खाद्य पदार्थों में मिलावट की समस्या

पंजाब में लुधियाना के गांव ताजपुर और समराला रोड पर कई स्थानों पर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्रालय की छापेमारी के दौरान, खाद्य पदार्थों में की गई मिलावट के अनेक मामले सामने आने के समाचारों ने जन-साधारण और खास तौर पर स्वास्थ्य क्षेत्र से सम्बद्ध लोगों को चौंकाया है। लुधियाना के ताजपुर से अधिकारियों ने बड़ी मात्रा में नकली और मिलावटी खोया बरामद किया है जबकि समराला रोड से नकली गुड़ भी कब्ज़े में लिया गया है। बेशक पंजाब के कई स्थानों पर नकली खाद्य पदार्थ बनाये जाने के समाचार अक्सर मिलते रहते हैं, किन्तु पंजाब में नकली दूध, खोया और  पनीर की अधिकतर सप्लाई उत्तर प्रदेश से होती है। पंजाब के मालवा और लुधियाना के कई ग्रामीण क्षेत्रों में भी नकली दूध-घी की कई फैक्टरियां भूमिगत रूप से कार्य करते पाई गई हैं। जन-साधारण और खास तौर पर स्वास्थ्य क्षेत्र से मिलावट की यह समस्या यूं तो प्राय: सभी खाद्य पदार्थों में पाई जाती है, किन्तु हाल ही में दूध और दुग्ध पदार्थों में मिलावट की उजागर हुई समस्या ने चिन्ता की लकीरों को और घना किया है। ऐसा इसलिए भी कि दूध नवजात बच्चों से लेकर युवाओं, वृद्धों और गर्भवती महिलाओं के लिए एक बेहतर खुराक माना जाता है, और दूध में मिलावट से इन सभी की सेहत के साथ खिलवाड़ करने जैसा मामला बनता है। इसके अतिरिक्त खिलाड़ियों और बीमारों आदि के लिए भी दूध प्राण-दायी खुराक जैसा होता है, किन्तु इस समय एक सर्वाधिक त्रासद स्थिति यह है कि दूध में ही सर्वाधिक मिलावटखोरी पाई गई है। पंजाब के विभिन्न शहरों में दूध के लिए गये कुल नमूनों में से 22 प्रतिशत नितांत भ्रामक और फेल सिद्ध हुए पाये गये हैं। इस संबंध में  यह भी एक चिन्तनीय पक्ष है कि दूध के कई नमूनों को ़खतरनाक स्तर पर मिलावटी पाया गया है। दूध से बने दुग्ध पदार्थों यथा खोया, पनीर और अन्य कई प्रकार की मिठाइयों में भी मिलावट का वावेला होता रहता है। खास तौर पर त्यौहारों के अवसर पर तो दूध और दुग्ध पदार्थों की मिलावट आकाश तक पहुंच जाती है।
दूध के अतिरिक्त चीनी, चावल, दालों, चाय-पत्ती, मसालों और यहां तक कि नमक, हल्दी आदि की मिलावट भी कभी-कभी चरम शिखर तक पहुंच गई प्रतीत होने लगती है। इन खाद्यान्न पदार्थों की मिलावट कई प्रकार के ़खतरनाक रोगों का कारण बनती है।  प्रदेश की मौजूदा सरकार ने ऐसे पेय पदार्थों को प्रतिबंधित करने की घोषणाएं भी की हैं, किन्तु थोड़े-से लालच और अतिरिक्त धन की चाह में व्यापारी वर्ग के कुछ लोग जन-साधारण के जीवन को ़खतरे में डालने जैसे कृत्य को करने से बाज़ नहीं आते। ऐसा नहीं कि सरकारें इस ़खतरनाक कार्य-व्यापार से अवगत नहीं होतीं, अथवा इस समस्या के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं करतीं। समाज की ऐसी काली भेड़ों के विरुद्ध अक्सर कार्रवाई भी होती है, और जुर्माने आदि की सज़ा भी होती है, किन्तु कानूनों की लचक और प्रशासनिक धरातल की फिसलन और कोताहियों के दृष्टिगत लाख कोशिशों के बावजूद कभी भी मिलावट के इस नाग को नथा नहीं जा सका। दूध की मिलावट को लेकर कई दुग्ध इकाइयों के लाइसैंस रद्द भी किए गए किन्तु पर्दे के पीछे से ऐसे लोग कुछ दे-दिला कर पुन: इन असामाजिक कार्यों में संलग्न हो जाते हैं। ऐसा इसलिए भी कि देखा-देखी एक ओर जहां मिलावट की घटनाएं पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी हैं, वहीं नमूने भरने अथवा इनकी गतिविधियों और इनकी कार्य-प्रणाली एक संकुचित-से दायरे में सीमित होती चली गई है। नतीजतन मिलावटखोरी करने वालों के हौसले में बड़ा इज़ाफा हुआ है। इसका पता इस तथ्य से भी चलता है कि विगत कुछ वर्षों में खाद्यान्न पदार्थों विशेषकर दूध और दुग्ध पदार्थों के भरे गए नमूनों की संख्या में निरन्तर कमी होते पाई गई है। उदाहरणतया वर्ष 2024-25 में 1628 नमूने लिए गए जिनमें से 22 प्रतिशत अर्थात 358 नमूने तय मानकों पर खरा और पूरा नहीं उतर सके।
हम समझते हैं कि यह सचमुच एक ़खतरनाक व्यापार कार्य है जिसके विरुद्ध सरकार और प्रशासन को तत्काल कठोर कार्रवाई अवश्य करनी चाहिए। मिलावट की इस समस्या से समाज में डायरिया, एलर्जी और मधुमेह जैसे रोगों में अथाह वृद्धि हुई है जबकि दालों, मसालों, देसी घी, खाद्य तेलों की मिलावट से लिवर, किडनी, कैंसर और पथरी जैसे रोगों का ़खतरा भी बढ़ा है। विभाग ने बेशक अपनी सफाई में आंकड़ों के तर्क दिए हैं, किन्तु सरकार को इस समस्या की जड़ों पर प्रहार करने के लिए अपने प्रशासनिक तंत्र और खास तौर पर नमूने भरे जाने वाले विभाग को ज़बरदस्त आलोड़न देना होगा। नमूने भरने और प्रयोगशाला तंत्र को भी अधिक मज़बूत किए जाने की बड़ी आवश्यकता है। तभी मिलावट के इस अजगर को काबू किया जा सकेगा।

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