भारत के लिए कई प्रकार के खतरे पैदा कर सकता है। नि:संदेह भारत भी पानी के कारण होने वाली लड़ाई के संभावित क्षेत्रों में शामिल है।
खैर, आज हमारे सामने प्रमुख पत्रकार कंचन वासुदेव की एक रिपोर्ट है जो पानी की धरती माने जाते पंजाब के रहबरों के नालायकी और लापरवाही की एक दर्दनाक दास्तान का प्रकटावा करती है। वैसे तो इन कालमों में भी 28 जून, 2019 और उससे पहले भी कई बार पंजाब के दरियाई पानी के उपयोग में की जा रही लापरवाही का ज़िक्र होता रहा है पर कंचन वासुदेव की रिपोर्ट पूरी तरह आंकड़ों पर आधारित है, जो साबित करती है कि हमारे राज्य के नेता बातचीत में तो पंजाब के पानी की रक्षा के दमगजे तो हांकते हैं, लेकिन क्रियात्मक रूप में पंजाब के पानी से केन्द्र द्वारा किए गये धक्के के बावजूद मिले पानी को भी उपयोग करने में असफल रहे हैं। इस रिपोर्ट में पिछले 10 साल में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान को भाखड़ा-ब्यास मैनेजमैंट बोर्ड से मिले पानी को उपयोग किये जाने का लेखा-जोखा किया गया है, जिस में साफ है कि पंजाब ने पिछले 10 सालों में राज्य को अलाट पानी का सिर्फ 64 से 91 प्रतिशत हिस्सा ही उपयोग किया है जबकि हरियाणा अपने हिस्से के पानी का 80 से 110 प्रतिशत तक पानी उपयोग करता रहा है। राजस्थान तो और भी ज्यादा पानी इस्तेमाल करता आ रहा है, उसने कभी भी 101 प्रतिशत से कम पानी नहीं इस्तेमाल किया, बल्कि वह अपने हिस्से से भी करीब तीसरा हिस्सा ज्यादा भाव 130 प्रतिशत तक पानी उपयोग करता रहा है। गौरतलब है कि इन 10 सालों में अकाली दल, भाजपा, कांग्रेस और ‘आप’ की ही सरकारें रही हैं, पर फिर भी इस बात के लिए सरकार की तारीफ करनी बनती है कि उसने नहरी पानी के उपयोग की ओर ध्यान ही नहीं दिया, बल्कि लोगों द्वारा कृषि हेतु इस्तेमाल कर लिये गये सूऐ, खाले और नहरों की ज़मीन के कब्ज़े भी छुड़ाये और नहरी पानी का उपयोग भी बढ़ाया है। चाहे अभी बहुत कुछ करना बाकी है। पंजाब के कैबिनेट मंत्री हरजोत सिंह बैंस ने कहा कि हमारे सत्ता में आने से पहले पंजाब सिर्फ 23 प्रतिशत नहरी पानी ही इस्तेमाल करता था। अब इसका इस्तेमान 60 प्रतिशत हो गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अफसोस है कि किसान अभी भी नहरी पानी के बदले ट्यूबवैल के पानी को अधिमान देते हैं।
वे क्यों न दें ट्यूबवैल के पानी को अधिमान। नहरी पानी की बारी का इंतजार करना पड़ता है, खुद या कर्मी को मौके पर जाकर नाके बनाने पड़ते हैं पर ट्यूबवैल का मुफ्त पानी आटो स्टार्ट से अपने आप चलता है, बंद हो जाता है। ‘माले मुफ्त दिले बेरहम’ शायद यही बड़ा कारण है कि हरियाणा और राजस्थान के किसान 100 प्रतिशत से भी अधिक नहरी पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं, क्योंकि वहां ट्यूबवैलों की बिजली मुफ्त नहीं है।
पंजाब में 15 लाख ट्यूबवैल हैं और लगभग 90 प्रतिशत आटो स्टार्ट पर हैं चाहे खेत को पानी की ज़रूरत हो चाहे न, या पानी की ज़रूरत कम हो पर रात को अचानक आई बिजली के साथ अपने-आप चले ट्यूबवैल पानी का नुकसान तो करते ही हैं। बेशक कुछ किसान मोटरों का बटन बंद भी करते हैं। यहां पंजाब सरकार को यह कहने से नहीं रुक सकते कि सिर्फ 20 दिनों के लिए रोज़ाना 4.5 क्यूसिक पानी बचाने के लिए उनकी लड़ाई चाहे न्यायोचित है पर जब तक वह पंजाब पुणर्गठन एक्ट की धाराओं 78, 79 और 80 हटाने पर पंजाब के पानी की मुकम्मल मलकीयत की लड़ाई नहीं लड़ते और पानी पर अधिकार स्थापित करके पानी की रायल्टी के लिए नहीं जुझते, उनकी यह लड़ाई वोट के लिए प्रचार और दिखावे की तरह ही लगेगी।
अगर फुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना,
हरएक दरिया हज़ारों साल का अ़फसाना लिखता है।
(बशीर बदर)
किया क्या जाये?
शायर अब्बास तबिस का एक शेअर है :
पानी आंख में भर कर लाया जा सकता है,
अब भी जलता शहर बचाया जा सकता है।
भाव यदि अब भी दिल में दर्द हो और आंखें नम हों तो पंजाब को अभी भी बचाया जा सकता है। इसके लिए अन्य प्रयत्नों से अलावा नहरी पानी के इस्तेमाल को आखिरी हद तक बढ़ाया जाये। बारिश के पानी की संभाल को यकीनी बनाया जाये। जिस किसान के खेत में सब्सिडी वाला ट्यूबवैल है, उसके लिए ज़रूरी हो कि वह अपने खेतों में पानी रिचार्ज करने का सिस्टम बनाये, जिसका तरीका विशेषज्ञों द्वारा बताया जाये। प्रत्येक घर में भी बारिश का पानी जमा करना या रिचार्ज करना ज़रूरी किया जाए। नये नक्शे तो इसके बिना पास ही व हों। उद्योगों के लिए पानी का इस्तेमाल, साफ करके दोबारा से इस्तेमाल करने संबंधी और अन्य ज़रूरी नियम सिर्फ सख्त ही न हों इसके लिए लापरवाही करने वाले अधिकारियों पर भी सख्त एक्शन ज़रूरी हो। पानी के बिना पंजाब रेगिस्तान बन गया तो आने वाली नसलें हमारे बारे में क्या सोचेंगी, यह हमें ज़रूर सोचना चाहिए। जहां नहरी पानी ज़रूरत से अधिक उपलब्ध है, वहां मुफ्त बिजली बंद की जाए और बाकी ट्यूबवैलों को 24 घंटे बिजली सप्लाई दी जानी चाहिए। लेकिन उन पर आटो स्टार्ट लगाने सख्ती से बंद करवाए जाएं। सबसे ज़रूरी है कि किसान की ज़मीन के हिसाब से सब्सिडी उनके खाते में जमा की जाये और इस्तेमाल पानी के बिजली की मोटर पर मीटर लगाकर यूनिट के हिसाब से बिल लिया जाये, हॉर्स पावर के हिसाब से नहीं। यदि कोई कम बिजली का उपयोग करता है तो उसके सब्सिडी के तौर पर दिये गये पैसों में से बचते पैसे उसके इनाम के तौर पर उसके पास ही रहने दें। गांवों में खड्डों पर कब्ज़ा की गई ज़मीन सख्ती के साथ खाली करवा कर पंचायती फंड में से प्राथमिकता के आधार पर नई तकनीक के साथ टोबे बनाये जाएं और यह पानी के पम्प लगाकर नहरी पानी की तरह ही खेतों की सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाये। शहरों, गांवों में फिल्टर करके पीने वाले पानी की सप्लाई के लिए नहरी पानी ही इस्तेमाल किया जाए।
युद्धविराम के बारे में चर्चा
ज़हर मीठा हो तो पीने में मज़ा आता है,
बात सच कहिये मगर यूं कि ह़क़ीकत न लगे।
(फुज़ैल ज़ाफरी)
युद्धविराम के बारे में एक बहुत सनसनीखेज़ चर्चा हो रही है। यह सब तो पता है कि पहले अमरीका के उप-राष्ट्रपति जे.डी. वैंस ने कहा था कि भारत-पाकिस्तान की लड़ाई में हमारा कोई लेना-देना नहीं। इस बीच भारत ने साफ करके एक नई लकीर खींच दी है कि यदि अब कोई आतंकी हमला हुआ तो सेना जवाब देगी। भारत ने इन हमलों में अपने सैनिकों की कुशलता और सामर्थ्य साबित की है। भारत ने इस मुश्किल घड़ी में अकेले सारा दबाव झेल कर अपनी मज़बूती भी दिखाई है परन्तु यहां चर्चा में चल रही एक सनसनीखेज कहानी का ज़िक्र ज़रूरी है, जिसकी कड़ियां इस प्रकार हैं कि भारत ने किराना हिल्ज़ के इलाके में स्थित पाकिस्तानी एयरबेस पर एक सुरंग के मुहाने पर हमला किया। वह सुरंग पाकिस्तानी परमाणु बमों की संभाल के लिए बनाई गई थी। चर्चा है कि सुरंग में सैकड़ों फुट नीचे कोई बम फटा, जिसके कारण इलाके में 4-0 स्तर का भूकम्प नोट किया गया। इस बात को बल इस बात से मिला कि पाकिस्तान के ‘मरी’ इलाके की एक हवाई अड्डे पर मिस्र का एक सैन्य जहाज़ जिसका फ्लाईट नम्बर ई.जी.वाई. 1916 बताया जाता है, उतरा। चर्चा है कि यह जहाज़ नील नदी में मिलते एक कैमिकल बोरोन को लेकर आया था। बोरोन वह पदार्थ है जो परमाणु रेडीएशन सोखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
फिर एक और कड़ी जुड़ी कि अमरीका का यू.एस.बी. 350 जहाज़, जो एक उड़ती साईंस लैबोरेटरी है, किराना हिल्ज़ पर चक्कर लगाकर गया, जिसने जांच की कि इलाके में कोई परमाणु रेडीएशन है या नहीं। इसके बाद अमरीका ने परमाणु लड़ाई रोकने के लिए भारत और पाकिस्तान दोनों को युद्धविराम के लिए प्रेरित किया, जबकि भारत यह कहता है कि दोनों देशों के बीच युद्धविराम ‘आपसी समझ’ के साथ हुआ है। वैसे तो हमें नहीं पता कि इन चर्चाओं में कोई सच्चाई है या नहीं, पर अमरीकी राष्ट्रपति का बयान इस ओर कुछ इशारे ज़रूर करता है, परन्तु भारतीय अधिकारी अमरीकी राष्ट्रपति के दावों को रद्द करते हैं। वे कहते हैं कि फैसला पाकिस्तान और भारत ने आपसी बातचीत में किया है। वे कहते हैं कि कोई परमाणु युद्ध का खतरा नहीं था और न ही व्यापार के बारे में कोई बात इस में की गई। वे किसी प्रकार की मध्यस्थता की सम्भावना को भी नकारते हैं और किसी संयुक्त स्थान पर पाकिस्तान के साथ बात करने से भी इन्कार करते हैं, परन्तु अमरीकी राष्ट्रपति बार-बार यह दावा कर रहे हैं। इसलिए ज़रूरी है कि भारत के प्रधानमंत्री खुद इस स्थिति को स्पष्ट करें, क्योंकि अमरीका जैसे देश के राष्ट्रपति के दावों का प्रभाव अधिकारियों के बयानों के साथ नहीं घटाया जा सकता।
-मो. 92168-60000