संगमरमरी चट्टानों का तीर्थ है भेड़ाघाट
पुण्य सलिला नर्मदा के दोनों किनारों पर खड़ी संगमरमरी चट्टानों वाला पर्यटन तीर्थ भेड़ाघाट अपने प्राकृतिक सौन्दर्य और अनोखी छटा के लिए विश्व विख्यात है। यह मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर से मात्र 21 किलोमीटर दूर है और समुद्र तल से 408 मीटर ऊंचाई पर है। यहां के अद्भुत सौन्दर्य को देखने के लिए हजारों विदेशी पर्यटक यहां आते रहते हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि में यहां जो छटा उभरती है, वह आंखों में नहीं समा पाती। यही कारण है कि यहां अनेक फिल्मों की शूटिंग हुई है और आज भी चलती रहती है।
क्यों पड़ा भेड़ाघाट नाम
किंवदन्तियों के अनुसार यह महान ऋषि भृग की तपस्या स्थली मानी जाती है, अत: इसका नाम भृग का अपभ्रंस होते होते भेड़ा हो गया। दूसरी मान्यता यह है कि यहां पुण्य सलिला नर्मदा और बावन गंगा नदियों की भिड़न्त होती है। भिड़न्त को संगम कहा जाता है। भिड़न्त को बोलचाल की भाषा में भेड़ा कहा जाता है। कालान्तर में यही भेड़ा, भेड़ाघाट हो गया। नर्मदा नदी का किनारा है तो घाट है ही।
मुख्य आकर्षण
भेड़ाघाट का सर्वाधिक आकर्षक स्थल है बंदर कूंदनी। नर्मदा के दोनों किनारों पर लगभग 105 फुट ऊंची संगमरमर की रंग बिरंगी चट्टानें खड़ी हैं। इस स्थल पर नर्मदा इतनी सिकुड़ गई है कि एक बन्दर एक चट्टान से छलांग लगा कर नर्मदा को लांघ दूसरी ओर की चट्टान पर जा सकता है।इस सिकुड़े हुये स्थान के मध्य से नाव पर यात्रा करने का सुख शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। मानो उसका एकाकार स्वयं प्रकृति के साथ हो जाता है। दूधिया चट्टानों के अतिरिक्त यहां नीले, कत्थई और गुलाबी रंग की शिरायें भी हैं जो सूर्य की किरणों के साथ इन्द्रधनुषी छटायें बिखेरती हैं। यहां के लोगों में यह विश्वास भी प्रचलित है कि देवराज इंद्र ने नर्मदा को आगे बढ़ाने के लिये इस मार्ग को स्वयं बनाया था। पत्थरों पर उकेरे हाथी के पैरों के चिन्ह आज भी दिखाई पड़ते है। मान्यता है कि ये ऐरावत हाथी के चिन्ह हैं। एक मान्यता यह भी है कि हनुमान जी जब संजीवनी बूटी लेने जा रहे थे तब उन्होंने यहां छलांग लगा कर मां नर्मदा को पार किया था। तभी से इस स्थान का नाम बंदर कूंदनी पड़ गया। बंदर कूंदनी से लगभग एक किलोमीटर पहले नर्मदा नदी काफी ऊंचाई से चट्टानों पर गिरती है। इस जल स्रोत के गिरने से चारों ओर शुभ्र धुआं सा उठता है। इसी कारण इसे धुआंधार कहा जाता है। यहां का दृश्य भी मनमोहक है। यहां सैंकड़ों पर्यटक स्नान का आनन्द लेते हैं। लोग यहां घंटों प्रकृति, जल और मनमोहक वातावरण का आनन्द लेते हैं तो भेड़ाघाट में नौका विहार का सुख लेते है।
पंचवटी घाट
यहीं पर एक घाट और है जिसे पंचवटी घाट कहा जाता है। यहां का सौन्दर्य भी देखते बनता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस क्षेत्र में तीन दिवसीय मेला लगता है, जिसमें दूर दराज से लाखों लोग आकर मां नर्मदा के पवित्र जल में स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं।
ग्वारीघाट और तिलवारा घाट
मां नर्मदा के दो तट और हैं जिन्हें ग्वारीघाट और तिलवारा घाट कहा जाता है। इन घाटों पर लोग संस्कारों संबंधी पूजा पाठ करने के लिये दूर-दूर से आते हैं। यहां मुंडन, पासनी, पिंडदान और क्रियाकर्म भी किया जाता है। धार्मिक तीर्थ के रूप में यहां की ख्याति बहुत दूर-दूर तक फैली हुई है। दोनों ही घाट अप्रतिम सौन्दर्य से युक्त हैं।
प्राकृतिक सौन्दर्य के अलावा यहां पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्त्व के अनेक स्थान हैं जो अपने आप में रोमांचक इतिहास संजोये हुए हैं। भेड़ाघाट का मनमोहक दृश्य देखे बिना मध्य प्रदेश का सम्पूर्ण पर्यटन पूरा नहीं माना जा सकता। यह सर्वथा दर्शनीय है, अवश्य देखने लायक।
कैसे पहुंचें भेड़ाघाट
भेड़ाघाट, जबलपुर को इटारसी से जोड़ने वाली मध्य रेलवे लाइन पर स्थित है। भेड़ाघाट में स्वयं छोटा सा रेलवे स्टेशन है जहां टे्रनें रूकती हैं। रेलवे स्टेशन से भेड़ाघाट मात्र 5 किलोमीटर दूर है। यहां से भेड़ाघाट जाने के लिए टैम्पो, आटो-रिक्शा आदि वाहन मिल जाते हैं। सबसे अधिक सुविधाजनक जबलपुर आ जाना है जहां से हर दस पन्द्रह मिनट बाद एक एक टैम्पो भेड़ाघाट के लिये मिल जाता है। जबलपुर बड़ा शहर है जो रेलवे से जुड़ा है। साथ ही साथ जबलपुर के लिये नागपुर, भोपाल, इलाहाबाद, सतना, खजुराहो, आगरा, जयपुर आदि स्थानों से बसें मिल जाती हैं। लक्जरी बसों के अतिरिक्त मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम की बसें भी मिल जाती हैं। (उर्वशी)