कहानी - ‘गृह प्रवेश’
टन्न...टन्नन-जैसे ही दरवाजे की घंटी टनटनाई विनीता ने कौन है? कहते हुए दरवाजा खोला, और सामने खड़े अपने छोटे देवर रवि को देखकर विनीता की खुशी का ठिकाना न रहा।
अरे रवि तुम...
आओ.. आओ.. भीतर आओ...
रवि बेटा, बाहर क्यों खड़े रह गये?
हां भाभी, आता हूँ।
भैया कहां पर हैं?
कहते-कहते रवि ड्राइंगरुम में आकर बैठ गया। अरे भई, विनीता.. कौन आया है? भीतर के कमरे में से रवि के बड़े भाई राकेश का स्वर गूंजा।
हां...आ...
अरे..आप..आइये..तो..बाहर निकल कर देखिए कि कौन आया है। विनीता ने उत्साह के साथ राकेश को ड्राइंगरुम में बुलाने के लिए आवाज़ लगाई।
जैसे ही राकेश ने ड्राइंगरुम में प्रवेश किया रवि ने उठकर बड़े भाई के चरण स्पर्श किए। राकेश ने रवि को दोनों हाथों से उठाकर सीने से लगा लिया। बेटे समान छोटे भाई से गले मिलते ही राकेश जी की आंखें स्नेह से छलक पड़ी।
छलक आए आंसुओं को पोंछते हुए राकेश ने कहा कि-
‘रवि बेटा! पूरे दो साल बाद आज तुम्हें हमारी याद आई। और बताओ, महानगर से कैसे इस छोटे शहर में तुम्हारा आना हुआ?’
रवि ने अनुराग भरे भाव से भाई को देखते हुए जबाव दिया कि-
‘बस भैया, मैंने खुद को काम में मशगूल रखते हुए, आपके आदर्शों को याद रखा। इसी का नतीजा है कि फैक्ट्री में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होने लगी है। भैया! आपके साथ बनी चार सालों की इस पहाड़ सी दूरी को मैंने काम में जुटे रहकर बिताया है।’
‘रवि! तुम काम के सिलसिले में हम लोगों से दूर महानगर में जाकर क्या बसे, तुम तो हमें बिल्कुल भूल ही गए हो।’
विनीता ने देवर पर अपना अधिकार प्रेम और अपनापन समझते हुए लम्बी सी उसांस..भरते हुए निराशा पूर्वक कहा था।
वैसे, विनीता ने इन चार सालों में देवर, देवरानी के दूर चले जाने से दोनों भाइयों के बीच रक्त सम्बन्धों में पहले सी गरमाहट एवं आत्मिक स्नेहिल भाव का अभाव महसूस किया था। देवरानी की बड़े शहर जाने की जिद पर, रवि को हमें अकेला छोड़ कर शहर जाकर बसना पड़ा था। इसीलिए न चाहते हुए भी, वो अपने मन में समाई मायूसी छिपाने की नाकाम सी कोशिश कर रही थी।
लेकिन, बातचीत के दौरान, रवि के चेहरे पर आत्म संतुष्टि के भाव परिलक्षित हो रहे थे। वह बोला कि-
‘नहीं भाभी!, ऐसी कोई बात नहीं है।’
दरअसल पिछले दो साल से फैक्ट्री के बढ़ते काम की जिम्मेदारी के कारण मैं बहुत अधिक व्यस्त रहने लगा हूँ।
वैसे इसका कारण यह है कि आप लोगों से, इस घर से दूर, बाहर जाकर सबसे पहले मैं अपना खुद का घर बनाकर खड़ा करना चाहता था। दिन रात कठिन मेहनत करके मैंने अब अपना घर बना लिया है। उसी के शुभ मुहुर्त के लिए आप दोनों को बुलाने के लिए आया हूँ। और ये टिन्नी मिन्नी..मेरी प्यारी-प्यारी भतीजियां ये दोनों कहां पर हैं ? ‘चलिए.. आप सब लोग तैयार हो कर मेरे साथ चलिए। पंडित जी ने दो दिन बाद सुबह ग्यारह बजे गृह प्रवेश का समय निर्धारित किया है। अत: मैं आपको साथ ले जाने के लिए कार लाया हूँ।’
‘रवि बेटा! ऐसे कैसे अचानक घर अकेला छोड़ कर जा सकते हैं? और फिर टिन्नी मिन्नी भी अभी स्कूल गई है। उनकी भी पढ़ाई का नुकसान होगा।’
‘लेकिन हां, तुम चिंता मत करो। परसों हम सब लोग मुहुर्त के समय से पूर्व ही पहुंच जाएंगे।’
राकेश ने रवि के कंधे पर हाथ रख कर समझाते हुए कहा।
चाय नाश्ता करके थोड़ी देर बाद रवि शहर के लिए निकल गया।
रवि के चले जाने के बाद विनीता के मन में छिपा कसैला पन जुबान पर आ गया। ऊपर से क्रोध को दबाते हुए बोली कि-
‘जब मैं ब्याहकर इस घर में आई थी, तब तुम्हारा यह छोटा भाई रवि, बिन मां का सात साल का छोटा सा बच्चा था। अपनी गोदी में लाड़ दुलार देकर, अपने बेटे की तरह मैंने इसे पाल पोस कर मैंने बड़ा किया है।’
‘हुंम्म..आज शहर जाकर बड़ा आदमी बन गया तो हमें अपनी कार दिखाने आया है। अपना बनाया मकान दिखाने के लिए उसे हमारी याद आई है। जब हमसे इतनी अधिक दूरियां बना ली है तो फिर हमें बुलाने की क्या ज़रूरत है?’
विनीता.. अब तुम ये बेकार की पुरानी बातें मत कुरेदो।
मुझे तो ये बताओं कि मुहुर्त में चलने के लिए क्या चाहिए। वो सामान मैं बाज़ार जाकर ला देता हूं।
‘वैसे, अगर तुम्हें याद हो तो, उसने बताया भी था...नयी फैक्ट्री में काम जमाने के कारण, दिन रात परिश्रम से जूझना पड़ता है। तरक्की करने हेतु मालिक को काम काज पर विशेष ध्यान केंद्रित करना पड़ता है। इसी कारण उसके पास समय का अभाव रहता है।’
राकेश ने विनीता के क्रोध को शांत कराने का प्रयास किया।
‘हां, हां.. भाई की वकालत तो तुम बहुत अच्छी तरह से कर लेते हो। मेरे बारे में बोलते हुए ही जुबान सिल जाती है तुम्हारी। कहने समझने को बहुत सी बातें हैं लेकिन मैं फिर भी कुछ नहीं कहती।’
कुछ याद है आपको-
एक बार जब उसे बुखार से तप रहा था। वैद्य जी की पुड़िया भी आराम नहीं कर रही थी। तब पूरी रात आंखों में जागकर मैं उसके माथे पर ठंडे पानी की ठंडी पट्टी रखती रही थी। जिसके कारण बुखार की तीव्रता कम हो सकी थी। और वह जल्दी ही स्वस्थ चित्त हो गया था। तभी उसने मेरे आंचल में छिपते हुए कहा था कि-‘भाभी जब मैं बड़ा हो जाऊंगा, तब आपको और भैया को कोई काम नहीं करने दूंगा। मैं आप लोगों की खूब सेवा करूंगा।’ (क्रमश:)