झूठ बोले कौआ काटे
झूठ बेचारा तो बस यूं ही बदनाम है। वैसे झूठ इतना भी बुरा नहीं है, जितना उसके बारे में प्रचारित किया जाता है। कहते हैं-‘बद अच्छा बदनाम बुरा’। झूठ ‘बदनाम’ ज़रूर है, मगर ‘बद’ रत्ती भर भी नहीं है।
झूठ की सबसे पहली ख़ासियत तो यह है कि वह कड़वा नहीं होता, जबकि सच हमेशा कड़वा होता है। और मीठा किसे पसंद नहीं? हम सारा जीवन मिठास के पीछे मारे-मारे फिरते रहते हैं। वाणी चाहिए तो मीठी... व्यवहार चाहिए तो मधुर... स्वभाव चाहिए तो मीठा...। और तो और हमारी मिठास-प्रिय संस्कृति में मधुरता को इतना महत्व प्रदान किया गया है कि डायबिटीज़ जैसी नामुराद बीमारी का भी क्या मधुर नाम रखा गया है- ‘मधुमेह’... ऐसे लगता है जैसे किसी चंद्रवदन सुंदरी का नाम हो।
इस लिए कड़वा सच किसी को नहीं सुहाता। सभी मीठे झूठ पर जान-ओ-दिल से फिदा होते रहते हैं। किसी के सामने सच-सच कह कर देखिए... अगला हाथ धोकर क्या, बल्कि नहा-धोकर पीछे पड़ जाता है। वहीं दूसरी ओर शुद्ध झूठ का तड़का लगाकर ‘तारीफ’ परोसिए... अगला आप को हथेलियों पर लिये घूमेगा।
वास्तव में झूठ बोलना भी एक कला है। यह ऐसे ही नहीं आती। गुरु धारण करके नित्य लगन पूर्वक रियाज़ करना पड़ता है। तब कहीं जाकर इसकी स्वर लहरियों को साधने में कुशल हुआ जा सकता है। सच बोलने में तो कोई ज़ोर ही नहीं लगता। जो जैसा है... ज्यों का त्यों कह दो... बस हो गया सच...। असली कारीगरी तो तब है, जब राई का पहाड़ और पहाड़ की राई बना दी जाये। मनुष्य की कल्पना, अभिव्यक्ति, स्मृति एवं संप्रेषणीयता आदि की असली परीक्षा तो झूठ बोलते समय ही होती है। सैकड़ों बहाने ढूंढने पड़ते हैं, हज़ारों बातें बनानी पड़ती हैं, लाखों चीजें याद रखनी पड़ती हैं और सामने वाले को कायल भी करना पड़ता है। सच का क्या है... एक बार बोला... बस फिनिश...। मगर एक झूठ के लिए हज़ार झूठ और बोलने पड़ते हैं। किसी और कला में इतनी असीम संभावनायें...?
झूठ जब अत्यंत उत्कृष्ट कलात्मकता के साथ बोला जाता है, तो वह ‘कविता’ कहलाता है। काव्यात्मक अभिव्यक्तियां अधिकांशतया झूठ के उच्च्चकोटि के उदाहरण ही प्रस्तुत करती हैं। इनकी चरम परिणति नायिका के सौंदर्य-वर्णन में उपस्थित होती है। नायिका के नखशिख-वर्णन के लिए जितनी उपमायें, जितने रूपक और जितनी उत्प्रेक्षाएं जुटाई जाती हैं, झूठी प्रशंसा के अतिरिक्त कुछ नहीं होतीं। मुख को कमल, बालों को मेघ, भवों को धनुष, नाक को सुग्गे की चोंच, होंठों को बिम्ब फल, दांतों को मोतियों की लड़ी, गर्दन को शंख, बाहों को लता, नखों को कुंदकली, चरणों को पल्लव आदि कहना असत्य कथन की पराकाष्ठा नहीं है तो और क्या है? इनसे तो ऐसा लगता है कि नायिका बेचारी नायिका न हुई, बल्कि फलों, फूलों, रत्नों, औज़ारों आदि से भरी हुई टोकरी हो गई।
कविता में अतिश्योक्ति अलंकार झूठ का सर्वाधिक सम्पूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है। अतिश्योक्ति का अर्थ ही है-अतिशय उक्ति अर्थात् बढ़ा-चढ़ा कर कहना। महाकवि जायसी पद्मावती की केश-राशि का चित्रण करते हुए कहते हैं कि जब वह अपनी वेणी को खोल कर बालों को झाड़ती है, तो स्वर्ग-पाताल सभी जगह अंधेरा छा जाता है।
अब आप ही बताइये... घने से घने केशों वाली सुंदरी अगर अपने बाल फैला दे तो कमरे तक में अंधेरा नहीं घिरता, यहां स्वर्ग-पाताल तक को अंधेरे में डूबते दिखाया जा रहा है। यह 24 कैरेट का प्योर झूठ नहीं है तो और क्या है?
झूठ जितना ही सफेद होता है, उसे उतना ही उच्च श्रेणी का माना जाता है। हमारे यहां सफेद रंग शांति, स्वच्छता, बुद्धिमानी, वरिष्ठता एवं गरिमा का प्रतीक है, तो फिर सफेद झूठ क्यों न वंदनीय, आदरणीय, पूजनीय हो?
और यह जो दिन-रात आपके मन-मस्तिष्क रूपी दुर्ग पर निरंतर ‘विज्ञापनबारी’ की जा रही है... वह झूठ का अति आक्रामक रूप ही है। कोई अपनी क्रीम से आपको गोरा बना देने का दावा कर रहा है तो कोई कह रहा है कि हमारे साबुन से नहाइये... यह चेहरे को ही नहीं सारे शरीर को निखारता है। बड़ी-बड़ी सुंदरियां सौंदर्य प्रसाधनों को अपनी सुंदरता का राज़ बता रही हैं तो बड़े-बड़े खिलाड़ी अपनी श्रेष्ठता का श्रेय अभ्यास के बजाय टॉनिकों-टेबलेटों को दे रहे हैं। कोई बिना व्यायाम मोटापा घटा रहा है तो कोई बालों को स्टील के तारों जितना मज़बूत बनाये दे रहा है। किसी को सृष्टि के चप्पे-चप्पे में कीटाणु ही कीटाणु नज़र आ रहे हैं तो कोई दांतों को लोहे के चने चबाने लायक बना देने के दावे कर रहा है।
राजनीति की गाड़ी भी तब तक चलने लायक नहीं होती, जब तक उसके टायरों में झूठ की हवा न भरी जाये। राजनेता बड़ी-बड़ी घोषणाएं और बड़े-बड़े वायदे करते समय झूठ की सेवाएं सहर्ष स्वीकार करते हैं। चुनाव से पहले किये गये सौ दावों में से अट्ठानवे झूठे साबित होते हैं, परन्तु इन सब्ज़ब़ागों की हरियाली ज्यादातर उनके आंगन में बहार ही लेकर आती है।
वैसे अब तो आप मान ही गये होंगे कि सत्य की श्रेष्ठता सिद्ध करके जो महान् कहलाये वे वास्तव में सत्य के कारण नहीं, बल्कि इस असत्य के कारण महान् बने हैं कि सत्य श्रेष्ठ है।
-1/338 स्वप्नलोक, दशमेश नगर
मंडी मुल्लांपुर दाखा, लुधियाना
मो. 62396.01641