विश्व प्रसिद्ध है जयपुर का हवामहल
राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक विश्व प्रसिद्ध इमारत है - हवा महल जो राजस्थान के प्रतीक के रूप में दुनिया भर में जाना जाता है जैसे फ्रांस का प्रतीक एफिल टावर है और अमरीका का प्रतीक ‘स्टेच्यू ऑ़फ लिबर्टी’ है। इस अनोखी विशाल इमारत को सन् 1799 में जयपुर के तत्कालीन महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने बनवाया था। हवा महल बुर्ज जैसी संरचना पर आधारित है। इसमें 365 खिड़कियां और झरोखे हैं। यह महल अर्ध अष्टकोणीय आकार में बना है।
राजस्थानी और फारसी स्थापत्य शैली का मिला-जुला स्वरूप इस इमारत के निर्माण में झलकता है। हवा के व्यापक आवागमन के प्रबंध के कारण ही इस इमारत को संभवत: हवामहल नाम दिया गया। सड़क की ओर का भाग अधिक भव्य बना है और बाहर से आने वाले अधिकतर पर्यटक इसे सड़क से ही निहार कर चले जाते हैं लेकिन हवामहल में अंदर बहुत कुछ अद्वितीय है जो दर्शनीय है।
हवा महल के भीतरी भाग में एक राजकीय संग्रहालय है। इस संग्रहालय में प्राचीन और राजशाही संस्कृति की अनेक चीजें संग्रहित हैं। अंदर दो बड़े चौक भी हैं। एक चौक के बीच एक बड़ा सा चौक है। इस कक्ष में प्राचीन प्रतिमाएं और अनेक प्राचीन स्मृति चिन्ह संग्रहित हैं। कभी राजाओं की भोजशाला रहे एक कक्ष में हस्तशिल्पों और चित्रों का संग्रह है। ‘शरद मंदिर’ नामक कक्ष में सवाई जयसिंह और जयपुर के कछवाहा राज्य के कुछ महत्त्वपूर्ण राजाओं व अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों के चित्र प्रदर्शित हैं। इसके अलावा अन्य अनेक कक्षों में बनी दीर्घाओं में खुदाई में निकली प्रतिमाएं, ताम्र पत्र व शाही सिक्के, पत्थर व तांबे के औजार व अन्य उपकरण इत्यादि विविध विषयक ऐतिहासिक वस्तुएं प्रदर्शित हैं।
हवा महल का पूर्वी हिस्सा मुख्य भवन या मुख्य भाग कहलाता है। यह भवन पांच मंजिला है। इसके अनेक कक्ष विभिन्न नामों से जाने जाते हैं जैसे शरद मंदिर, हवा मंदिर, विचित्र मंदिर, प्रकाश मंदिर, रतन मंदिर आदि। बेहद अनूठी स्थापत्य शैली के इस भवन से ही शाही परिवार की महिलाएं जयपुर का नज़ारा करती थी, विशेष रूप से पर्वों के आयोजनों का दृश्यावलोकन।
इस भवन में चंद्रमा के प्रकाश के आगमन की भी व्यवस्था सुनिश्चित थी और हवा खोरी तो होती ही थी। असल में तब विद्युतचालित पंखे थे नहीं, इसलिए ‘बड़े लोग’ भवन बनवाते समय हवा के आगमन का विशेष ध्यान रखते थे। इस बात का हवामहल के निर्माण में खास ही ख्याल रखा गया। दीवारों में झरोखे, जालियां तो आकर्षक बनावट की हैं ही। कंगूरे व कलश इमारत की भव्यता को विराट रूप प्रदान करते हैं।
राजस्थान का गौरव मानी जाने वाली यह इमारत ऊपर से पिरामिड के आकार में सिमटी हुई हैं। इससे भी यह इमारत मनमोहक लगती है। गुलाबी नगरी के नाम से मशहूर जयपुर के लोग हवामहल को अपनी शान समझते हैं। समझें भी क्यों न। जिस बुद्धि और हस्तकौशल का उपयोग हवा महल के निर्माण में हुआ है वह अद्भुत तो है ही, अन्यत्र दुर्लभ भी है।
तो अब जब भी आप पर्यटक के रूप में राजस्थान जाएं तो जयपुर अवश्य जाएं और वहां दुनियां भर में राजस्थान के प्रतीक के रूप में जानी जाने वाली इमारत हवामहल ज़रूर देखें जिसके दो द्वार हैं-चांदपोल द्वार और आनंदपोल द्वार। आनंदपोल द्वार के ऊपर बनी गणेश प्रतिमा के कारण आनंदपोल द्वार को ‘गणेश पोल’ द्वार भी कहते हैं। जयपुर में हवा महल ‘बड़ी चौपड़’ चौराहे से ‘चांदी की टक्साल’ को जाने वाले मार्ग पर स्थित है। (उर्वशी)