सरकार और विपक्षी पार्टियों का बढ़ता टकराव

पहलगाम के निकट बैसरन घाटी में दु:खद घटना 22 अप्रैल को घटित हुई थी, उसके बाद देश भर में माहौल बेहद शोकमय हो गया था। केन्द्र सरकार ने भी इसका कड़ा संज्ञान लिया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस संबंध में अलग-अलग बैठकें की थीं। उन दिनों में हुई रैलियों में भी श्री मोदी ने देश के लोगों को सम्बोधित करते समय रोष का प्रकटावा करते हुए बार-बार यह कहा था कि ऐसे घिनौने अपराध करने वाले और ऐसे तत्वों को पालने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। 
इस समय के दौरान सरकार द्वारा एक ऑपरेशन सिंदूर से पहले और एक बाद में विपक्षी पार्टियों के प्रतिनिधियों के साथ दो बैठकें की गई थीं, परन्तु उनमें प्रधानमंत्री ने स्वयं भाग नहीं लिया था। कांग्रेस सहित अन्य सभी पार्टियों ने कोई भी कार्रवाई करने के लिए  सरकार को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा की थी परन्तु इसके साथ ही कुछ बड़े विपक्षी नेताओं ने यह ज़रूर कहा था कि विपक्षी पार्टी के नेताओं के साथ की गई बैठकों में अन्य मंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री को ज़रूर शामिल होना चाहिए था। यह वर्णनीय है कि 7 मई से 10 मई तक 4 दिन भारत द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम पर पाकिस्तान में स्थित 9 आतंकवादी केन्द्रों को हवाई हमलों और मिसाइलों द्वारा तबाह कर दिया गया था। पाकिस्तान द्वारा इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप की गई कार्रवाइयों के मुकाबले में भारत ने उसके सैन्य अड्डों को भी निशाना बनाया था। पैदा हुई ऐसी स्थिति संबंधी पहली प्रतिक्रिया अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की आई, जिसने दोनों में युद्ध-विराम होने की घोषणा की और इसका श्रेय उन्होंने स्वयं लिया, परन्तु भारत के आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा कि अपनी होती तबाही देख कर पाकिस्तान के संबंधित सैन्य अधिकारी ने स्वयं अपने भारतीय समकक्ष को फोन पर युद्ध बंद करने के लिए कहा था, जिसके लिए भारत सहमत हो गया था। उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी से लेकर सरकार के लगभग सभी बड़े मंत्रियों ने अलग-अलग स्थानों पर इस ऑपरेशन के संबंध में अपने विस्तारपूर्वक बयान दिए, जो आज तक जारी हैं। सेना के प्रवक्ताओं ने भी समूची स्थिति संबंधी विस्तारपूर्वक सब कुछ बताया। इस संबंध में भी जानकारी दी कि भारत ने पाकिस्तान का कितना नुक्सान किया है और बाद में यह भी कि भारत का इस 4 दिनों की लड़ाई में कितना नुकसान हुआ है। लड़ाई के बाद प्रत्येक स्तर पर विदेशों में भी इस संबंध में चर्चा होती रही। भारत ने पिछले 35 वर्षों से आतंकवादी संगठनों को आगे करके पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध किए जा रहे छदम युद्ध और भविष्य में आतंकवादियों के प्रति भारत द्वारा अपनाए जाने वाले कड़े रवैये संबंधी अन्तर्राष्ट्रीय भाईचारे को अपने दृष्टिकोण से अवगत करवाया। इसलिए अलग-अलग पार्टियों से संबंधित प्रतिनिधियों और अन्य क्षेत्रों की प्रसिद्ध शख्सियतों के ग्रुप बना कर उन्हें दर्जनों ही देशों में भेजा गया था। अब तक भी विदेशों में यह प्रतिनिधिमंडल अपना सम्पर्क अभियान चला रहे हैं। इनमें कुछ एक वापस भी लौट आए हैं। इसी ही समय के दौरान विपक्षी पार्टियों के नेताओं द्वारा इस घटनाक्रम संबंधी अलग-अलग बयान दिए जाते रहे और सरकारी प्रतिनिधियों के साथ इस संबंध में निम्न स्तर पर लगातार बहस भी होती रही है और ज्यादातर विपक्षी नेताओं ने इस संबंध में संसद का विशेष सत्र बुलाने की भी मांग की। इसी क्रम में पिछले दिनों नई दिल्ली में 16 पार्टियों के नेता इकट्ठे हुए। उन्होंने आपसी विचार-विमर्श के बाद प्रधानमंत्री को संसद का सत्र बुलाने के लिए पत्र लिखा और यह भी कहा कि पिछले पूरे समय में विपक्षी पार्टियां सेना और सरकार के समर्थन में खड़ी रही हैं। अब वे चाहती हैं कि संसद के विशेष सत्र में जहां वह सेना का धन्यवाद करें वहीं सरकार भी इस मामले के प्रति अपना पूर्ण विवरण संसद के समक्ष पेश करे और यह भी बताए कि दोनों देशों की आपसी बातचीत से पहले अमरीका के राष्ट्रपति ने पहले ही इन दोनों के बीच युद्ध-विराम की घोषणा कैसे कर दी थी?
ऐसे पूरे विस्तार संबंधी ही उपरोक्त पार्टियों ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी परन्तु इस मांग के प्रति कोई समर्थन देने के स्थान पर संसदीय मामलों के मंत्री किरन रिजीजू ने यह घोषणा कर दी है कि संसद का मानसून सत्र आगामी महीने 21 जुलाई से 12 अगस्त तक होगा। इस घोषणा संबंधी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने यह कहा है कि पहले की परम्पराओं के अनुसार  संसदीय सत्र बुलाने के लिए सप्ताह भर पहले ही घोषणा की जाती थी या ज्यादा से ज्यादा यह सूचना 10 दिन पहले दी जाती थी, परन्तु इस बार के मॉनसून सत्र की घोषणा 47 दिन पहले करने का मतलब यह है कि सरकार ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर उठ रहे सवालों का जवाब देने से बच रही है या वह ऐसा करने में अधिक से अधिक समय गुजारना चाहती है। सरकार द्वारा विपक्षी पार्टियों की यह मांग मानने से इन्कार करने से देश का राजनीतिक माहौल ज़रूर तनावपूर्ण हुआ है परन्तु शायद केन्द्र सरकार आगामी महीनों में कुछ राज्यों में होने जा रहे चुनावों के लिए शेष समय में अधिक से अधिक लामबंदी करके इसका लाभ लेना चाहती है। विपक्षी पार्टियों के पास भी अब इस संबंधी कोई नई रणनीति तैयार करने के अलावा कोई विकल्प दिखाई नहीं देता, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी इस मामले पर पहले ही लोक-मैदान में उतर चुकी है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

#सरकार और विपक्षी पार्टियों का बढ़ता टकराव