सबक नहीं सीख रहा पाक, आतंकियों को फिर कर रहा फंडिंग

पाकिस्तान करोड़ों रुपये लगाकर आतंकियों को फिर खड़ा कर रहा है। फिर से घुसपैठ की योजना बना रहा है। इस तरह की सूचनाएं बताती हैं कि अपने इतिहास के मुताबिक वह विगत से कोई सबक नहीं सीखता। उसे निर्णायक तौर पर एक गंभीर सबक सिखाना ही होगा।
इस्तीफा दे चुके उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के द्वारा एक बार फिर यह सार्वजनिक तौर पर दुहराया गया है कि ऑपरेशन सिंदूर अभी खत्म नहीं हुआ है। बेशक, पाकिस्तान और शेष विश्व के लिए इसका बार-बार दोहराना आवश्यक है, क्योंकि पाकिस्तान का यह इतिहास रहा है कि वह अपनी हार कभी कुबूल नहीं करता। निर्णायक पराजय से कुछ भी कम रहा तो वह बेशर्मी से उसे अपनी जीत प्रचारित करता रहता है, युद्ध विराम का तो कहना ही क्या। यही नहीं, भले उसको मुंह की खानी पड़े, वह पलटवार का प्रयास करता है। 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति या कारगिल युद्ध के बाद क्या हुआ, प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। 1965 के ‘ऑपरेशन रिडल’ की याद करें। पाकिस्तान के ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ और ‘ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम’ को भारत ने किस तरह धूल चटाई थी कि पूरी पाकिस्तानी सेना हिल गई थी, लेकिन पाकिस्तान फिर धूल झाड़कर निर्लज्जता ओढ़ आगे आ गया। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद अगले कुछ महीनों में ही राजस्थान, पंजाब की सीमा से घुसपैठ की उसकी तैयारी चल रही बताई जा रही है।
पाकिस्तान के मौजूदा हालात में भले ही फील्ड मार्शल बन आसिम मुनीर अब बेहद ताकतवर हो चुके हों लेकिन इस बात की आशंका कम नहीं कि चंद महीनों के अंदर ही सेना और सरकार दोनों ओर से उनकी इस सत्ता को चुनौती मिलने लगेगी। ऐसे अकसर होता आया है कि पाकिस्तानी नेता अपने संकट का हल भारत-पाक युद्ध में तलाशते हैं। ऐसी में हड़बड़ी में वे किसी भी तरह का दुस्साहसी फैसला ले सकते हैं, भारत के साथ एक सैन्य झड़प का भी। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से सबक मिला होगा, यह सोच बेमानी है।
आज जबकि पाकिस्तान अपने पालतू आतंकवाद को फिर से खड़ा करने में लगा हो और सियासी अस्थिरता भी दिखती हो, ऑपरेशन सिंदूर के जारी रहने की बात लगातार कहना आवश्यक है।    
‘ऑपरेशन सिंदूर’ में पाकिस्तानी सैन्य हवाई अड्डों की ध्वस्त हुई कुछ हवाई पट्टियां आज भी बंद हैं, कुछ की मरम्मत चल रही है। विदेशी इमदाद की बदौलत वह उस झटके से उबर रहा है। उसे पता है कि भारतीय विस्फोटक या मिसाइल की पहुंच उसके नाभिकीय ठिकाने तक है, परन्तु इस सबके बावजूद पाकिस्तान सुधर नहीं रहा। वजह पाकिस्तान को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से 12 हज़ार और एशियन डिवेल्पमेंट बैंक से तकरीबन 8 हज़ार करोड़ डॉलर मिले। तय है कि ये पैसे पाकिस्तान को आतंक की मुरझाती बेल में पानी देने के लिये नहीं मिले, परन्तु वह यही कर रहा है। वह इन पैसों से हथियारों की खरीदारी भी कर रहा है। वह अपने पोषित आतंकवाद को फिर जगा रहा है। 
बहावलपुर को 14 करोड़ तो लश्कर-ए-तैयबा के गढ़ मुरीदके को 15 करोड़, मुजफ्फराबाद को 11 करोड़ रुपये दिए गए। मदरसों के नाम पर आतंक का पाठ पढ़ने वाले 12 हज़ार छात्र लौट आए हैं। पाकिस्तान की सेना ने अपने आर्मी वैल्फेयर फंड और आर्मी हाउसिंग स्कीम का पैसा इस ओर लगाया है। यही नहीं कई सूत्रों का दावा है कि इस मामले में सरकारी पैसे का खुलकर इस्तेमाल हो रहा है। साफ  है कि सरकार, सेना और आतंकी संगठनों की सांठ-गांठ है, तभी उन पर हाल तक 40 करोड़ से ज्यादा का खर्च किया जा चुका है। इस धन में वह राशि भी शामिल है, जो पाकिस्तान ने किसी दूसरे सामाजिक उत्थान के पहलू पर कार्य करने के लिए दान में उगाहे थे। इसमें सामाजिक उत्थान बस इतना है कि आतंकियों के 15 प्रभावित परिवारों को 10 करोड़ बांटा गया है।
 मुजफ्फराबाद, मुरीदके, कोटली, भिंबर और पाकिस्तानी पंजाब प्रांत में चीनी कंपनियों को मरम्मत को ठेके मिले हैं। ज़ाहिर है चीन भी यह जान रहा है कि पाकिस्तान किन इरादों से क्या तैयारी कर रहा है। जब देशी-विदेशी मीडिया को यह खबर है तो भारतीय सेना तथा सत्ता को इससे ज्यादा और पुख्ता तथ्य पता होंगे। भारत के इस पर आवाज़ उठाने पर कुछ देश यह कह सकते हैं कि भारत का पाकिस्तान को बदनाम करने की मंशा से यह अपने निहित स्वार्थों के तहत कर रहा है, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ  संघर्ष में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने और हर कीमत पर उसे रोकने का दावा करने वाले यह सब देखकर कि पाकिस्तान आतंक का पोषण पूरी दिलेरी से कर रहा है, वे क्यों चुप हैं? कंगाल हो रहा पाकिस्तान स्वास्थ्य, शिक्षा, अवसंरचना निर्माण में खर्च करने की बजाय आतंक, हथियार पर भारी व्यय कर रहा है, यह उनको क्यों नहीं खटक रहा।  
 किसी सैन्य ऑपरेशन का हमेशा यही मतलब नहीं होता कि उसके दौरान दो सेनाएं आमने-सामने भिड़ेंगी, ज़मीनी, हवाई हमले होंगे। इससे इतर अभियान के दौरान दूसरी सैन्य रणनीतियां सतत जारी रहती हैं यथा आंतरिक तैयारी, सीमा पर तैनाती, मज़बूती, हरबे हथियारों को आवश्यकतानुसार उन्नत करना व खरीदना। सैन्य रणनीतियों के अलावा कूटनीतिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर परोक्ष युद्ध अभियान जारी रहता है। बेशक सेना और हमारी सरकार इसमें रत होगी। अत: सही है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ अभी खत्म नहीं हुआ है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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