आग की ज्वाला से फूलों की खेती

युद्ध के नगाड़े बजते हैं। तबाही के मन्ज़र में से नव-जीवन के पल्लवित होने की मंशा ज़ाहिर की जाती है। युद्ध के मसीहा धरती के सीने पर लाखों टन बारूद गिरा कर मरते हुए लोगों के चीत्कार में से नव-जीवन के पदार्पण का सन्देश देते हैं।
विडम्बना यह है कि परमाणु बमों के ठेकों के मालिक, दिन-रात इन ढेरों को पहाड़ बनाने की फिराक में लगे रहते हैं। समय के मठाधीश मृत्यु बांटने वाले इन शस्त्रों का एकाधिकार चाहते हैं। उनके अतिरिक्त अगर कोई इस निषिद्ध क्षेत्र में, जिसे वे अपनी बपौती समझते हैं, में प्रवेश करने का साहस करता है तो उसके गले में विश्व युद्ध की सम्भावना का तावीज़ लटका दिया जाता है।
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। इसलिए उजाले की आमद चाहने वाले व्यक्ति के लिए अंधेरे का भविष्य निर्धारित है। ज़िन्दगी के फूलों की तिजारत के नाम पर हथियारों की तिजारत चलते रहने की अदम्य इच्छा महाबलियों के द्वारा बांटी जाती है।
इस तिजारत का चलना ज़रूरी है, इसलिए दुनिया के कभी एक कोने से और कभी दूसरे कोने से आदमी का आदमी से भिड़ना ज़रूरी है। दूसरे महायुद्ध में हीरोशिमा और नागासाकी पर उन्होंने अपने बम गिराए। पीढ़ियां गुज़र जाने के बाद भी उसका खमियाज़ा उसकी कीमत भावी पीढ़ियां चुकी रही हैं।
‘अब ऐसा ़खाक और खून का खेल कभी नहीं खेला जाएगा’, इसका प्रण करने या इसकी संधि करने के बावजूद इसकी विरासत का बोझ ढोने का संदेश केवल तीसरी दुनिया के अन्धकूप से उभरने की इच्छा रखने वाले दशों के नाम ही कर दिया है। ताकत के वीटो की ताकत हमेशा चन्द देशों के हाथ में रहेगी। अंधेरे, पिछड़ेपन और गरीबी में जीते लोगों का भाग्य भूख और बेकारी की स्याही से लिखा गया है। उन्हें इस स्याही का रंग बदलने की इजाज़त नहीं है।
पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और मौसम में गुम हो जाने के बाद खेती से लेकर उत्पादन को जुआ किसने बनाया, उन्हें यह जानने की ज़रूरत नहीं। बड़े लोगों की औद्योगिक क्रांतियों से पैदा प्रदूषण तो अतीत की बात हो गया। अब वे तो स्वचालित रोबोटों की सहायता से अंतरिक्ष विजय के सपने देख रहे हैं। वे क्यों झांकें कि पिछली सदियों में उनकी प्रगति की अन्धी दौड़ भी इस प्रदूषण की ज़िम्मेदार रही है। ज़िम्मेदारी तो उनकी है जो आज गुरबत के अंधेरे से बाहर आने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे सब देश ही इस पर्यावरण प्रदूषण या ग्लोबल वार्मिंग की मौत का हरकारा हो जाने के ज़िम्मेदार हैं। वहीं स्वयं इस उभरती मौत की आपदी दानवता से निपटे। हम अपनी आर्थिक सम्पन्नता से पैदा संसाधनों को उनमें बांटने के लिए तैयार नहीं।
हमें तो इस सामर्थ्य से अपने-अपने देश के लिए शक्ति के पहाड़ रचने हैं। आमने-सामने के द्वन्द्व को त्याग हज़ारों मील दूर से महायुद्ध रच सकने की क्षमता वाली मिसाइलों के भंडारों को पैदा करना है। ऐसे ड्रोन बनाने हैं, जिनका संचालक दूर बैठ कर भी आपके ठिकानों को खण्डहर बना देता है, और अपने पर आंच भी नहीं आने देता।
हम यह क्षमता पैदा करके इस दुनिया का इतिहास ही नहीं, भूगोल भी बदलने की अन्धी दौड़ में लगे हैं। हमें इस पर्यावरण प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिगं के विरुद्ध दौड़ में शरीक होने के लिए न कहो। आपको प्रगति करनी है तो इन नई पैदा होती हुई विडम्बनाओं से खुद निपटो। अब पहाड़ों की चोटियों पर ग्लेशियर नहीं जीते। पैदा होते ही इस बढ़ते वैश्विक ताप की वजह से नदियों के बहाव को बाढ़ में बदल देते हैं। प्रलयंकार बाढ़ की सृष्टि पैदा हो जाती है, तो यह आपकी समस्या है।
हम इसके लिए अपने खजानों के मुंह नहीं खोलेंगे। बड़े लोग कहते हैं, प्रदूषण से पैदा हो गये गुमशुदा मौसमों की तलाश हम नहीं करेंगे। हमें इस पैसे से पैदा शक्ति को परमाणु बम से आगे के प्रलयंकारी हथियारों की शक्ति को पैदा करना है। गरीबी का अंधेरा आपकी समस्या है, इससे खुद निपटिये। हमें दुनिया का भूगोल बदल कर अपने देश के नक्शे में शामिल करना है। हम युद्धों की ज्वाला भड़का कर शांति के मसीहा कहलाएंगे। दुनिया को तीसरे महायुद्ध के दहाने तक ले जाएंगे। आपके लिए युद्ध लड़ते हुए आपके मूल्यवान खनिजों की कीमत चाहेंगे, क्योंकि हमने आप जैसे नाचीज़ों को युद्ध लड़ते रहने के काबिल बनाया है।
जी हां, यही है आज के इस नये युगे की वास्तविकता। मुंह में राम-राम और बगल में छुरी की कहावत तो पुरानी हो गई। अब होठों से भी युद्ध का आह्वान है, और अपनी बारूदी ताकत से हरी-भरी बस्तियों को उजाड़ श्मशान बनाने की मंशा।
इसे विडम्बना न कहिये, न बदलते ज़माने की पैदा विसंगतियों से उपजा कोई व्यंग्य। यह वह नया सच है, जिसे ‘समर्थ को नाही दोष गोसांयी।’ हम जानते हैं, मारक शक्तियों का विकास के लिए भी उपयोग किया जा सकता है। परमाणु शक्ति का शांतिपूर्ण प्रयोग नई दुनिया के लिए फूलों भरी दुनिया पैदा कर सकता है, लेकिन इसके लिए आपका विश्वास हम नहीं करेंगे। पिछड़े हुए असभ्य लोगों से कायाकल्प की उम्मीद नहीं की जा सकती। शक्तिशाली ही नई शक्ति का संदेशवाहक बन सकता है। यह संदेश देने का अधिकार हमेशा हमारे पास रहा है, हमारे पास ही रहेगा। इसलिए फिलहाल यह नज़ारा देखिये, बम विस्फोटों से पैदा अग्नि ज्वाला में से नये फूलों के खिलने की कल्पना का संदेश सुनिये। बड़े लोगों ने हमें समझाया है।

#आग की ज्वाला से फूलों की खेती