घने जंगलों में स्थित चमोली का प्रसिद्ध विष्णु मंदिर

मैं चमोली में इत्तेफाक से ही था। मुझे मालूम हुआ कि उरगम वादी में स्थित फुलानारायण मंदिर के कपाट खुले हुए हैं। मेरे तो जैसे भाग ही खुल गये। मुझे अपनी किस्मत पर नाज़ हुआ। यह शताब्दियों पुराना विष्णु मंदिर हिमालय की गोद में बहुत ऊंचे और घने जंगलों के बीच में स्थित है। इसके कपाट साल में केवल 45 दिन के लिए खुलते हैं। इस साल इसके द्वार 20 जुलाई 2025 को भक्तों के लिए खोले गये और 2 सितम्बर 2025 को नंदा अष्टमी के दिन फिर से सालभर के लिए बंद कर दिये जायेंगे। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें लैंगिक समता का विशेष ध्यान दिया जाता है। पिछले लगभग 200 साल से इस मंदिर की सेवा करने के लिए बहुत खामोशी के साथ एक पुरुष व एक महिला का चयन किया जाता है, जो संयुक्त रूप से पुजारियों की भूमिका अदा करते हैं।
स्थानीय पंचायत दोनों पुजारियों का चयन एक साल एडवांस में करती है और वह भी केवल 45 दिन के एक सालाना चक्र के लिए। इसका अर्थ है कि विष्णु मंदिर में कोई स्थायी पुजारी नहीं होता है। मैं जब मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचा तो मुझे मालूम हुआ कि इस बार पुजारी की भूमिका निभाने का श्रेय राजेश्वरी देवी और विवेक सिंह को दिया गया है। भरकी गांव की राजेश्वरी देवी 55 साल से अधिक की हैं और महिला पुजारी का न्यूनतम इतनी आयु का होना अनिवार्य है ताकि यह सुनिश्वित हो सके कि उसका मासिक धर्म हमेशा के लिए बंद हो चुका है, क्योंकि गांव की पौराणिक परम्पराओं के अनुसार रजस्वला स्त्री को पुजारी नहीं बनाया जा सकता। बहरहाल, राजेश्वरी देवी की ज़िम्मेदारी यह है कि वह फूलों की व्यवस्था करें, तुलसी के हार तैयार करें और भक्तों को दिया जाने वाला प्रसाद कुक करें। विवेक सिंह का संबंध पास के बैंथा गांव से है। वह मुख्य आरती व पूजा का नेतृत्व करते हैं। पूरे 45 दिन के चक्र के दौरान दोनों का मंदिर प्रांगण में रहना अनिवार्य है।
फुलानारायण में यह प्रथा कब से आरंभ हुई, इसका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है। लेकिन भरकी व बैंथा के निवासियों के लिए यह प्रथा जारी है। इस वार्षिक पार्टनरशिप को किसी राजनीतिक घोषणा ने आकार नहीं दिया है बल्कि खामोश दोहराव से यह वजूद में आयी है। राजेश्वरी देवी ने बताया, ‘मुख्य ज़िम्मेदारी दिया जाना महिलाओं के लिए सम्मान की बात है। चूंकि घोषणा सालभर पहले कर दी जाती है, तो हमें कोई समस्या नहीं होती है।’ इससे चयन किये गये पुजारियों को अपनी भूमिकाएं अदा करने के लिए तैयारी करने का पर्याप्त समय मिल जाता है। राजेश्वरी देवी को ताज़ी तुलसी के साथ ही जंगली फूल भी एकत्र करने होते हैं।
मंदिर में ही कुछ स्थानीय लोगों से मुलाकात हो गई, जो मेरी तरह विष्णु भगवान के दर्शन करने के लिए आये थे। उनमें से एक ने मुझे बताया, ‘यह तो हमें अपने पूर्वजों से पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिला है। हर पुजारी का अलग, लेकिन आवश्यक कार्य है।’ मंदिर समुद्र की सतह से लगभग 3,000 मीटर ऊंचाई पर  स्थित है, जिसकी वजह से भी यह एकदम अकेला खड़ा दिखायी देता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए जो हेलांग से कल्पेश्वर तक की सड़क है, वह 13 किमी की है और पूरी तरह से टूटी हुई है, जिस पर जान जोखिम में डालकर ही चला जा सकता है। विकास की छाया भी अभी तक यहां नहीं पहुंची है। कल्पेश्वर से खड़े 4 किमी के ट्रेक पर चलना पड़ता है। देवदार व शाहबलूत के पेड़ों के साये में, तब फुलानारायण तक पहुंचा जाता है। हालांकि कल्पेश्वर महादेव, गुफा मंदिर, पास में ही है, जो पंच केदार परिक्रमा का हिस्सा है और अब पूरे साल में कभी भी उस तक पहुंचा जा सकता है, क्योंकि मात्र 300 मीटर ही सड़क उससे दूर है, लेकिन फुलानारायण मंदिर पूर्णत: ऑ़फ-ग्रिड है और किसी भी ऐसी रूट से जुड़ा हुआ नहीं है जिस पर मोटर चल सके।
भरकी गांव की महिला मंगल दल की प्रमुख सविता देवी ने बताया, ‘हेलांग से उरगम गांव तक की सड़क बहुत ही दयनीय स्थिति में है। हमारी मांग है कि इस सड़क की मरम्मत को वरीयता दी जाये, क्योंकि ऐसा करने से तीर्थ व पर्यटन गतिविधियों में वृद्धि हो जायेगी।’ यह सही है कि विकास के लिहाज़ से यह गांव बहुत पिछड़ा हुआ है, लेकिन सामाजिक सहयोग व भाईचारे में बहुत आगे है। उरगम वादी का अपने आपमें बहुत आध्यात्मिक महत्व है। कल्पेश्वर महादेव के अतिरिक्त इसमें अनेक प्राचीन मंदिर हैं- ध्यान बद्री, उर्वा ऋषि और बंसी नारायण। बंसी नारायण 8वीं शताब्दी का मंदिर है, जो भगवान कृष्ण को समर्पित है। यह 3,600 मीटर ऊपर स्थित है और साल में केवल एक बार ही रक्षाबंधन के दिन खुलता है। बहरहाल, हम लैंगिक समता की तो बहुत बातें करते हैं, लेकिन विष्णु मंदिर हमें दिखाता है कि प्रैक्टिस में यह कैसी होती है।                    
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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