आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहा बलूचिस्तान

बलूचिस्तान की कलात रियासत ने 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता की घोषणा करने के बाद 27 मार्च, 1948 को पाकिस्तान में शामिल हो गया था। लेकिन बलूचिस्तान ने पाक में विलय को कभी स्वीकार नहीं किया। लिहाजा यहां अलगाव की आग निरंतर बनी रही है। नतीजतन 2001 में यहां 50 हजार लोगों की हत्या पाक सेना ने कर दी थी। इसके बाद 2006 में अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने वाले 20 हजार सामाजिक कार्यकर्ताओं को अगवा कर लिया गया था, जिनका आज तक पता नहीं है। 2015 में 157 लोगों के अंग-भंग किए गए थे। फिलहाल पुलिस ने जाने-माने एक्टिविस्ट बाबा जान को भी हिरासत में लिया हुआ है। पिछले 20 साल से जारी दमन की इस सूची का खुलासा एक अमरीकी संस्था ने किया है। वॉशिगटंन में कार्यरत संस्था गिलगिट-बलूचिस्तान नेशनल कांग्रेस के सेंग सिरिंग ने मोदी द्वारा उठाए, इस सवाल का समर्थन किया है कि ‘पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और बलूचिस्तान में लोगों पर होने वाले जुल्म एवं अत्याचार के बाबत पाक को दुनिया के समक्ष जवाब देना होगा? पाक तो जबाव देने वाला नहीं है, लेकिन भारत की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह बलूचिस्तान की स्वतंत्रता में भागीदार बने?    
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच छिड़े युद्ध में ऐसे साफ संकेत मिलने लगे थे कि पाकिस्तान का भूगोल बदलने जा रहा है। अब बलूच नेता मीर यार बलूच ने ऐलान किया है कि बलूचिस्तान अब पाकिस्तान से पृथक एक अलग स्वतंत्र देश है। उन्होंने भारत और वैश्विक समुदाय से बलूचिस्तान की आज़ादी हेतु समर्थन देने की मांग की है। मीर ने कहा है कि बलूचिस्तान के लोगों ने अपना फैसला सुना दिया है, इसलिए दुनिया को चुप नहीं रहना चाहिए। यह हमारा राष्ट्रीय निर्णय हैं कि हम अब पाकिस्तान का हिस्सा नहीं रहेंगे। बलूच नेता ने भारतीय नागरिकों से आग्रह किया है कि सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग और बुद्धिजीवी बलूचों को ‘पाकिस्तान के अपने लोग’ कहने से परहेज करें। क्योंकि अब हम पाकिस्तानी नहीं बलूचिस्तानी हैं। बलूचियों ने संयुक्त राष्ट्र से भी स्वतंत्र देश मान लेने का आग्रह किया है।  
पाक का बड़ा भू-भाग बलूचिस्तान प्रांत में लंबे समय से स्वतंत्रता की जो लड़ाई लड़ रहा था, वह सफलता के शिखर पर है। बलूचिस्तान को नए देश के रूप में मान्यता मिल जाती है तो 1971 के बाद पाकिस्तान की भूमि पर दूसरा बड़ा विभाजन दिखाई देगा। 1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी सेना को सैनिक मदद देकर पाक के दो टुकड़े कर दिए थे। 93 हजार पाक सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष हथियार डाल दिए थे। सैनिकों का इतना बड़ा समर्पण इस घटना से न तो पहले कभी हुआ और न ही बाद में? बलूचों ने तो अपने सीमा क्षेत्र से पाक सैनिकों को खदेड़कर और सरकारी इमारतों से पाकिस्तानी झंडा उतारकर, बलूचिस्तान का झंडा फहरा दिया। अब बलूच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप की मांग करते हुए दिल्ली में बलूचिस्तान का दूतावास खोलने की मांग कर रहे हैं। बलूचों ने संयुक्त राष्ट्र से शांति रक्षक बल भेजने की भी मांग की है। 
प्रसिद्ध लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता मीर यार बलूच को बलूच के लोगों के अधिकारों की वकालात के लिए जाने जाते हैं। बलूचों ने संयुक्त राष्ट्र से बलूचिस्तान में शांतिरक्षक बल भेजने और पाक सेना को बलूच सीमा क्षेत्र से बाहर कर देने का आग्रह भी किया है। भारत ने तो ऑपरेशन सिंदूर के अंतर्गत पाक और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में मौजूद केवल आतंकी ठिकानों पर लक्ष्य साधकर उन्हें नष्ट किया। परंतु किसी सैन्य ढाचें को निशाना नहीं बनाया। किन्तु मीरयार बलूच ने दावा किया है कि बलूच स्वतंत्रता सेनानियों ने डेरा बुगती में पाक के 100 गैस कुओं पर हमला किया। पाक सेना को बंकरों से खदेड़ दिया। अत:एव अब पाक सेनाएं, अर्धसैनिक बल, पुलिस, आईएसआई और प्रशासन में कार्यरत सभी गैर बलूच अधिकारी तुरंत बलूचिस्तान छोड़ दें। यदि बलूच स्वतंत्र देश बन जाता है तो भारत-पाक युद्ध के बीच 1971 की तरह एक युगांतरकारी घटना देखने को मिलेगी, जिसमें बलूचों द्वारा मनाए जाने वाले उत्सव में भारत भी भागीदार हो सकता है। बलूचों की स्वतंत्रता की संभावना का अहसास पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने भी जताया है। उनका कहना है कि बलूचिस्तान पर अब सेना और सरकार का नियंत्रण ढीला पड़ रहा है। यहां के हालात इतने खराब हैं कि सरकारी मंत्री तक बाहरी सुरक्षा के बिना बाहर नहीं निकल सकते हैं। सेना के जवान अपने ही देश में बंकरों में छिपे हैं।
बलूचिस्तान में विद्रोह की आग चरम पर हैं। बलूचिस्तान लिब्रेशन अर्मी आज़ादी की मांग करने वाला सबसे पुराना सशस्त्र अलगाववादी संगठन है। यह संगठन पहली बार 1970 में अस्तित्व में आया था। इसने जुल्फिकार अली भुट्टों के कार्यकाल में बलूचिस्तान प्रांत में सशस्त्र विद्रोह का शंखनाद कर किया था। कालांतर में सैनिक तानाशाह जियाउल हक द्वारा सत्ता हथियाने के बाद बलूच नेताओं के साथ बातचीत हुई, जिसके परिणामस्वरूप संघर्ष विराम की स्थिति बन गई थी। नतीजतन बलूचिस्तान में सशस्त्र विद्रोह खत्म हो गया था और बीएलए का भी कोई वजूद नहीं रह गया था। किंतु कारगिल युद्ध के बाद सैन्य तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली। इसके बाद मुशर्रफ के संकेत पर साल 2000 में बलूचिस्तान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नवाबमिरी की हत्या कर दी गई और मुशर्रफ ने कुटिल चतुराई बरतते हुए पाक सेना से इस मामले में आरोपी के रूप में बलूच नेता खेरबक्ष मिरी को गिरफ्तार करा दिया। इसके बाद फिनिक्स पक्षी की तरह बीएलए फिर उठ खड़ा हुआ। इसके बाद से ही जगह-जगह हमले शुरू हो गए। साल 2020 में एकाएक बीएलए की ताकत बढ़ गई और बलूचिस्तान के सरकारी प्रतिष्ठानों तथा सुरक्षाबलों पर हमलों की संख्या बढ़ती चली गई।
बीएलए बलूचिस्तान में चीन के प्रभाव को किसी भी हाल में स्वीकार नहीं करता है। उसका मानना है कि चीन बलूचिस्तान की प्राकृतिक संपदा को हड़पने का काम कर रहा है। इसी नजरिए से ग्वादर बंदरगाह को विकसित करने के साथ एक बड़ा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी बना रहा है। दरअसल भारत-पाकिस्तान के बंटवारें के समय बलूचिस्तान को बलूचों की इच्छा के बिना बंदूक की जोर पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था। जबकि वे स्वयं को एक स्वतंत्र देश के रूप में देखना चाहते थे। अत:एव पाक की स्वतंत्रता के समय से ही बलूचों का संघर्ष पाक सरकार और सेना से निरंतर बना हुआ है। बीएलए जब साल 2000 में वजूद में आया था तब इसके लड़ाकों की संख्या 6000 से भी ज्यादा थी। जिसमें करीब 150 आत्मघाती दस्ते शामिल थे। सरदार अकबर खान बुगती एक समय बलूचिस्तान के सर्वमान्य नेता रहे हैं। इसीलिए वे बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री भी रहे थे। 26 अगस्त 2006 को पाकिस्तानी सुरक्षाबलों ने उनकी हत्या कर दी थी। तभी से यह संगठन पाक सेना से लोहा ले रहा है। वर्तमान में बलूच अलगाववादी और तालिबान के बीच निरंतर निकटता बढ़ रहा है। वैसे भी अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के काबिज होने के बाद से पाकिस्तान में आतंकी घटनाएं बढ़ गई हैं। पाक सरकार ने भी स्वीकार किया है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ही बलूच लड़ाकों को प्रशिक्षित कर रहा है। 
पाक की आजादी के साथ बलूचिस्तान का मुद्दा जुड़ा है। पाक की कुल भूमि का 43.6 प्रतिशत हिस्सा केवल बलूचिस्तान का है।  लेकिन इसका विकास नहीं हुआ है। करीब 1.30 करोड़ की जनसंख्या वाले इस हिस्से में सर्वाधिक बलूच है। इसका कुल क्षेत्रफल 3,47,190 वर्ग किमी है। यहां हिंदु, सिख और ईसाई भी रहते हैं। इनमें आपस में खूब भाईचारा है। यहां से कभी सांप्रदायिक दंगों की खबरें नहीं आती हैं। पाक और बलूचिस्तान के बीच संघर्ष 1945, 1958, 1962-63, 1973-77 में होता रहा है। 77 में पाक द्वारा दमन के बाद करीब 2 दशक तक शांति रही। लेकिन 1999 में परवेज मुशर्रफ सत्ता में आए तो उन्होंने बलूच भूमि पर सैनिक अड्डे खोल दिए। इसे बलूचों ने अपने क्षेत्र पर कब्जे की कोशिश माना और फिर से संघर्ष तेज़ हो गया। इसके बाद यहां कई अलगाववादी आंदोलन वजूद में आ गए। इनमें सबसे प्रमुख बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी प्रमुख है। पीओके और बलूचिस्तान पाक के लिए बहिष्कृत क्षेत्र हैं। पीओके की जमीन का इस्तेमाल वह, जहां भारत के खिलाफ शिविर लगाकर गरीब व लाचार मुस्लिम किशोरों को आतंकवादी बनाने का प्रशिक्षण देता रहा है, वहीं बलूचिस्तान की भूमि से खनिज व तेल का दोहन कर अपनी आर्थिक स्थिति बहाल किए हुए है। 

#आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहा बलूचिस्तान