व्यापारिक हित नैतिक हितों से ऊपर क्यों ?

अक्सर युद्ध हार-जीत तय हुए खत्म होते हैं। एक और युद्ध के बीज भीतर समेटे हुए। इसी तरह कूटनीति में बहुत कुछ खामोश रह जाता है घोषणाओं के बावजूद। ऑपरेशन सिंदूर के संघर्ष-विराम की घोषणा हुई। ट्रम्प ने इसका पूरा श्रेय लेना चाहा, लेकिन उन्होंने पाकिस्तान की भूमिका पर एक शब्द भी नहीं कहा। जबकि अमरीका को कभी भी भूलना नहीं चाहिए कि वह भी मानव इतिहास का सबसे घातक हमला जो आतंकवाद की कठोर मिसाल है, जब वर्ल्ड ट्रेड सैंटर के ट्विन टॉवर को तबाह कर दिया था। अल-कायदा के ओसामा-बिन-लादेन के निर्देश पर हुए उस हमले में लगभग तीन हज़ार नागरिक मारे गए थे, हज़ारों की संख्या में घायल हुए थे। दस अरब डॉलर की सम्पत्ति नष्ट हुई थी। चार लाख तीस हज़ार लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। अमरीका को दस साल का समय लग गया था लादेन को खोजकर मारने में। आप जानते हैं कि लादेन कहां छुपा था और किसने छुपाया था? वह एबटाबाद में पाकिस्तान की हकूमत द्वारा उपलब्ध करवाए गए एक सुरक्षित घर में अपने परिवार के साथ रह रहा था। जिस भवन में था वह पाकिस्तानी सैन्य अकादमी से कुछ ही दूरी पर था। तब पाकिस्तानी तंत्र का खुलासा होना बाकी रह गया था क्या? अब वर्तमान पर आएं। 
वर्तमान दौर में दर्जनों आतंकवादी और उन्हें हिफाजत से रखने वाले लोग पाकिस्तान में हैं। उन पर अमरीका प्रतिबंध भी लगा चुका है। इनमें मसूद अजहर का जैश-ए-मोहम्मद भी शामिल है। उसे 2019 से ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादियों की सूची में शामिल किया गया था। लश्कर-ए-तैयबा और हाफिज सईद के नेतृत्व में उसका प्रमुख संगठन जमात-उद-दावा भी अमरीका, रूस, ई.यू. और भारत द्वारा प्रतिबंधित संगठन है। 2008 का मुम्बई हमला याद करें उसके पीछे जाकिर रहमान लखवी का दिमाग काम कर रहा था। यह भी यू.एन. सुरक्षा परिषद् की प्रतिबंध सूची में शामिल है। दाऊद इब्राहिम को अमरीका ने वैश्विक आतंकवादी घोषित किया है। अमरीकी सरकार की अधिकृत सूची आतंकवादियों की शरण-स्थल के रूप में पाकिस्तान की अच्छी-भली पहचान कर चुकी है।
कई दशकों से यह सिलसिला चल रहा है कि पाकिस्तान ने किसी भी तरह की जवाबदेही से बचने के लिए और रियायतें पाने के लिए अपनी राजनीतिक स्थिति का लाभ उठाने में योग्यता बना ली है। भारत चुप नहीं रह सकता उसे विश्व भर के हर मंच से दोहरे मानदंडों का सख्त विरोध करना होगा। क्या दुनिया की आंखें बंद है। आई.एम.एफ. ने लोन देते हुए कुछ नहीं सोचा? भारत के पास आंखें बंद करने के नाम पर कुछ भी नहीं है। पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी ढांचा किसी भी समय कहीं भी नुकसान पहुंचा सकता है। हम किसी भी राजनीतिक सौदेबाज़ी का इस ढांचे की उपेक्षा कर कुछ भी कर पाने की हालत में नहीं हैं। भारत के पास आत्म-रक्षा का अधिकार है। ऑपरेशन सिंदूर में इसी अधिकार का प्रयोग कर कुछ गलत नहीं किया गया। हमारा संदेश स्पष्ट था। हम किसी कीमत पर आतंकवादी कार्रवाई को बर्दाश्त नहीं करने वाले। इस कार्रवाई पर विश्व बिरादरी से जैसी  एकजुटता की उम्मीद थी, वह पूरी नहीं हुई। हम चीन से हमदर्दी या स्पष्ट कथन की उम्मीद कम ही करते हैं, लेकिन बाकी देशों के संचालकों से ऐसी कोताही कैसे हो सकती है।

#व्यापारिक हित नैतिक हितों से ऊपर क्यों ?