आपसी फूट के कारण कमज़ोर होती जा रही है पंजाब कांग्रेस
2027 की दावेदारी पर भी लग सकता है प्रश्न-चिन्ह
इस दौर-ए-जहिल में ये सियासत फसाद है,
हर सू है इ़ख्तल़ाफ कहां इत्तिहाद है।
(दौर-ए-जहिल = अज्ञानता का दौर)
हैदर रज़ा का यह शे’अर वैसे तो इस समय लगभग प्रत्येक राजनीतिक पार्टी पर चरितार्थ होता है, परन्तु यह पंजाब कांग्रेस पर कुछ अधिक ही लागू हो रहा है, क्योंकि जितनी फूट इस समय पंजाब कांग्रेस में है, उतनी किसी अन्य पार्टी में नहीं है। पंजाब कांग्रेस की यह फूट लुधियाना पश्चिम विधानसभा के उप-चुनाव में और भी उभर कर सामने आई है। इस कारण पंजाब कांग्रेस जिसे 2027 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के प्राकृतिक विकल्प के रूप में देखा जा रहा था, अब हाशिये की ओर खिसकती प्रतीत हो रही है। जिस तरह की हवा चल रही है, उससे प्रतीत होता है कि तरनतारन विधानसभा के उप-चुनाव कांग्रेस के लिए और बड़ी ठेस होगी। हमारी जानकारी के अनुसार इस समय पंजाब कांग्रेस की अध्यक्षता के इच्छुकों में एक दौड़-सी लगी हुई है। इस समय पंजाब कांग्रेस की अध्यक्षता के इच्छुकों की गिनती करना कठिन प्रतीत होता है। आम तौर पर किसी राजनीतिक पार्टी के दो या तीन गुट ही होते हैं, परन्तु पंजाब कांग्रेस में इस समय कोई भी नेता किसी भी दूसरे नेता को अपना नेता नहीं मान रहा। इसलिए इस समय कांग्रेस में जितने नेता हैं, उतने ही गुट हैं। हमारी जानकारी के अनुसार इस समय दर्जन से भी कहीं अधिक नेता पंजाब कांग्रेस की अध्यक्षता के इच्छुक बताए जा रहे हैं। हालांकि पंजाब कांग्रेस के कई नेताओं पर ये आरोप लगते हैं कि वे ई.डी. या विजीलैंस से डर कर शासकों के साथ समझौते करकें चल रहे हैं, परन्तु यह स्पष्ट है कि यदि कांग्रेस ने 2027 के विधानसभा चुनाव में जीत प्राप्त करनी है तो उसे पंजाब कांग्रेस को कोई ऐसा नेता देना होगा जो एक ओर ई.डी., विजीलैंस से न डरता हो और दूसरी ओर पंजाब कांग्रेस के अलग-अलग नेताओं को साथ लेकर चल सकता हो। किसी भी पार्टी में विचारधारा का विरोध होना लोकतंत्र का प्रतीक है, परन्तु यह एक-दूसरे का विरोध दिखाई दे तो यह पार्टी का अनापेक्षित नुकसान कर देता है।
मैं दे रहा हूं तुझे खुद से इ़िख्तल़ाफ का ह़क,
ये इ़िख्तल़ाफ का ह़क है म़ुखाल़फत का नहीं।
(ज़हीर)
सभी धर्मों को प्रतिनिधित्व
इस बीच चर्चा है कि कांग्रेस हाईकमान हरियाणा के नतीजों से सीखे सबक के दृष्टिगत पंजाब के आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर काफी परेशान है। हरियाणा में कांग्रेस की फूट ही उसे ले बैठी थी। पंजाब का हाल तो हरियाणा से बुरा है। इसलिए कांग्रेस हाईकमान पंजाब में जहां एक ओर सामाजिक इंजीनियरिंग करने के बारे में सोच रही बताई जाती है, वहीं पंजाब कांग्रेस की फूट खत्म करने के लिए वर्ग विभाजन के लिहाज़ से पंजाब के अलग-अलग वर्गों को प्राथमिकता देने की तैयारी में भी बताई जाती है। चर्चा है कि कांग्रेस हाईकमान चार तरह के वर्गों को रिझाने के लिए दलितों, हिन्दुओं, जाट सिखों तथा ओबीसी वर्गों का एक-एक प्रतिनिधि आगे लाने के बारे में सोच रही है। बताया जा रहा है कि इनमें से एक वर्ग का नेता पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष, दूसरे वर्ग का नेता विपक्ष का नेता, तीसरे वर्ग में से संसदीय बोर्ड का प्रमुख तथा चौथे वर्ग का कोई नेता चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख बनाया जा सकता है।
अध्यक्ष पद के दावेदार
कुर्सी तो सिर्फ एक है कीजै तो क्या कीजै सनम,
चाहने वालों का जबकि है नहीं कोई शुमार।
-लाल फिरोज़पुरी
इस समय पंजाब कांग्रेस की अध्यक्षता के इच्छुकों की एक लम्बी सूची है। चाहे कई मौखिक बातचीत में अध्यक्ष पद के दावेदार होने की बात नहीं भी स्वीकार करते, परन्तु वे अपने तौर पर इसके लिए कोई कसर भी नहीं छोड़ रहे। ़खैर, सबसे पहले तो मौजूदा अध्यक्ष अमरिन्दर सिंह राजा वड़िंग ही अभी और समय अध्यक्षता करने चाहते हैं जबकि सदन में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा भी अब पंजाब कांग्रेस की अध्यक्षता की दौड़ में शामिल हो गए बताए जा रहे हैं। वैसे जाट सिख वर्ग के सबसे अधिक नेता इस दौड़ में शामिल हैं। इनमें से मुख्य रूप में सुखजिन्दर सिंह रंधावा जो इस समय पंजाब कांग्रेस के प्रभारी तथा हाईकमान दोनों के निकट हैं, राणा गुरजीत सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू, परगट सिंह, सुखपाल सिंह खैरा के नाम भी चर्चा में हैं। इनमें से राणा गुरजीत सिंह को एक मज़बूत लॉबी का समर्थन प्राप्त है जबकि सिद्धू की निकटता प्रियंका गांधी से है। परगट सिंह को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के निकट माना जाता है और खैरा जिस प्रकार सरकार को घेरते हैं, वह अपने आप में उनकी ताकत है।
जबकि हिन्दू वर्ग में से हालांकि लगभग सात नाम चर्चा में हैं, परन्तु सबसे आगे वियजइन्द्र सिंगला, भारत भूषण आशू तथा राणा के.पी. के नाम लिए जा रहे हैं। सिंगला कांग्रेस हाईकमान के करीबी हैं, भारत भूषण आशू के हाईकमान में कुछ संरक्षक हैं और वह जुझारू नेता माने जाते हैं। हालांकि वह लुधियाना पश्चिम का उप-चुनाव हारे हैं, परन्तु उनकी लड़ाई कांग्रेस की आपसी फूट के बावजूद काफी मज़बूत थी जबकि राणा के.पी. की किसी भी गुट से बिगड़ी हुई नहीं है।
पिछड़ी श्रेणियों में से भी तीन नेताओं के नाम लिए जा रहे हैं। इनमें पूर्व मंत्री संगत सिंह गिलजियां, हरदयाल सिंह कम्बोज तथा मदन लाल जलालपुर के नाम चर्चा में हैं। गिलजियां को प्रवासी भारतीय कांग्रेसियों का भारी समर्थन प्राप्त है और उनका निडरता से ई.डी. केस का सामना करना भी उनके पक्ष में जाता है।
जबकि दलित वर्ग में सबसे ऊपर नाम पूर्व मुख्यमंत्री चरणचीत सिंह चन्नी का लिया जा रहा है। हालांकि पंजाब कांग्रेस के कुछ नेता स्वयं अध्यक्ष न बन सकने की स्थिति में या पार्टी की ओर से किसी दलित को ही अध्यक्ष बनाने की हालत में चन्नी के विरोध में डा. अमर सिंह तथा सुखजिन्दर सिंह डैनी बंडाला के नाम आगे कर रहे बताए जाते हैं। चन्नी के पक्ष में उनका प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ मुख्यमंत्री होते हुए टकराव में आना भी उनके पक्ष में जा रहा है, जिस कारण अभी भी उन्हें लोकसभा सांसद होने के प्रोटोकाल के अनुसार अलाट होने वाले टाइप-7 बंगले के बजाय वैस्ट कोर्ट के एक कमरे में ही रहना पड़ रहा है, परन्तु उनके खिलाफ भी एक चर्चा है कि उन्होंने मुख्यमंत्री बनते समय हाईकमान के साथ किए वादे पूरे नहीं किए थे। वैसे उन्हें सबसे अधिक समर्थन अम्बिका सोनी का मिल रहा बताया जा रहा है।
पंजाब कांग्रेस का प्रभारी
वैसे तो भूपेश बघेल को पंजाब कांग्रेस का प्रभारी नियुक्त किए अभी कोई अधिक समय नहीं हुआ, परन्तु कांग्रेसी गलियारों में चर्चा है कि पंजाब कांगे्रस का प्रभारी बदला जा सकता है, क्योंकि एक ओर तो वह निजी रूप में उलझे हुए हैं। उनके बेटे चैतन्य बघेल की शराब घोटाले में गिरफ्तारी हुई है और ़खुद उन पर भी तलवार लटकती बताई जा रही है। दूसरी ओर पंजाब कांग्रेस के कई नेता यह आरोप लगा रहे हैं कि वह प्रताप सिंह बाजवा, सुखजिन्दर सिंह रंधावा तथा अमरिन्दर सिंह राजा वड़िंग के अतिरिक्त किसी की नहीं सुनते। हालांकि उनकी ड्यूटी सभी गुटों तथा नेताओं को एकजुट करने की है, परन्तु वह स्वयं ही एक ओर चल रहे हैं। ऐसी स्थिति पंजाब कांग्रेस को 2027 के चुनावों के लिए एकजुट करने के लिए ठीक नहीं है। इसलिए यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि उनके स्थान पर पंजाब कांग्रेस का कोई नया प्रभारी नियुक्त किया जा रहा है।
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