तालाबों के बीच में
एक बार मैं एक ऐसे गांव में था जहां जिधर जाता था उधर तालाब नज़र आता था। सभी तालाबों की विशेषता थी और सबका अलग-अलग नाम। किसी का लड़की तालाब तो कोई नकटी। कोई भोला तालाब कोई बेशर्म तालाब। कोई मामा-भांजा तालाब तो कोई बड़की-छोटकी। कोई महादेव तालाब किसी का नाम जानकी तालाब। तरह-तरह के नाम वाले तालाब उस छोटे से गांव में विद्यमान थे। तालाब है तो व्यक्ति उसमें नहायेंगे। नहाने के बाद सबसे पहला काम देव पूजन अराधना। अत: प्राय: अधिकांश तालाबों के पार में मंदिर होता था। लोग नहाकर पूजा भी कर लेते थे। जैसे तालाब वैसे मंदिर। हर तरफ तालाब और मंदिर नज़र आता था। जितने तालाब उतने उनके नाम।
तालाबों की भी विशेषता थी। किसी तालाब में नहाते तो किसी का पानी पीते। किसी तालाब के पानी में भोजन बनाते तो किसी में जानवरों को नहलाते। किसी तालाब को ब्राह्मण तालाब तो किसी को ठाकुर तालाब कहते थे। तालाब पार में ठाकुर जी का मंदिर होने पर। उसका नाम ठाकुर तालाब पड़ गया। चारों ओर तालाबों से घिरा गांव से तीन चार किलोमीटर दूर एक नदी थी। नदी किनारे एक प्राचीन शिव मंदिर। तालाबों, मंदिरों और नदियों से हमारा देश बना है वैसे भी भारत गांवो का देश है। गांव है तो तालाब। तालाब है तो मंदिर। हम हिन्दुस्तानी हैं। हिन्दुस्तान गांव का देश है। बाबा गांधी ने कहा है। गांव में भारत बसता है। गांव में मंदिर है नदीं है। हम पूजा पाठ करने वाले लोग हैं।
किसी तालाब के मंदिर में बाबा भी बैठ जाते हैं। तालाब में स्नान करो, देव दर्शन और संत दर्शन का लाभ प्राप्त करो। बाबाओं का भी काम जोर-शोर से चलने लगा। मैं दावे से कह सकता हूं कि अधिकांश बाबाओं का केन्द्र नदी किनारे या तालाब के पार में हैं। यही लोगों के आवागमन या आकर्षण का मुख्य केंद्र है। इससे तालाब भी प्रदूषित होने लग गये हैं। ढेर सारे लोग आते हैं नहाते धोते हैं, प्रदूषित कर चले जाते हैं। प्रदूषण तो चारों ओर है।
कहते हैं कि चावल पका कि नहीं, यह जानने के लिए पूरे चावल को मसल कर नहीं देखते। चावल का एक दाना छू कर जान जाते हैं कि चावल पका या नहीं पका। एक गांव से स्पष्ट है कि भारत मंदिरों का देश है। मंदिर पहले भी था, आज भी है और कल भी रहेगा। तालाब, नदी और मंदिर है यहां। इसीलिए जहां नहीं, वहां मंदिर मिल रहा है। हम भारतीय इसके अलावा और कुछ सोच भी नहीं सकते हैं। यही हमारे साहित्य, समाज और दर्शन में हैं। मंदिर हमारी-आपकी संस्कृति में हैं।
मंदिर पाषाण काल में भी था। लोग उस समय भी फसल अच्छा होने पर देवी-देवता की पूजा करते थे। आज भी पूजा-पाठ करते हैं। इतिहास इसका गवाह है। आज भी मड़ई मेले का आयोजन किया जाता है। यह भी मंदिर मंदिर कर रहा है नहीं कहना। जो देखा-सुना वही सब है। किसी भी गांव में चले जाओ यही मिलेगा। नदी, तालाब और मंदिर। क्यों न मंदिरों का देश कहें इसे। वैसे भी घर एक मंदिर है। पूरा हिंदुस्तान एक नदी-तालाब है। पर्वत पहाड़ उसके पार हैं। वहां स्थित तीर्थ, मंदिर हैं। इसे मंदिरों का देश भी कह सकते हैं। पर्वत पहाड़ मंदिर के अलावा कुछ है भी नहीं।