वास्तव में अमरीका किसका दोस्त है ?
हाल के भारत-पाकिस्तान तनाव, पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद दक्षिण एशिया की भू-राजनीति पिर से चर्चा में है। अब सवाल यह उठता है कि अमरीका वास्तव में किसके साथ है। दरअसल अमरीका न तो पूरी तरह भारत का ‘दोस्त’ है और न ही पाकिस्तान का ‘साथी’। उसकी नीतियां पूंजीवादी और भू-राजनीतिक हितों से प्रेरित हैं, जिसमें चीन को संतुलित करना, क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखना और आर्थिक लाभ शामिल हैं। भारत के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी गहरी हो रही है, लेकिन पाकिस्तान के गैर-नाटो सहयोगी दर्जे और क्षेत्रीय महत्व के कारण वह उसे पूरी तरह अलग नहीं कर सकता। हालांकि, पाकिस्तान के साथ अमरीका के संबंध भी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। 1987 में पाकिस्तान को गैर-नाटो सहयोगी का दर्जा देने का निर्णय शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ के खिलाफ अफगानिस्तान में सहयोग के लिए लिया गया था। यह दर्जा पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक सहायता सुनिश्चित करता है और इसे समाप्त करना आसान नहीं है, क्योंकि यह अमरीका की क्षेत्रीय स्थिरता की रणनीति का हिस्सा है। हाल के तनाव में अमरीका ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया है, विशेष रूप से पहलगाम हमले के बाद, लेकिन साथ ही उसने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है, जो यह दर्शाता है कि वह युद्ध जैसे हालात से बचना चाहता है।
1971 का भारत-पाक युद्ध, जो बांग्लादेश की मुक्ति का कारण बना, दक्षिण एशिया में अमरीका की हस्तक्षेपकारी नीतियों का प्रमुख उदाहरण है। उस समय अमरीका ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया, जो शीत युद्ध की भू-राजनीति और चीन के साथ उसके नए रिश्तों से प्रेरित था। हाल के तनाव में अमरीका ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया है, लेकिन उसकी मध्यस्थता की पेशकश और युद्धविराम कराने का दावा भारत की द्विपक्षीय नीति के खिलाफ था। चीन का समर्थन पाकिस्तान को मज़बूती देता है जबकि रूस भारत का विश्वसनीय साझेदार बना हुआ है। हथियारों का बाज़ार और व्यापार दोनों देशों को प्रभावित करते हैं, लेकिन अमरीका की प्राथमिकता स्पष्ट है—अपने हित पहले। इस जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत को अपनी स्वायत्त विदेश नीति और रणनीतिक साझेदारियों के माध्यम से अपने हितों की रक्षा करनी होगी।
1971 में अमरीका ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया था, जो शीत युद्ध की भू-राजनीति और चीन के साथ उसके नए रिश्तों से प्रेरित था। इस बार अमरीका ने भारत का समर्थन किया। राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ पर दबाव डाला था कि वह अपनी सेना को कारगिल से हटाए। यह भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत थी और अमरीका-भारत संबंधों में सुधार का संकेत था। हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार दौरान किए गए पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद अमरीका ने भारत पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे। 2008 में मुंबई आतंकवादी हमले के समय अमरीका ने पाकिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ महत्वपूर्ण सूचनाएं भारत के साथ साझा की थीं, जिससे भारत-अमरीकी संबंधों में एक नया भरोसा उत्पन्न हुआ था।
पुलवामा हमले के बाद भारत की जवाबी कार्रवाई में अमरीका ने भारत का समर्थन किया और पाकिस्तान से आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। यह भारत के प्रति अमरीका के बदलते रवैये को दर्शाता है जो चीन के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी से प्रेरित है। शीत युद्ध और अफगान युद्ध—1980 के दशक में अमरीका ने पाकिस्तान को अरबों डॉलर की सैन्य और आर्थिक सहायता प्रदान की जिससे वह सोवियत संघ के खिलाफ मुजाहिदीन का समर्थन कर सका। हाल के तनाव में अमरीका ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया है, लेकिन उसकी मध्यस्थता की पेशकश और युद्ध विराम कराने का दावा भारत की द्विपक्षीय नीति के खिलाफ है। (युवराज)