अनोखा घटनाक्रम है धनखड़ का त्याग-पत्र

संसद अधिवेशन शुरू है, महीने भर का यह अधिवेशन है। पहले कुछ दिन विपक्षी और सरकारी पक्ष के नेताओं और सदस्यों ने आपस में लड़ते हुए बिना किसी गम्भीर विचार-चर्चा के गंवा दिए। इस समय देश के सामने कई ज्वलंत मुद्दे दरपेश हैं, जिन पर विपक्ष चर्चा की मांग कर रहा है। इन मुद्दों में पहलगाम में हुआ हमला, उसके बाद भारतीय सेना द्वारा किया गया ऑपरेशन सिंदूर शामिल है। दूसरी तरफ बिहार के चुनाव सिर पर हैं। चुनाव आयोग इस बात पर बज़िद है कि यह चुनाव मतदाताओं की गहन पहचान के बाद नई मतदाता सूची के आधार पर ही करवाए जाएंगे। विपक्ष इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज कर रहा है और इस संबंध में संसद में चर्चा चाहता है। इस संबंध में विगत लम्बी अवधि से संसद से बाहर राजनीतिक स्तर पर बड़ा विवाद चला आ रहा है। राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और ‘इंडिया गठबंधन’ में शामिल अन्य पार्टियां इस बात पर ज़ोर देती रही हैं कि मतदाताओं की पहचान के लिए जिस तरह का ढंग-तरीका चुनाव आयोग अपना रहा है, उससे ज्यादातर लोगों के वोट कटने की सम्भावना बन गई है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट के पास भी पहुंचा था, परन्तु उसकी ओर से चुनाव आयोग को ऐसे सर्वेक्षण की इजाज़त दे दी गई। 
चुनाव आयोग का यह प्रभाव है कि प्रदेश में बहुत-से वोट बोगस बनाए गए हैं, जिनकी व्यापक स्तर पर जांच-पड़ताल ज़रूरी है। विपक्षी पार्टियां इसके लिए भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों पर यह संदेह कर रही हैं कि चुनाव आयोग द्वारा किसी न किसी ढंग से ऐसा भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। इस मामले को लेकर कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी पार्टियां अब संसद की कार्रवाई में रुकावट डाल रही हैं। इस अधिवेशन में दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस जसवंत वर्मा के विरुद्ध महाभियोग लगा कर उनके विरुद्ध कार्रवाई करने की प्रक्रिया भी शुरू की जा रही है। जस्टिम वर्मा के विरुद्ध महाभियोग के तहत कार्रवाई के लिए सरकार लोकसभा में प्रस्ताव पेश करना चाहती थी। ऐसा करने के लिए उसे कम से कम लोकसभा के 100 सदस्यों के हस्ताक्षर की ज़रूरत थी। सरकार का यह यत्न था कि इसके लिए विपक्षी पार्टी के सदस्यों को भी साथ लिया जाए, ताकि यह कार्रवाई संयुक्त रूप में की जाए। दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व में राज्यसभा के विपक्षी पार्टियों से संबंधित सदस्यों ने भी ऐसा प्रस्ताव लाने के लिए 50 से अधिक सदस्यों के हस्ताक्षरों वाला पत्र राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ को दे दिया। देश के उप-राष्ट्रपति ही राज्यसभा के चेयरमैन होते हैं। धनखड़ ने लोकसभा के स्पीकर के साथ विचार-विमर्श करने की बजाए विपक्ष के हस्ताक्षरों वाला प्रस्ताव ही कार्रवाई करने के लिए राज्यसभा में पढ़ कर इस प्रस्ताव को बहस के लिए दाखिल कर लिया।
इसके बाद उन्होंने सोमवार रात्रि अचानक अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया। यह एक ऐसी कार्रवाई थी जिसने देश की राजनीति में भूकम्प ला दिया। चाहे धनखड़ ने इस त्याग-पत्र का कारण अपने स्वास्थ्य को बताया है, परन्तु जिस ढंग-तरीके से अचानक ही इसकी घोषणा हुई है, वह सभी को आश्चर्यचकित करने वाली ज़रूर है। जहां तक जगदीप धनखड़ का संबंध है, वह शुरू से ही तेज़-तर्रार स्वभाव वाले रहे हैं और अपनी बात बेझिझक रखने के आदी हैं। पिछले तीन वर्ष से वह उप-राष्ट्रपति के पद पर रहे हैं। समय-समय पर उनकी ओर से दिए जाते बेबाक बयानों से सरकार सहित अन्य पार्टियां भी उनसे नाराज़ होती दिखाई देती रही हैं। उनकी ओर से जिस ढंग से राज्यसभा की कार्रवाई चलाई जाती रही है उससे अक्सर विपक्षी पार्टियों के नेता नाराज़ दिखाई देते रहे हैं। एक बार तो विपक्ष ने धनखड़ के विरुद्ध महाभियोग लाकर उन्हें हटाने की मांग करने के लिए भी प्रस्ताव पेश करने हेतु कार्रवाई आरम्भ कर दी थी, परन्तु अब उनकी ओर से अचानक त्याग-पत्र देने के बाद विपक्षी पार्टियों ने उनके पक्ष में बयान देने शुरू कर दिए हैं, क्योंकि इससे सरकारी पक्ष की कुछ नामोशी ज़रूर हुई है।
अब इस नए मामले को लेकर भी संसद की कार्यवाही के चलते दोनों पक्षों के पुन: आमने-सामने होने की सम्भावनाएं बनती दिखाई दे रही हैं। नि:संदेह घटित इस घटना ने भारत के संसदीय इतिहास में नया और अनोखा अध्याय ज़रूर जोड़ दिया है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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