एहसान फरामोश तुर्की और अज़रबाइजान हुए बेनकाब 

हाल ही में भारत सरकार के आप्रेशन सिंदूर के दौरान चीन और तुर्की ने किस तरह पाकिस्तान का साथ दिया, इससे समूचा भारतीय समाज उद्वेलित हुआ है क्योंकि 14 वीं शताब्दी से भारत और तुर्की के बीच दोस्ताना ताल्लुकात रहे हैं। तुर्की में भूकम्प की आपदा के समय भारत ने सबसे आगे बढ़ कर उसकी की सहायता की लेकिन तुर्की हद दर्जे का एहसान फरामोश निकला। आप्रेशन सिंदूर के जबाव में तुर्की और चीन निर्मित ड्रोनों का भरपूर इस्तेमाल पाकिस्तान ने भारत पर हमले के लिए किया, लेकिन भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने उन सभी ड्रोनों और मिसाइलों की हवा निकाल दी। 
अभी भी पाकिस्तान द्वारा दागी गई चीनी और तुर्की की मिसाइलों और ड्रोनों के नष्ट टुकड़े भारत में मौजूद हैं। दावा यह भी है कि तुर्की के प्रशिक्षित लोगों ने पाकिस्तान की ओर से ड्रोन के जरिये भारत पर हमला किया और दो तुर्की भारत की कार्रवाई मे मारे भी गए। हालांकि, भारत व पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम हो गया है, लेकिन चीन और तुर्की के अलावा एक और देश अज़रबाइजान का चेहरा बेनकाब हो गया है, जिसने पाकिस्तान का समर्थन किया था। इन देशों की अर्थव्यवस्था में भारत का बड़ा योगदान है। चीन जहां भारत में अपना सस्ता सामान बेच कर बड़ी कमाई करता है, वहीं तुर्की और अज़रबाइजान भारतीय पर्यटकों से गाढ़ी कमाई करता है। यानी ये देश कमाई भारत से करते हैं, लेकिन उसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ  कर रहे हैं। ऐसे में भारतीयों ने अब इनका विरोध करना शुरू कर दिया है।
व्यापारियों के संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट)ने भी भारतीय व्यापारियों और नागरिकों से मौजूदा तनाव के बीच पाकिस्तान का खुला समर्थन करने के जवाब में तुर्की और अज़रबाइजान की यात्रा का पूरी तरह से बहिष्कार करने का आह्वान किया है।
पाकिस्तान का साथ देना तुर्की को भारी पड़ता नज़र आ रहा है। भारत में ‘बायकॉट तुर्की’ की मुहिम तेज़ हो गई है और इसका असर भी दिखने लगा है। एक ओर जहां व्यापारियों ने तुर्की सेव का बहिष्कार शुरू किया है, तो ट्रैवल प्लेटफॉर्मों ने तुर्की, अज़रबाइजान की यात्रा नहीं करने की अपील की है, वहीं भारत की प्रतिष्ठित जेएनयू विवि ने भी तुर्की के साथ शैक्षिक सहयोग बंद करने का फैसला किया है।
2024 तुर्की में करीब 62.2 मिलियन विदेशी पर्यटक गए, जिनमें से करीब 3,00,000 पर्यटक अकेले भारत से थे। यह 2023 की तुलना में भारतीय पर्यटकों में 20.7 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। व्यापारिक निकाय ने कहा कि तुर्की का कुल पर्यटन राजस्व 61.1 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा, जिसमें प्रत्येक भारतीय पर्यटक औसतन 972 अमरीकी डॉलर खर्च करता है, जो कुल अनुमानित भारतीय व्यय 291.6 मिलियन अमरीकी डॉलर है। अगर भारतीय पर्यटक तुर्की का बहिष्कार करते हैं, तो देश को लगभग 291.6 मिलियन अमरीकी डॉलर का प्रत्यक्ष नुकसान हो सकता है। इसके अलावा भारतीय शादियों, कॉर्पोरेट कार्यक्रमों और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के रद्द होने से अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक नुकसान और भी अधिक होगा। तुर्की ने भारत के खिलाफ अपना रंग तब दिखाया है, जब दो साल पहले ही वहां विनाशकारी भूकम्प के दौरान भारत ने दिल खोलकर उसकी मदद की थी। तुर्की की जीडीपी में पर्यटन का योगदान 12 फीसदी है।
अज़रबाइजान के बारे में भी आंकड़े बताते हैं कि 2024 में देश में लगभग 2.6 मिलियन विदेशी पर्यटक आए, जिनमें से लगभग 2,50,000 भारतीय थे। एक भारतीय पर्यटक द्वारा औसत खर्च लगभग 1,276 अमरीकी डॉलर है, जिससे कुल भारतीय योगदान लगभग 308,6 मिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। इसलिए भारतीय पर्यटकों द्वारा बहिष्कार किए जाने से उसे सीधा नुकसान हो सकता है। चूंकि भारतीय यात्री मुख्य रूप से छुट्टियों, शादियों, मनोरंजन और साहसिक गतिविधियों के लिए अज़रबाइजान जाते हैं, इसलिए बड़े पैमाने पर गिरावट इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय आर्थिक मंदी का कारण बन सकती है। यह आर्थिक दबाव तुर्की और अज़रबाइजान दोनों को भारत के प्रति अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर सकता है। 
भारत में जबरदस्त गुस्सा देखने को मिल रहा है और ‘बायकाट तुर्की’ मुहिम का असर भी दिखा है, जहां व्यापारियों ने तुर्की से सेब खरीदना बंद कर दिया है, तो काफी हद तक पर्यटन पर निर्भर तुर्की के लिए कई ट्रैवल एजेंसियों ने भी ट्रैवल पैकेज रद्द कर दिए हैं। ट्रैवल प्लेटफॉर्म ईजमायट्रिप ने देश पहले व्यापार बाद में का नारा बुलंद किया है और यात्रियों को पाकिस्तान का समर्थन करने वाले देशों की यात्रा न करने की सलाह दी है।
आपको बता दें कि भारतीय मार्केट में मौजूद तुर्की के बड़े-बड़े ब्रांड्स की लिस्ट लंबी है। फर्नीचर से लेकर पर्सनल केयर तक, होम अप्लायंस से लेकर सेब तक बेचे जाते रहे हैं। भारत एक बड़ा बाज़ार है जिस तुर्की पर बेहद बुरा असर पड़ने की उम्मीद है।
भारत और तुर्की के बीच वर्षों से चल रहे व्यापारिक और रणनीतिक संबंध अब खात्मे की ओर चल पड़े हैं । ऑपरेशन सिंदूर के बाद केंद्र सरकार ने तुर्की की कंपनियों से जुड़े सभी समझौते और परियोजनाओं की समीक्षा शुरू कर दी है। भारत में निर्माण, एविएशन, मेट्रो रेल और आईटी जैसे क्षेत्रों में सक्रिय तुर्की की कंपनियों की भूमिका को दोबारा परखा जा रहा है। यह कदम तुर्की के कश्मीर मुद्दे पर बार-बार टिप्पणी और पाकिस्तान के साथ उसकी बढ़ती निकटता के मद्देनज़र उठाया गया है। ज़ाहिर है आगामी दिनों में तुर्की और अज़रबाइजान के बहिष्कार से उन्हें बेहद आर्थिक नुकसान होगा और यही एक एहसान फरामोश मुल्क को सज़ा देने की शुरुआत है। 
 

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