अभी पूरी तरह टला नहीं लावारिस कुत्तों का खतरा
बेशक देश की अदालतों में साढ़े चार करोड़ से अधिक मामले न्याय के इंतजार में लंबित हो, लेकिन लावारिस कुत्तों के मामले में सर्फ दस दिन में ही देश की सबसे बड़ी अदालत से अपना फैसला सुना दिया। देश भर में लावारिस कुत्तों के बारे में पिछले पखवाड़े सुप्रीम कोर्ट का फैसला हाल फिलहाल एक बड़ी पीठ ने पलट दिया है। दो जजों की पीठ ने 11 अगस्त को दिल्ली-एनसीआर के नगर निगम व सरकार को कहा था कि सडक़ों से सभी लावारिस कुत्तों को उठाकर उन्हें बनाए गए बाड़ों में रखा जाए और वापिस नहीं छोड़ा जाए। जजों ने सड़कों पर बच्चों और आम लोगों को कुत्तों द्वारा बहुत बुरी तरह काटने की घटनाओं पर चिंता ज़ाहिर करते हुए यह कड़ा फैसला दिया था, जिस पर पशु प्रेमियों ने सार्वजनिक प्रदर्शन भी किया और सुप्रीम कोर्ट तक दोबारा दौड़ भी लगाई।
जनभावनाओं को देखते हुए मुख्य न्यायाधीश ने तीन जजों की एक नई पीठ बनाई, जिसने पहले वाले फैसले को पलटकर यह कहा कि लावारिस कुत्तों को जिस इलाके से उठाया जाए, उसी इलाके में नसबंदी-टीकाकरण के बाद उन्हें वापिस छोड़ा जाए। इससे परे अदालत ने यह भी कहा कि हर इलाके में लावारिस कुत्तों को खाना खिलाने की जगह तय की जाए, और सार्वजनिक स्थानों पर उन्हें खाना देने पर जुर्माना लगाया जाए। दूसरी तरफ जो गरीब और आम लोग सड़कों पर पैदल चलते हैं, साइकिल या किसी और दोपहिया पर चलते हैं या विकलांग हैं और बैसाखियों के सहारे चलते हैं, उन्हें इस फैसले से निराशा हुई होगी, क्योंकि उन पर लावारिस कुत्तों का खतरा मंडराता ही रहेगा। पिछले पखवाड़े का फैसला दिल्ली-एनसीआर इलाके के लिए दिया गया था, नये फैसले को पूरे देश के लिए लागू किया गया है और सभी राज्यों को अदालत ने निर्देश भेज दिए हैं। पशु प्रेमियों का तर्क यह है कि सार्वजनिक जगहों पर कुत्तों की मौजूदगी हमेशा से रहती आई है और वे समाज का हिस्सा हैं। उन्हें कैदी की तरह किसी बाड़े में नहीं रखा जा सकता।
दूसरी तरफ आम जनता का हाल यह है कि उसे कुत्ते दौड़ा रहे हैं, काट रहे हैं और आम लोग सार्वजनिक जगहों का इस्तेमाल कई मायनों में नहीं कर पाते हैं। पिछले फैसले की तारीफ की गई थी और उसे देश भर में लागू करने की वकालत हुई थी। नया फैसला उसके ठीक विपरीत है। बैसाखियों के सहारे चलने वाले दिवयांग लोगों को कुत्तों से अधिक खतरा रहता है। उनके हमले में गिर जाने के बाद वे अपने आप का बचाव भी नहीं कर पाते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति बच्चों और बुजुर्गों पर कुत्तों के झपटने से पैदी होती है। वे भी अपने को नहीं बचा पाते। साइकिल और दूसरे दोपहिया वाहनों पर चलने वाले लोगों के पीछे लावारिस कुत्ते कई बार दौड़ते हैं और भय के कारण संतुलन और आपा खोकर ऐसे लोग गिर कर घायल हो जाते हैं।
अभी हाल ही में गाज़ियाबाद में तैनात एक 25 वर्षीय महिला सब इंस्पेक्टर ड्यूटी से बाइक पर घर लौट रहीं थीं लावारिस कुत्तों के सामने आने पर सड़क के डिवाइडर से टकराने से उनकी मौत हो गई। ऐसे हादसे रोज़ाना घटित होते हैं। अब अदालत ने भी कुत्तों को कुछ नियमों के साथ आज़ादी दे दी है। ज़ाहिर है कि सिर्फ कुत्तों की नसबंदी होगी, वह भी कितनी कारगर साबित होगी, कुछ कहना मुश्किल है, क्योंकि सरकारी आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए ज़िम्मेदार सरकारी मशीनरी कितनी ज़िम्मेदारी से काम करती है, यह किसी से छिपा नहीं है। सरकार और अदालत को लावारिस कुत्तों से आमजन को बचाने के लिए अपने आदेश का देश भर में अनुपालन सुनिश्चित करना होगा। पहले की तरह भूख, मौसमी परिवर्तन के कारण लावारिस कुत्ते आम लोगों पर हमले कर सकते हैं। जाहिर है कि आम जन को अभी कुत्तों के खतरे को झेलना होगा और अपना बचाव करने का खुद ही उपाय करना होगा।
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