पाकिस्तान को अब पाकिस्तानी ही बचा सकते हैं

अपने जन्म के समय से ही पाकिस्तान एक अपंग राष्ट्र के रूप में सदा ही अस्थिर रहा।  जिन्ना की मृत्यु (1948) और लियाकत अली खां की हत्या (1951) के बाद नेतृत्व संकट आज तक संभल नहीं पाया। 1956 में पाकिस्तान ने अपना पहला संविधान अपनाया, खुद को ‘इस्लामी गणराज्य’ घोषित किया तो 1958 में पहली बार जनरल अयूब खान के नेतृत्व में सेना ने तख्ता पलट कर सत्ता पर कब्जा किया। 1969 में अयूब खान को हटाकर याह्या खान सत्ता में आया तो अपनी गलतियों और अहम् एवं वहम की वजह से बांग्लादेश को खोया। 1971 में ज़ुल्फिकार अली भुट्टो प्रधानमंत्री बने और नये सिरे से राष्ट्रनिर्माण की कोशिशें कीं। 
1973 में नया संविधान लागू हुआ तो 1974 में पाकिस्तान ने अहमदिया समुदाय को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया। 1977 में फिर सैन्य तख्ता पलट जनरल ज़िया-उल-हक के नेतृत्व में हुआ और भुट्टो को फांसी दे दी गई। ज़िया का कट्टर इस्लामीकरण अभियान शुरू हुआ। शरीयत कानून, मदरसों का विस्तार होने लगा। 1988 में ज़िया की भी विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई। 1988 से 1999 के बीच बेनज़ीर भुट्टो और नवाज़ शरीफ के बीच सत्ता का अदल-बदल होता रहा, लेकिन पाकिस्तान के शासन में एक बार जो सेना का दबदबा बन गया था, वह आभी तक जारी है।
नवाज़ शरीफ  ने भारत के साथ संबंध सुधारने का प्रयास किया तो पाक सेना ने परवेज़ मुशर्रफ  के नेतृत्व में कारगिल युद्ध छेड़ दिया। कारगिल युद्ध के बाद नवाज़ शरीफ  का तख्ता पलट कर मुशर्रफ  सत्ता में आ गए। फिर बेनज़ीर भुट्टो की भी हत्या हो गई। नवाज़ शरीफ  और परवेज़ मुशर्रफ  के बीच लुका छिपी का खेल जारी रहा। इसी बीच इमरान खान को सेना 2018 में सत्ता में ले आई, परन्तु बाद में इसी इमरान खान से सेना का मोह भंग हो गया और सेना ने साज़िशन इमरान खान (पूर्व प्रधानमंत्री) को जेल में डाल दिया और शाहबाज शरीफ  को प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठा दिया।
इस सब के बीच सरकार में सेना का हस्तक्षेप जारी रह।  पाकिस्तान में आटे से लेकर हर चीज महंगी होती गई और आर्थिक संकट गहराता गया। वह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) से बेलआउट की गुहार लगाता रहा। पाकिस्तान की जनता अपनी समस्याओं को लेकर सड़क पर ना उतरे, इसलिए पाक सेना  हमेशा भारत को एक दुश्मन के रूप में अवाम के सामने पेश  करती रही। अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए पाक ने कश्मीर को एक स्थायी मुद्दा बना लिया।
पाकिस्तान ने अपने संसाधनों को विकास कार्यों में लगाने की बजाय आतंकियों को पोषित करने पर लगाना शुरू कर दिया। इस कारण पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था आई.एम.एफ., अमरीका, चीन और खाड़ी देशों पर निर्भर हो गई। अब प्रत्येक पक्ष से पाकिस्तान की स्थिति दयनीय हो गई है। पाक को अब बलोच विद्रोहियों का सामना भी करना पड़ रहा है, जो अवसर पाकर उसे भारी क्षति पहुंचा रहे हैं। पाकिस्तान को विकास के मार्ग पर लाने के लिए स्वयं उसकी जनता को आगे आना होगा। अवाम को एकजुट होकर देश में चल रहे आतंकवादियों के अडडें को खत्म करने के लिए सरकार व सेना पर दबाव बनाना होगा। ऐसा करके पाकिस्तान को सिर्फ  पाकिस्तानी ही बचा सकते हैं, और कोई नहीं। (अदिति)

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