बांग्लादेश में अवामी लीग पर प्रतिबंध का भारत पर प्रभाव

पिछले सप्ताह डॉ. मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार द्वारा अवामी लीग की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने से देश में सक्रिय राजनीतिक दलों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि अगले साल की शुरुआत में राष्ट्रीय चुनाव होने वाले हैं। इसी तरह यह निर्णय भारत के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अब उसके पड़ोसी देश में कोई भी मित्र राजनीतिक दल सक्रिय नहीं है। यूनुस सरकार की इस कार्रवाई के व्यापक प्रभाव पर भारतीय मीडिया का अभी ध्यान नहीं गया है, क्योंकि पिछले सप्ताह भारत-पाकिस्तान संघर्ष में इसकी पूरी तरह से संलिप्तता रही है, लेकिन दक्षिण एशियाई मामलों के भारतीय विशेषज्ञ इस बात पर गौर कर रहे हैं कि इस क्षेत्र में सबसे शक्तिशाली राष्ट्र होने के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार अब दक्षिण एशियाई देशों में पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गई है।
अवामी लीग (एएल) शेख मुजीबुर रहमान द्वारा स्थापित राजनीतिक पार्टी है और इस पार्टी ने 1971 में बांग्लादेश के गठन के लिए मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया था। एएल ने 2024 तक बांग्लादेश पर अधिकांश वर्षों तक शासन किया, सिवा सेना शासन के वर्षों और खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बीएनपी के दो कार्यकालों को छोड़कर। वर्तमान में मुख्य विपक्षी दल बीएनपी है जिसकी अध्यक्ष हैं खालिद जिया। शेख हसीना ने 2009 से लगातार पंद्रह वर्षों तक शासन किया, लेकिन 5 अगस्त, 2024 को उन्हें अवामी लीग सरकार के प्रधान मंत्री के रूप में अपना पद छोड़ना पड़ा और वे भारत चली आयीं। वे अभी भी भारत में रह रही हैं और कभी-कभी वीडियो के माध्यम से बांग्लादेश में अपने एएल समर्थकों को संबोधित करती हैं।
पिछले सप्ताह ढाका में छात्रों की नयी पार्टी नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) ने 72 घंटे की विशाल रैली निकाली, जिसमें सरकार से अवामी लीग की सभी गतिविधियों पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की मांग की गयी। एनसीपी एकमात्र पार्टी है, जिसने अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाने को अपना मुख्य कार्यक्रम बनाया है। पहले चर्चा थी कि अवामी लीग को सीमित रूप में काम करने दिया जायेगा, जिसमें उन नेताओं और कार्यकर्ताओं को शामिल नहीं किया जायेगा, जिन पर हत्या और यातना देने के आरोप हैं। बीएनपी पहले कुछ दिशा-निर्देशों के तहत एएल को चुनाव में भाग लेने देने के पक्ष में थी, लेकिन अब सरकार के आधिकारिक प्रतिबंध के बाद बीएनपी ने भी प्रतिबंध को राष्ट्रीय मांग बताते हुए उसे अपने समर्थन की घोषणा की है।
परिणामस्वरूप आने वाले चुनावों में मुकाबला दो मुख्य पार्टियों—बीएनपीए जिसका नेतृत्व पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया कर रही हैं और एनसीपी जिसका नेतृत्व छात्रों द्वारा किया जा रहा है, जिन्होंने पिछले साल अगस्त में आरक्षण विरोधी आंदोलन के जरिये शेख हसीना सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभायी थी, के बीच होगा। अन्य पार्टियां जो बहुत छोटी हैं, वे किसी न किसी समूह के साथ गठबंधन करने की कोशिश करेंगी। हाल के महीनों में जमात-ए-इस्लामी ने विदेशों में इस्लामी देशों से बड़ी वित्तीय सहायता के कारण ताकत हासिल की है, लेकिन नागरिकों के बीच इस पार्टी की स्वीकार्यता बहुत कम है। मुख्य चुनावी लड़ाई बीएनपी और एनसीपी तक ही सीमित रहेगी।
अवामी लीग का भविष्य क्या है? अवामी लीग के पास देश में अभी भी समर्पित कार्यकर्ताओं का एक समूह है, हालांकि उनमें से कई खुले तौर पर काम नहीं कर सकते। अवामी लीग निश्चित रूप से प्रतिबंध को अदालत में चुनौती देगी, लेकिन सरकार ने आदेश में कुछ विशेष प्रावधान जोड़े हैं, जिससे अगर अवामी लीग कानूनी लड़ाई लड़ना चाहती है तो उसके लिए मुश्किल हो जायेगी। अवामी लीग की नेता शेख हसीना हाल के हफ्तों में सक्रिय नहीं रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले से ही पाकिस्तान के साथ संघर्ष से निपटने में अपनी समस्याओं में उलझे हुए हैं। इसलिए भारतीय विदेश मंत्रालय शेख हसीना को अभी भारतीय धरती से कोई सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करना चाहेगा।
बांग्लादेश के राजनीतिक पर्यवेक्षकों के बीच सरकार द्वारा अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाने और क्या इससे अवामी लीग एक राजनीतिक पार्टी के रूप में खत्म हो जाएगी, इस बारे में अलग-अलग राय हैं।
बांग्लादेश के प्रमुख दैनिक डेली स्टार के अनुसार अवामी लीग केवल एक राजनीतिक पार्टी नहीं है, यह एक बहु-पीढ़ी संस्था है। देश भर में लाखों लोगों ने अतीत में इसका समर्थन किया है, उनमें से कई ऐसे परिवारों में जन्मे हैं जो दशकों से पार्टी का हिस्सा रहे हैं। नयी वास्तविकता में इन लोगों का क्या होगा, वे कैसे प्रतिक्रिया देंगे, यह महत्वपूर्ण प्रश्न है।
इसके अलावा प्रतिबंध एएल को ठीक वही देता है जिसकी उसे अपनी छवि को फिर से बनाने के लिए ज़रूरत है, उत्पीड़क से उत्पीड़ित तक। डेली में व्यक्त राय के अंश में कहा गया है कि वही पार्टी जिसने असहमति को दबाने के लिए राज्य की शक्ति का इस्तेमाल किया, अब पीड़ित होने का दावा करती है। यह भी बताया गया है कि बांग्लादेश नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वचन (आईसीसीपीआर) का हस्ताक्षरकर्ता है, जो स्पष्ट रूप से कहता है कि राजनीतिक अधिकारों पर प्रतिबंधों को वैधता, आवश्यकता और आनुपातिकता के परीक्षणों को पूरा करना चाहिए।
एक व्यापक पार्टी प्रतिबंध केवल तभी उचित ठहराया जा सकता है जब अन्य सभी छोटे प्रतिबंधात्मक साधन स्पष्ट रूप से विफल हो गये हों। राज्य के पास अभी भी शक्तिशाली उपकरण हैं, वह विश्वसनीय रूप से अपराध के आरोपी एएल नेताओं पर मुकद्दमा चला सकता है, गवाहों और कार्यकर्ताओं को सुरक्षा प्रदान कर सकता है, हिंसक गुटों को भंग कर सकता है और यहां तक कि लक्षित दंड भी लगा सकता है। ये तंत्र न्याय को मज़बूत करते हैं।
इस दृष्टिकोण के अनुसार न्याय की मांग है कि दोषियों को दंडित किया जाए, उन सभी को नहीं जो सीधे तौर पर उनसे जुड़े नहीं हैं। फिलहाल एनसीपी और जमात द्वारा अवामी लीग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के लिए एक राजनीतिक माहौल बनाया गया है। इस बात की बहुत कम संभावना है कि चुनाव से पहले इस स्थिति में कोई बदलाव आयेगा। (संवाद)

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