पानी के मामले पर संकट में फंसा पाकिस्तान
22 अप्रैल को पहलगाम में घटित आतंकवादी घटना, जिसमें 26 भारतीय मारे गए थे, के बाद भारत और पाकिस्तान में कड़ा टकराव शुरू हुआ, जिसकी प्रतिक्रिया-स्वरूप भारत द्वारा सिंधु जल समझौते को रद्द करने का फैसला किया गया। यह ऐसा कदम था, जिसके संबंध में पाकिस्तान को कदाचित भी उम्मीद नहीं थी। दोनों देशों में पानी के बटवारे को लेकर 65 वर्ष पहले अभिप्राय 1960 में यह समझौता हुआ था, जिसके तहत भारत में बहती 6 नदियों से पाकिस्तान को व्यापक स्तर पर पानी दिया गया था। सिंधु नदी प्रबन्ध में 6 नदियां आती हैं, जिनमें ब्यास, रावी, सतलुज, सिंध, चिनाब और जेहलम आदि शामिल हैं। इनमें तीन पश्चिमी नदियां सिंध, चिनाब और जेहलम का 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को मिलता है। यह संधि विश्व बैंक द्वारा हुई थी, जिसका भारत लगातार पूरी तरह पालन करता रहा है। चाहे ये नदियां भारत में बहती हैं परन्तु पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय पाकिस्तान के साथ साझ बनाए रखने के लिए ही भारत की ओर से यह कदम उठाया गया था। पिछले 6 दशकों में दोनों देशों के बीच तीन बड़े युद्ध हो चुके हैं, परन्तु यह जल संधि लगातार जारी रही है।
पहलगाम के घटनाक्रम के बाद भारत द्वारा लिए गए इस कड़े फैसले से एक बार तो पाकिस्तान हक्का-बक्का रह गया है। अब पाकिस्तान ने भारत के जल शक्ति मंत्रालय की ओर से इस समझौते को खत्म करने संबंधी भेजे गए औपचारिक पत्र का जवाब देते हुए, लिखित रूप से कहा है कि इस पुरानी संधि को जारी रखा जाए, क्योंकि इससे वहां पानी का बड़ा संकट पैदा हो जाएगा। भारत ने इसके साथ ही पानी को रोकना भी शुरू कर दिया है और इन नदियों से संबंधित विस्तार भी भेजना बंद कर दिया है। हम यह मानते हैं कि भारत द्वारा उठाए गए ऐसे कदम से पाकिस्तान के हौसले पस्त हो जाएंगे। इस समय उसकी जनसंख्या लगभग 22 करोड़ है। विश्व में यह 5वां सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है। पाकिस्तान के कुल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में कृषि की हिस्सेदारी लगभग 23 प्रतिशत है। देश के 40 प्रतिशत लोग कृषि के धंधे से जुड़े हुए हैं। अभी भी पाकिस्तान की ज्यादातर जनसंख्या गांवों में रहती है, जिनकी आजीविका कृषि और पशु धन है। यहां ब़ागबानी के अतिरिक्त कपास, गन्ना, गेहूं, चावल और मक्की की कृषि होती है। कपास से ही पाकिस्तान में प्रत्येक तरह का कपड़ा बनता है, जिसका निर्यात यह विश्व भर में करता है। कृषि से संबंधित वस्तुओं का ही यहां से 75 प्रतिशत निर्यात विश्व भर में किया जाता है। छोटे किसानों की अधिक निर्भरता पशु धन पर ही है, जिसका सीधा संबंध चारे के साथ है।
पाकिस्तान में कृषि अधीन क्षेत्रफल लगभग 2.3 करोड़ हैक्टेयर है, जिसकी 44 प्रतिशत सिंचाई नदियों और ट्यूबवैलों से होती है। कृषि से संबंधित ज्यादातर क्षेत्रफल पाकिस्तानी पंजाब और सिंध में है। वैसे यहां पर भी भारत की तरह कृषि के कार्यों में पानी का भारी मात्रा में दुरुपयोग किया जाता है। यहां ज़मीनी सुधार न होने के कारण कृषि वाली ज़मीन का विभाजन भी बेहद असंतुलित है। उदाहरणतया यहां दो प्रतिशत किसान ही 45 प्रतिशत कृषि ज़मीनों के मालिक हैं। छोटा ज़मींदार, जो लगभग 90 प्रतिशत है, के पास तो अढ़ाई एकड़ ज़मीन ही प्रति परिवार है। ज्यादातर कृषि पर निर्भर इस देश को यदि पानी की कमी का सामना करना पड़ता है तो इससे इसकी प्रत्येक पक्ष से आर्थिकता डगमगा जाएगी। इसलिए ही पाकिस्तान के जल स्रोतों के सचिव सैयद अली मुतर्जा ने भारत के अपने समकक्ष को यह पत्र लिखा है। यह भी वर्णनीय है कि भारत के इस फैसले के बाद इस संधि के प्रति विश्व बैंक ने भी किनारा कर लिया है। अब वास्तविकता को समझने के बाद पाकिस्तान ने इस संधि को लेकर भारत के साथ बातचीत करने की इच्छा प्रकट की है और इस पर कई वर्ष पहले भारत द्वारा इस संधि के प्रति व्यक्त की गई आपत्तियों पर भी चर्चा करने के लिए सहमति प्रकट की है और कहा है कि हमारी सरकार तत्परता से इस मुद्दे पर भी विचार करना चाहती है।
मुतर्जा ने यह भी कहा है कि इस जल संधि के अधीन मिलने वाले पानी पर लाखों लोगों की निर्भरता है। इस फैसले से पहले भी दोनों देशों में चर्चा होती रही है। जनवरी, 2023 में और बाद में सितम्बर, 2024 को भारत ने पाकिस्तान को दो बार सिंधु जल संधि पर बातचीत करने के लिए सन्देश भेजा था परन्तु पाकिस्तान ने उस समय इसका कोई जवाब नहीं दिया था। अब पाकिस्तान ने यह अपील तब की है, जब भारत ने चिनाब नदी पर बगलीहार और सलाल पन-योजनाओं से गार निकालने और उसे बहा देने का काम शुरू कर दिया है, ताकि बाद में पानी को जमा किया जा सके। यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि पहले ही सूखे के संकट का सामना कर रहा पाकिस्तान बड़ी परेशानी में फंस गया है। आगामी समय में दोनों देशों के मध्य इस मुद्दे पर पैदा हुए तनाव को लेकर पाकिस्तान क्या रवैया धारण करेगा, यह देखने वाली बात होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द