वातावरण सुरक्षा के लिए केन्द्र सरकार के यत्न

आज विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष 

प्लास्टिक प्रदूषण आज वैश्विक स्तर पर एक गंभीर चुनौती बन चुका है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत ने प्लास्टिक प्रदूषण की गंभीर समस्या से निपटने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। भारत दुनिया के शीर्ष पांच सर्वाधिक सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा उत्पादक देशों में शामिल है। इस चिंताजनक स्थिति का समाधान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने 1 जुलाई, 2022 को सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया।
पिछले 10 वर्षों के दौरान भारत सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट 2016 और ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2022 को लागू कर कुछ सराहनीय प्रयास किए हैं। प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है, इस वर्ष के लिए चुनी गई थीम ‘प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करना’ है।   बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण ने हमारे पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य श्रृंखला को प्रभावित किया है क्योंकि जानवरों, पक्षियों और स्तनधारियों की कई प्रजातियां भविष्य में विलुप्त होने की कगार पर हैं। अनुमान है कि दुनियाभर में 267 से अधिक प्रजातियां इससे संकट में हैं और कम से कम 147 समुद्री पक्षी प्रजातियां, 69 ताज़ा पानी के पक्षी प्रजातियां और 49 भूमि पक्षी प्रजातियां प्लास्टिक से प्रभावित पाई गई हैं।
यूनेस्को द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार मछलियों और समुद्री जानवरों की 11 प्रजातियां पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं, जबकि 386 प्रजातियां वर्तमान में विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं, जिनमें समुद्री कछुए, व्हेल, हैमरहेड शार्क और केप पेंगुइन शामिल हैं। स्वच्छ भारत मिशन के तहत भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 में कचरे के स्रोत पर पृथक्करण पर जोर दिया गया है। भारत को 100 प्रतिशत खुले में शौच मुक्त बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद, राष्ट्र अब 100 प्रतिशत कचरे के स्रोत पर के पृथक्करण के लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर बढ़ रहा है। सरकार ने केंद्रीय बजट 2025 में स्वच्छ भारत अभियान के लिए 12192 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है।
वेस्ट मैनेजमेंट के लिए नए अधिनियमित कानूनों के तहत भारत सरकार ने विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) की अवधारणा को भी बढ़ावा दिया है, जो निर्माताओं द्वारा उत्पादित उत्पादों से उत्पन्न पैकेजिंग कचरे के उचित संग्रह, पुनर्चक्रण (रिसाइकल) और निपटारे के लिए जिम्मेदारी तय करने पर केंद्रित है। ईपीआर विनियमों के तहत सरकार ने नए उत्पादों के निर्माण के दौरान पुनर्चक्रण सामग्री का प्रारंभिक लक्ष्य 30 प्रतिशत तय किया है। 
2028 तक 60 प्रतिशत तक पहुंचने तक पुनर्चक्रित उत्पादों या सामग्री के उपयोग में 10 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि का प्रावधान है। इसके अलावा सरकार ने 2028 तक 5 प्रतिशत पुनर्चक्रित सामग्री के अनिवार्य उपयोग के साथ उत्पाद अलौह धातुओं के निर्माण के लिए भी नियम बनाए हैं। यह भारत में उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक कचरे के खतरे को रोकने में एक लम्बा रास्ता तय करेगा।
गंगा नदी की सफाई के अलावा नमामि गंगे परियोजना ने गंगा की सहायक नदियों की सफाई पर भी ध्यान केंद्रित किया है। इन 19 नदियों में मनोरमा, गोमती, मंदाकिनी, कोसी व नंद आदि हैं। गंगा की सफाई के राष्ट्रीय मिशन के लिए कुल 42500 करोड़ रुपये रखे गए हैं, जिसमें सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाना, रिवर फ्रंट और घाट बनाना, वनरोपण बढ़ाना और हानिकारक औद्योगिक कचरे के प्रवाह की निगरानी करना शामिल है।
सुझाव :- नदियों को जीवित दर्जा प्रदान करना : इस कदम से नदियों को मनुष्यों की तरह मौलिक अधिकार मिलेंगे, जिनका उल्लंघन करने पर कानूनी सजा मिलेगी। राज्यसभा में सांसद होने के नाते मुझे बजट सत्र 2025 के दौरान इस संबंध में एक निजी सदस्य विधेयक पेश करने का सौभाग्य मिला। मुझे विश्वास है कि सरकार इस विधेयक पर गंभीरता से विचार करेगी।
जल प्रदूषण : जल निकायों के आसपास बफर जोन बनाना- नदियों और अन्य जल निकायों में जहरीले अपशिष्टों के प्रवाह को रोकने के लिए जल निकायों के आसपास बफर जोन बनाना एक महत्वपूर्ण कदम होगा जो प्रतिबंधित क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना पर रोक लगाता है। इस से उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक या औद्योगिक उत्सर्जन को उन प्रतिबंधित क्षेत्रों में जल निकायों तक पहुंचने से रोकने में बहुत मदद मिलेगी।
2030 तक 30 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य पूरा करना : प्रदूषण का एक प्रमुख कारण वाहनों से निकलने वाला कार्बन उत्सर्जन है, जो पेट्रोल और डीजल जैसे गैर-नवीकरणीय ईंधनों के उपयोग से होता है। भारत के प्रमुख महानगर आज गंभीर वायु प्रदूषण का सामना कर रहे हैं, जो कैंसर, त्वचा और नेत्र रोगों जैसी बड़ी बीमारियों का कारण बन रही है। इसे नियंत्रित करने के लिए ऑड-ईवन फॉर्मूला और 10 साल पुराने वाहनों पर प्रतिबंध जैसे कदम उठाए गए लेकिन ये उपाय पूरी तरह  कारगर साबित नहीं हुए। इसलिए हमें पेट्रोल और डीजल को इथेनॉल के साथ मिलाने जैसे टिकाऊ समाधान अपनाने होंगे। 
प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों से सरकारी सब्सिडी वापस लेना : सरकार औद्योगिक इकाइयों को सब्सिडी, कर रियायतें और रियायती कीमतों पर भूमि आवंटन करके प्रोत्साहित करती है, लेकिन जो इकाइयां पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करती हैं जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण प्रदूषण होता है उनकी सब्सिडी तुरंत बंद करने का अधिकार सरकार के पास है। 
निष्कर्ष : भारत में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत अब लगभग 11 किलोग्राम प्रति वर्ष हो गई है और यह लगातार बढ़ रही है, जिससे भविष्य में भूमि, जल और खाद्य श्रृंखला पर गंभीर असर पड़ेगा। सरकार कानून बना रही है लेकिन आम नागरिकों की भी ज़िम्मेदारी है कि वे प्लास्टिक के उपयोग से बचें और पर्यावरण के प्रति सजग बनें। विश्व पर्यावरण दिवस को सही मायने में तभी मनाया जा सकता है, जब धरती पर रहने वाला हर इंसान प्रकृति से छेड़छाड़ के गंभीर परिणामों को समझे और हमारे पवित्र शास्त्रों द्वारा दी गई शिक्षाओं के अनुसार पर्यावरण का संरक्षण करे। 
-सांसद, राज्यसभा

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