रिक्त पदों पर बेरोज़गारों को भर्ती किया जाना चाहिए
आज का जीवन तेज़ी से डिजिटलीकृत हो रहा है। कम्प्यूटर शिक्षा युवाओं को इस बदलती दुनिया के साथ तालमेल बिठाने में मदद करती है। कम्प्यूटर कौशल की मांग सभी क्षेत्रों में बढ़ रही है। जिससे कम्प्यूटर शिक्षा प्राप्त युवाओं को विभिन्न प्रकार के रोज़गार प्राप्त करने में मदद मिलती है। शायद यही कारण है कि देश के युवाओं ने अपनी शिक्षा के साथ अब कम्प्यूटर शिक्षा को अनिवार्य मानते हुए अलग अलग तरीके के कम्प्यूटर कोर्स करने शुरू कर दिये हैं। प्रतिवर्ष राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान से प्रमाणित संस्थानों से प्रतिवर्ष हज़ारों बच्चे कम्प्यूटर की शिक्षा, प्रमाण पत्र लेकर कम्प्यूटर शिक्षा में दक्ष होकर बेकार घूम रहे है। यही नही इंटर के बाद सरकारी सेवा की लालच में बच्चों ने बीसीए और एमसीए को अपना टारगेट बना रखा है।
हजारों बच्चें आज बीसीए और एमसीए करने के बाद निजी संस्थानों में काफी कम मानदेय में नौकरी कर रहे है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा निकाली जाने वाली भार्तियों में आज भी लगभग वही पुराना ढर्रा अपनाया जा रहा है। अब जबकि ग्राम पंचायत से लेकर शीर्ष कार्यालयों तक कम्प्यूटर का अत्याधिक उपयोग शुरू हो चुका है ऐसे में पुराने ढर्र पर भार्तियों के चलते शिक्षणा संस्थानों से लेकर आम और खास कार्यालयों तक में कम्प्यूटर शिक्षित कर्मियों की कमी खल रही है। हालांकि केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने कर्म खर्च में काम की रणनीति अपनाते हुए संविदा और ठेका प्रणाली से नाममात्र के कम्प्यूटर शिक्षित लोगों को काम दे रखा है लेकिन उसका उतना लाभ न तो सरकार उठा पा रही है न ही आम जनमानस को उसका लाभ मिल पा रहा है।
यहां यह मुद्दा उठाने के पीछे कई लाजिक है। जैसे आज के दौर में सबसे ज्यादा साइबर अपराध हो रहे हैं ऐसे में आपराधियों से निपटने के लिए पुलिस विभाग में भारी भरकम शरीर वाले कर्मियों के साथ-साथ अगर कम्प्यूटर विशेषज्ञ इनके साइबर सेल शामिल किए जाएं तो साइबर अपराध पर अंकुश लग सकता है। अगर इस आधार पर प्रत्येक जिले के साइबर सेल में कम्प्यूटर विशेषज्ञों की भर्ती की जाए तो काफी कम्प्यूटर विशेषज्ञ छात्रों को रोज़गार मिल सकता है। यही हाल रेलवे, कृषि, स्वास्थ्य, परिवहन, ऊर्जा मंत्रालय,राजस्व, आयकर, बिक्रीकर सहित शिक्षा विभाग का है। केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के सचिवालयों में तो हर हाल में कम्प्यूटर विशेषज्ञों भर्ती होनी चाहिए, क्योंकि अब तक सचिवालयों में 90 प्रतिशत काम पेपर लेस के करीब पहुंच चुका है। यही नहीं अगर वाकई सरकार पेपर लेस वर्क के आधार पर काम कर रही है तो उसे हर छोटे से बड़े विभाग में एक अलग कम्प्यूटर विंग बनाना चाहिए जिसमें आधे-अधूरे ज्ञान वाले नहीं बल्कि पात्र कम्प्यूटर विशेषज्ञों की तैनाती की जाए, क्योंकि पिछले कुछ सालों में हर विभाग में कम्प्यूटरीकरण के नाम पर हज़ारों कम्प्यूटर खरीद कर इन्टरनेट से जोड़ तो दिये गए लेकिन कार्मिकों को कम्प्यूटर का पूरा ज्ञान न होने के कारण उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो रही। अगर सरकार एक बार अपना पुराना भर्ती की पात्रता को दरकिनार कर हर विभाग में फिलहाल रिक्त पदों पर पद के सापेक्ष 50 प्रतिशत पदों पर कम्प्यूटर की पात्रता वाले युवाओं को भर्ती कर ले तो कामकाज व्यापक स्तर पर सुधार हो सकता है।
हालाकि कि सरकार की अपनी नीति के तहत केन्द्र एवं राज्य सरकारों के अधिनस्थ रिक्त पदों की संख्या खुलकर या स्पष्ट रूप से सामने नहीं आती लेकिन कभी-कभार सदन में उठाये जाने वाले प्रश्नों के माध्यम से पता चलता है कि केन्द्र सरकार के अधिनस्थ वर्तमान समय से दस लाख और प्रत्येक राज्य सरकारों में औसतन 30 से 40 प्रतिशत पद रिक्त हैं। एक जानकारी के अनुसार अभी केंद्र सरकार के तहत आने वाले लगभग 78 विभागों में 9.79 लाख पद खाली हैं। देशभर के सरकारी स्कूलों में भी शिक्षकों के लगभग 10.6 लाख से ज्यादा पद खाली हैं। पूरे देश में शिक्षकों के 61 लाख 84 हज़ार 464 पद स्वीकृत हैं, जबकि अलग-अलग राज्यों में कुल 10 लाख 60 हज़ार 139 पद खाली हैं। इसी तरह रेलवे में लगभग 2,37,295 पद खाली है। मंज़ूर पदों की तुलना में 15 प्रतिशत पद खाली हैं। गृह मंत्रालय में लगभग 1,28,842 पद खाली हैं. यहां भी 12 प्रतिशत पद खाली हैं। साइंस और टेक्नोलॉजी विभाग में लगभग 66 प्रतिशत पद खाली हैं और कुल खाली पदों की संख्या 12,444 है। वहां सिर्फ 4217 लोग ही काम कर रहे हैं। यह तो केवल बानगी है यानि के केन्द्र सरकार के सभी विभागों को देखा जाए तो हर साल एक करोड़ नौकरियां देने का वादा करने वाले प्रधानमंत्री का बयान सही लगता है। इसके ठीक विपरीत के उनके कार्यालय में ही लगभग 26 प्रतिशत पद खाली हैं। जल संसाधन, नदी विकास और गंगा मंत्रालय में लगभग 4557 पद खाली हैं, जो 42 फीसदी है। देश के लिए नीति बनाने वाले आयोग का हाल भी अन्य मंत्रालयों की ही तरह है। वहां भी 32 प्रतिशत पद खाली हैं। ऐसे मे अगर राज्य सरकारों के अधिनस्थ बात की जाए तो यहां भी लगभग अधिकाधिक रोज़गार देने वाले संवर्ग में रिक्तियां 60 प्रतिशत तक है। विद्यालयों का यही हाल है केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों में कम्प्यूटर शिक्षा देने वाले शिक्षक नाम मात्र के हैं। अगर हैं भी तो वे ठेका प्रथा से सम्बद्ध है। ऐसे में केन्द्र एवं राज्य सरकारों को अगर वाकई इस बदलती दुनिया के साथ तालमेल बिठा कर चलना हैं तो उसे हर संवर्ग की नौकरियों में 50 प्रतिशत पदों पर राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान से प्रमाणित प्रशिक्षित कम्प्यूटर शिक्षित उम्मीदवारों शामिल करना होगा।