बदहाली बयां करते जर्जर विद्यालय भवन

विद्यालय शिक्षा के मंदिर होते हैं और शिक्षा ही किसी भी राष्ट्र की नींव एवं उन्नति का आधार होती है। फिछले दिनों राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव स्थित सरकारी भवन की छत के गिरने से विद्यालय में पढ़ने वाले सात बच्चों की मौत हो गई थी और इस हादसे में कई बच्चे घायल हुए थे। इस दुखद समाचार ने सरकारी विद्यालय भवनों व शिक्षा व्यवस्था की बदहाली बयां कर दी। घटना के बाद मुख्यमंत्री ने जांच के निर्देश दे दिए। ज़िला शिक्षा अधिकारी, प्रधानाध्यापक और अन्य कुछ कर्मचारियों पर गाज गिरी। इस घटना के अगले ही दिन प्रदेश के नागौर व सिरोही ज़िले में भी दो सरकारी स्कूलों की छत गिर गई। इसी समय दौरान मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के बोड़री ग्राम पंचायत के सेहराटोला स्थित शासकीय प्राथमिक स्कूल की छत का एक हिस्सा गिर गया। हापुड़ के भमैड़ा गांव स्थित प्राथमिक विद्यालय में छत का प्लास्टर अचानक गिर गया। 
विडम्बना यह है कि जब भी इस प्रकार की कोई अप्रिय घटना हो जाती है तो कुछ दिन के लिए शासन-प्रशासन सक्रिय रहता है, कुछ कागज़ी कार्रवारी करते हुए काम पूरा कर दिया जाता है। जिला संयुक्त शिक्षा प्रबंधन व्यवस्था के वर्ष 2022 के आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 12 लाख प्राथमिक, 1.5 लाख माध्यमिक और 1.42 लाख उच्चतर शिक्षा विद्यालय हैं। विगत कई दिन से समाचार पत्रों में देश के हरियाणा, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश व पंजाब आदि प्रदेशों के विभिन्न ज़िलों में जर्जर विद्यालय भवनों के समाचार प्रकाशित हो रहे हैं। कहीं छत का लेंटर टूटा हुआ है तो कहीं ब्लैक बोर्ड। कहीं डेस्क टूटे हैं तो कहीं टॉयलेट के नाम पर केवल दो दीवारें हैं। न नल है, न पानी है और न ही दरवाज़ा। कहीं स्कूल परिसर में मवेशी हैं तो कहीं पानी भरा हुआ है। कहीं स्कूल की चारदीवाली नहीं है तो कहीं टूटी पड़ी है। चित्रों के साथ प्रकाशित होते ऐसे समाचार विद्यालयों की बदहाली बयां कर रहे हैं। प्रश्न यह है कि इन विद्यालय भवनों की खस्ता हालत के लिए दोषी कौन है और उन पर क्या कार्रवाई की गई है? क्या इन विद्यालयों की मरम्मत करने के लिए अथवा नव निर्माण के लिए प्रशासन पैसा आवंटित नहीं करता और यदि करता है तो फिर इनकी हालत दयनीय क्यों है?
सामान्यत: इस बदहाली के मूल में ऊपर से नीचे तक कथित रूप से भ्रष्टाचार दिखाई देता है, जहां कागज़ों पर ही रख-रखाव के काम प्रतिवर्ष पूरे हो जाते हैं। संविधान के अनुसार राज्य 6 वर्ष से 14 वर्ष तक की आयु वाले सभी बालकों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने का उपबंध करेगा, लेकिन यह भी विडम्बना है कि आज भी सामाजिक-आर्थिक रूप से कमज़ोर करोड़ों बच्चों के लिए शिक्षा उपलब्ध नहीं है। विगत दिनों प्रकाशित एक समाचार में  यह भी सामने आया कि बंगाल के 23 ज़िलों में 348 ऐसे सरकारी व सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल हैं, जहां एक भी विद्यार्थी नहीं है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि वर्ष 2014-15 से 2023-24 के बीच देशभर में 89 हजार से अधिक सरकारी स्कूल बंद हुए। उच्च शिक्षा क्षेत्र में समुचित अवसर और व्यवस्थाएं न होने से प्रतिवर्ष लाखों बच्चे उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने को मजबूर हो जाते हैं। दाखिला प्रक्रिया में देरी या अन्य सुविधाओं की कमी से सरकारी संस्थानों में सीटें खाली रह जाती हैं तो वहीं निजी संस्थान फल-फूल रहे हैं। 
विद्यालय भवनों की बदहाली के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता पर आए आंकड़े भी चिंताजनक हैं। विगत दिनों शिक्षा मंत्रालय की ओर से देशभर में करवाए गए सर्वेक्षण में पाया गया है कि छठी कक्षा में पढ़ने वाले केवल 53 प्रतिशत विद्यार्थियों को ही 10 तक का पहाड़ा आता है, वहीं कक्षा तीन में पढ़ने वाले सिर्फ 55 प्रतिशत विद्यार्थी ही 99 तक के अंकों को घटते-बढ़ते क्रम में पढ़ और लिख सकते हैं। सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों का गणित में प्रदर्शन कमज़ोर है तो वहीं शहरों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्र में गुणवत्ता की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। सर्वविदित है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को लागू हुए 5 वर्ष का समय बीत चुका है, लेकिन इसे क्रियान्वित करने की गति अभी भी बहुत धीमी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कई स्थानों पर शिक्षा के लिए आधारभूत ढांचा, बुनियादी शिक्षा, बुनियादी साक्षरता, विकसित शिक्षा प्रणाली आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण आदि बातें कही गई हैं लेकिन वर्ष 2025 में भी देश के विभिन्न प्रदेशों में प्रारंभिक, माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा बुनियादी ढांचे और गुणवत्ता का इंतजार है। विद्यालयों के साथ-साथ विभिन्न महाविद्यालयों में बुनियादी ढांचे एवं शिक्षकों की कमी है। क्या ऐसे में भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बना कर एक जीवंत और न्याय संगत ज्ञान समाज में बदलने का संकल्प पूरा हो सकता है?
विद्यालयों-महाविद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को समुचित, स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण मिले, यह राज्य और केंद्र दोनों का दायित्व है। समय रहते इस दिशा में प्रतिबद्धता से काम करने की आवश्यकता है। (अदिति)

#बदहाली बयां करते जर्जर विद्यालय भवन