मुर्दों की सुरक्षा की चिंता 

अब पहले जैसा मानवीय दृष्टिकोण रहा ही नहीं। यदि किसी की पीड़ा का एहसास होता, तो लोग पीड़ित व्यक्ति की सहायता के लिए बढ़-चढ़ कर आगे आते। परिवार में भी एक-दूसरे दु:ख दर्द बांटते, किन्तु ऐसा नहीं है। जीते जी किसी की पीठ पर संवेदना का हाथ रखने का चलन प्रचलन में नहीं है। वृद्धाश्रमों व अनाथालयों की बढ़ती संख्या देखकर यही कहा जा सकता है कि मानवीय संवेदनाएं दम तोड़ चुकी है। 
बहरहाल एक समाचार प्रकाश में आया है कि जिन्हें कुछ काम नहीं है, वे अपने लिए काम ढूंढने में जुटे हैं। बेरोज़गारों की भीड़ हाथ में ढपलियां लेकर सड़क पर उतर आई हैं। मधुर संगीत के अभाव में वह घिसे पिटे बेसुरे राग अलाप कर गाली खाने के लिए उद्यत है। कुछ लोग कब्रिस्तानों के इर्द गिर्द भीड़ लगा रहे हैं। कह रहे हैं कि किसी की कब्र खोदनी है। उस कब्र में से मुर्दे की हड्डियां निकालकर मुर्दे का डीएनए परीक्षण कराना है। डीएनए परीक्षण कराने के पीछे उनका मंतव्य क्या है, यह वह भी नहीं जानते। कहीं कोई गड़े मुर्दों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। लोग एकत्र हो रहे हैं। कुछ कब्र खोदने के लिए कुदाली और फावड़े लिए हुए हैं और कुछ मुर्दों को अपने सुरक्षा घेरे में रखे हुए हैं, ताकि कोई मुर्दों से छेड़छाड़ न कर सके। मुर्दा अपने विरोधियों और आने सुरक्षा कवचों की स्थिति से अनभिज्ञ है। वह अपनी प्रतिक्रिया देने की स्थिति में होता, तो कब का कब्र से निकलकर अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए मोर्चे पर खड़ा हो जाता। समस्या न मुर्दे को है और न ही उसके विरोधियों को। विरोधी भी जानते हैं कि मुर्दे का विरोध करके गड़े मुर्दे को उखाड़कर भी वे मुर्दे का कुछ नहीं बिगाड़ सकते, मगर बेचारे क्या करें, उन्हें तो विरोध करना है, मुर्दे को उखाड़ना भी नहीं है।  
कटु सत्य यह भी है कि वे जिस कब्र पर नज़र गड़ाए हुए हैं, वह कब्र उसी मुर्दे की है भी या नहीं, इसकी सटीक जानकारी भी उन्हें नहीं है, क्योंकि मुर्दे को द़फन करते समय तो मुर्दा विरोधी अस्तित्व में भी नहीं थे। सबसे बड़ी समस्या उनके समक्ष है, जिन्हें अपनी सेवा मुर्दे की सुरक्षा के प्रति मुस्तैद रहकर प्रदान करनी है। बहरहाल मुर्दों के लिए वे लोग रंगमंच पर तलवारें भांज रहे हैं, जो कतिपय रूप से ज़िंदा हैं। मुर्दे बेफिक्र हैं, वे अपनी चिंता क्यों करें, जब उनकी चिंता करने हेतु पूरी व्यवस्था जुटी है। सारा समस्या उन लोगों ने पैदा की है, जिन्हें मुर्दा होने से पहले अपने ज़िंदा होने का सबूत बार-बार प्रस्तुत करना है। सो सुझाव यही है कि कब्रों को काहे कुरेदते हो जनाब? उन्हें छोड़िए उनके ही हाल पर। देह का वजूद समाप्त होता है, तभी कब्रों में दफन होता है कोई। फिक्र उनकी कीजिए, जो ज़िंदा हैं।

-मो. 9758341282

#मुर्दों की सुरक्षा की चिंता