अधिक विकास और रोज़गार का समझौता
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की दो दिवसीय ब्रिटेन यात्रा दोनों देशों के गहन होते संबंधों के सन्दर्भ में कई पक्षों से ऐतिहासिक कही जा सकती है। विगत लम्बी अवधि से ब्रिटेन ने हमेशा प्रत्येक पक्ष से भारत के साथ खड़े होने को प्राथमिकता दी है। कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा पहलगाम में किए गए हमले के समय भी ब्रिटेन ने डट कर भारत के साथ खड़े होने की प्रतिबद्धता दिखाई थी और कहा था कि आतंकवाद के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर अमरीका के नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद व्यापारिक संबंधों को लेकर भारत और अमरीका के बीच काफी टकराव चला आ रहा है और दोनों देशों में दूरियां भी बढ़ी हैं। पश्चिमी देशों के साथ भी अमरीका के कड़े व्यापारिक मतभेद चले आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में ब्रिटेन और भारत दोनों के लिए आपसी व्यापारिक संबंधों को बढ़ाना अधिक महत्त्वपूर्ण है।
जहां तक ब्रिटेन का संबंध है, उसने विगत अवधि में स्वयं को यूरोपियन यूनियन से अलग कर लिया था, जिस कारण उसे हुए नुकसान संबंधी लगातार चर्चा होती रही है, परन्तु इसी ही समय में ब्रिटेन ने हमेशा भारत के निकट होने का पूरा यत्न किया है। लगभग पिछले 3 वर्ष से दोनों देशों के बीच व्यापार और अन्य प्रत्येक तरह के मेल-मिलाप को लेकर बातचीत चलती रही है। इस वर्ष 6 मई से दोनों देशों के प्रमुखों ने यह कहा था कि वह आपसी संतुलन को बढ़ाने के लिए दोनों देशों की ओर से आयात और निर्यात संबंधी लगाए करों (टैक्सों) को बड़ी सीमा तक कम करेंगे और यह भी कि वर्ष 2035 तक नए समझौते के अनुसार दोनों देश आपस में विश्वास बढ़ाने के साथ-साथ तकनीक, रक्षा और शिक्षा के क्षेत्र में अधिक से अधिक भागीदारी बढ़ाएंगे। साथ ही लोगों के आपसी मेल-मिलाप में भी और वृद्धि की जाएगी।
जहां तक ब्रिटेन का संबंध है, इसने बस्तीवाद के युग में अपनी ईस्ट इंडिया कम्पनी और प्रत्यक्ष रूप से अपनी सत्ता से भारत पर लगभग 200 वर्ष शासन किया था। इन दो सदियों की दास्तान भारत के लिए कष्टदायक और देश को उजाड़ने वाली रही है, परन्तु देश की स्वतंत्रता के बाद और कामनवैल्थ (राष्ट्रमंडल) देशों द्वारा और अन्य माध्यमों द्वारा ब्रिटेन ने भारत को हर तरह से मान्यता दी है। 60वें दशक में लाखों की संख्या में भारतीय, जिनमें ज्यादातर पंजाबी थे, ब्रिटेन में जा बसे थे। आज वहां उनका हर तरह से अच्छा कारोबार है। आज वहां के समाज में भारतीयों के प्रभाव को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। जहां तक आर्थिकता का सवाल है, ये दोनों बड़े लोकतांत्रिक देश हैं और अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर इनकी आर्थिकता कुछ देशों को छोड़ कर बड़ी मज़बूत और मुकाबले वाली रही है। अब दोनों देशों में मुक्त व्यापार वाले समझौते पर हस्ताक्षर होने से इनके संबंधों में और भी निकटता और गहराई आ सकती है। दोनों देशों के प्रमुखों ने यह भी कहा कि उनका उद्देश्य 2030 तक दोनों देशों के बीच मौजूदा व्यापार को 56 अरब डॉलर (4846 अरब रुपए) के व्यापार को दोगुणा करना है। भारत ब्रिटेन के सामान चॉकलेट, बिस्कुट, शृंगार सामग्री, व्हीस्की, कारों, हवाई जहाज़ों के पुज़र्े, इलैक्ट्रानिक उपकरणों और उद्योग से संबंधित मशीनरी को भारतीय बाज़ार में आने की पूरी छूट देगा, जबकि पशमीना, बासमती चावल, खेलों का सामान, आभूषण, चमड़ा, आई.टी. सेवाएं, हल्दी, दार्जलिंग चाय, कपड़े, खेलों का सामान, चप्पलें और कई तरह के अन्य कृषि उत्पादों को भारत से ब्रिटेन के बाज़ारों में भेजा जाएगा। इसके अतिरिक्त भारत से तकनीकी पेशेवर लोगों को भी ब्रिटेन में अधिक रोज़गार के अवसर मिलेंगे। एक बयान में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने कहा है कि भारत के साथ उनके देश का ऐतिहासिक व्यापारिक समझौता ब्रिटेन के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने यह भी कहा कि यह समझौता हर तरह के रोज़गार और विकास के अवसर प्रदान करेगा।
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस समझौते संबंधी अच्छी भावनाओं का प्रकटावा करते हुए इसे दोनों देशों के लिए ऐतिहासिक दिन बताया है और यह भी कहा है कि इससे अधिक नौकरियां पैदा होंगी और दोनों देशों के आपसी व्यापार को यह समझौता सस्ता, तेज़ व आसान बनाएगा। नि:संदेह आज का युग अन्य देशों की धरती पर नज़र रखने का नहीं है, अपितु विकास का होना चाहिए। जिस सीमा तक जितनी भी अलग-अलग देशों में सांझ पैदा हो सके, वह विश्व के लिए हितकारी सिद्ध हो सकती है। आपसी मेल-मिलाप, दोस्ती की भावनाएं और सहयोग एक-दूसरे के लिए आश्रय और शक्ति बनते हैं। ब्रिटेन को भी इस बात की अलग-अलग ऐतिहासिक चरणों से गुज़रते हुए पूरी समझ आ चुकी है। ऐसी भावनाओं से ही उसका भारत के साथ किया यह समझौता दोनों देशों के विकास के लिए नए मार्ग प्रशस्त करने में सहायक होगा।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द