ज़हरीली शराब से मौतों का ज़िम्मेदार कौन ?
हम बड़े गर्व से कहते हैं कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत में है, लेकिन इस लोकतंत्र के अधिकतर नेता सत्ता के शिखरों तक पहुंचने के लिए उन बेचारों का कच्चे माल की तरह प्रयोग करते हैं जो गरीब हैं, जिन्हें पूरी रोटी नहीं मिलती, जिनके लिए तर्क यह दिया जाता है कि सारा दिन मेहनत करने के बाद थोड़ी सी शराब पीना इनकी मजबूरी है, और यह भी कहा जाता है कि जब इन्हें सस्ती शराब मिल जाती है तो ये दस बीस रुपये में अपनी थकान दूर करने का प्रयास करते हैं।
वैसे हमेशा ऐसा ही होता है, कोई घटना दुर्घटना हो जाए तो विपक्ष के सभी नेतागण ऐसे इकट्ठे होकर सरकार के विरुद्ध बोलते हैं जैसे उनसे बड़ा नेक धर्मराज युधिष्ठर कोई और नहीं हैं, और वर्तमान सरकार से बुरा कोई नहीं है। शराब के बिना एक दिन भी न जीने वाले घर के, परिवार के, मित्र मंडली के हर फंक्शन में देसी विदेशी शराब का आनंद लेने वाले ये नेता कह रहे हैं कि पंजाब सरकार का युद्ध नशों विरुद्ध एक ढोंग है, असफल प्रयास है क्योंकि शराब पीकर लोग मर रहे हैं। पंजाब में जो कुछ अब हुआ, सन् 2020 में कांग्रेस सरकार के समय भी तरनतारन में नकली शराब के कहर से मौतें हुई थीं। लोग उजड़े, वहीं पक्ष विपक्ष में बयानबाजी हो गई। अब वही कांग्रेस का बड़ा नेता जो अब भाजपाई हो गया है, इसके लिए वर्तमान सरकार को दोषी बता रहा है। दोषी तो वे सब नेता हैं जो चुनाव लड़ने के समय इन बेचारों को सस्ती, घटिया और कभी-कभी बढ़िया शराब पिलाकर वोट लेते हैं और फिर अधिकतर नेताओं की देखरेख में शराब बिकती है। समय की सरकारें तो अगर हर अच्छे काम का श्रेय लेती हैं तो ऐसी दुर्घटनाओं का उन्हें अपयश या बदनामी मिलना भी तय है।
अभी मजीठा ज़िला अमृतसर में नकली शराब पीने से 23 लोगों की मौत हो गई। समाचार यह है कि चार और लोग अभी गंभीर स्थिति में हैं। सरकारी तंत्र एक दम हरकत में आ जाता है। अब उन्हें तरनतारन के मंड क्षेत्र में एक लाख लीटर लाहन भी दिखाई दे गई। दिल्ली से मंगवाया जाने वाला लाहन या आनलाइन एथेनाल भी मिल गया। गरीब परिवारों के लिए सहानुभूति का राजनीतिक सागर भी उनके हृदय में उमड़ रहा है। सरकारें जैसे हमेशा करती हैं, वैसा उन्होंने कर दिया। हर परिवार को 10-10 लाख रुपये दिये। यह दस लाख रुपया सरकार ने अपनी गलती का जुर्माना भरा है या शराब पीने वालों को प्रोत्साहित किया है? संभवत: यह सरकार की मजबूरी रहती है। मैंने कल मौके पर एक ऐसे नेताजी को भड़क-भड़क कर बयान देते हुए देखा जो बढ़िया शराब पीने पिलाने के लिए प्रसिद्ध हैं, लोकप्रिय हैं। आंखों देखा कह रही हूं। मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के स्वागत के अवसर पर उनके परिसर में 90 प्रतिशत लोगों के हाथ में शराब थी। अब ऐसे नेता शराब के विरुद्ध लड़ाई कैसे लड़ेंगे। खुशी में शराब, मौत में शराब, चुनाव लड़ने के लिए शराब, चुनाव जीतने के बाद शराब, हारने के बाद गम भुलाने के लिए शराब और फिर मेरे इस प्रश्न का उत्तर सरकारों ने कभी नहीं दिया कि क्या शराब नशा है? अगर नशा है तो जो युद्ध नशों के विरुद्ध चलाया जा रहा है, उसमें केवल हेरोइन, स्मैक क्यों? शराब का नाम क्यों नहीं?
अपने देश के कुछ प्रांतों में शराबबंदी है। कुछ वर्ष पहले हरियाणा ने भी शराब मुक्त हरियाणा के बड़े-बड़े बोर्ड लगाए थे लेकिन हरियाणा में शराब बंद करने का बहुत से स्थानीय नेताओं ने ही विरोध किया। धीरे-धीरे शराब-मुक्त हरियाणा शराब-युक्त हो गया। आज की राजनीति निश्चित ही शराब के बिना चलती नहीं। पंजाब सरकार की तरह चार प्रांतों को छोड़कर देश की सभी सरकारों की आमदनी का बड़ा स्रोत शराब है। पंजाब सरकार ने तो इस बार बड़ी शान से यह घोषणा की थी कि इस बार 12000 करोड़ से ज्यादा आमदनी शराब से हो जाएगी।
उत्तराखंड के रुड़की में और उसके साथ लगते उत्तरप्रदेश के सहारनपुर में कुछ वर्ष पहले नकली शराब का भयानक रूप देखा गया। सैकड़ों लोग मारे गए। ऐसे में रोने के लिए महिलाएं बचती हैं और अनाथ बच्चे। बिहार में शराबबंदी है और गुजरात भी गांधी जी के डर से या उनके नाम से शराब से मुक्त है, पर कौन नहीं जानता कि इन प्रांतों में भी दो नंबर की शराब यूं कहिए, नकली शराब का काला धंधा चलता ही रहता है और लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। जहां-जहां शराब बंद है, क्या वहां की सरकारें शपथ लेकर कह सकती हैं कि उनके होटलों में, विवाह शादियों, बड़े-बड़े अमीर और अधिकारियों के घरों में शराब नहीं पहुंच रही? अफसोस तो यह है कि कोई भी सरकार शराब को बंद नहीं करना चाहती। अब बार-बार यह कहा जा रहा है कि लड़कियां भी शराब पीने लग गईं, यह चिंता का विषय है। अमृतसर मजीठा में यह लिखा गया कि बच्चे भी शराब पीने लगे। जहां घर में पुरुष, पिता, भाई शराब पिएंगे तो बच्चे और महिलाएं पीछे कहां रहेंगी। अब विवाह फंक्शनों व पार्टियों में महिलाओं के लिए अलग प्रकार की शराब खरीदी जा रही है। यह ऐसी आग है जो स्वयं देश के नेता लगाते हैं। एक पार्टी के नहीं, सभी। फिर आंसू बहाने के लिए और कभी दूसरों की आलोचना करने के लिए इकट्ठे हो जाते हैं। पंजाब में सत्ता पक्ष को छोड़कर सारा विपक्ष मगरमच्छ के आंसू बहा रहा है, लेकिन अगर उनका कोई नार्को टेस्ट करवा लिया जाए तो सबका झूठ सामने आ जाएगा। सरकारी तंत्र यह बता तो दे कि 12 घंटे में ही उनकी कार्यकुशलता कैसे बढ़ गई। दस अपराधी गिरफ्तार हो गए। मिथेनाल लाने वाले पकड़े गए। मंड क्षेत्र से लाहन भी दिखाई देने लग गई और बेचारे कुछ कर्मचारियों को निलंबित करके अपनी पीठ थपथपाने का घटिया प्रयास भी कर लिया गया।
अब सरकारें और कुछ नहीं कर सकतीं, मृतकों के परिवारों के आंसू पोंछने के लिए या राजनीतिक आवश्यकता पूरी करने के लिए लाखों रुपये पीड़ितों को दे देती हैं। कोई नहीं जानता, उससे परिवार को कितना सहारा मिलेगा या रुपये फिर इधर-उधर नहीं उड़ जाएंगे। ज्यादा अच्छा यह रहे कि जो महिलाएं विधवा हुईं, जो बच्चे अनाथ हुए और जो इन परिवार के बुजुर्ग हैं सरकार उनकी पेंशन लगवा दे। उससे वे पूरा जीवन तो काट ही सकते हैं। इस दस लाख पर कितनी टेढ़ी लालची निगाहें पड़ेंगी, कोई नहीं जानता। उससे भी अच्छा यह है कि शराब न पीने की प्रेरणा दी जाए, पर याद रखिए, यह काम ऊपर से शुरू होना चाहिए अर्थात बड़े नेताओं, सरकारों और अधिकारियों से। जहां राज्य के मुखिया कहीं शराब पीने में एक-दूसरे को पीछे छोड़ते हैं, वहां आम जन नशों में फंसा रहेगा, मुक्त नहीं होगा। गरीबी इसमें आग में घी का काम करेगी।