प्रकृति का प्रकोप तथा मानवीय लापरवाही

इन दिनों में बादल फटने की घटनाओं ने इस धरती के लोगों को आपदा-ग्रस्त कर दिया है। उत्तरकाशी की घटनाओं ने उत्तराखंड वासियों का ही नहीं, समूचे भारत में हाहाकार मचा दी है। कभी सोचा ही नहीं था कि इस छोटे से ज़िले की भूमि को अढ़ाई घंटों में तीन स्थानों पर बादल फटने के समाचार घेर लेंगे। गंगोत्री धाम के मुख्य पड़ाव के रूप में प्रसिद्ध धराली कस्बे का सारा बाज़ार खीर गंगा नदी में आई बाढ़ से तबाह हो गया। अनियमित ढंग से निर्मित होटल ही नहीं, घर, दुकानें तथा गैस्ट हाऊस सूखे पत्तों की तरह तैरते देखे गए। पठानकोट तथा चम्बा भूस्खलन के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए। सतलुज तथा ब्यास नदी के पानी ने कपूरथला ज़िले के 12 गांवों को द्वीप बना दिया। मानवीय प्रगति तथा प्रसार ही मानव पर मौत बन कर मंडरा रहा है।
दिल्ली, दक्षिण मुम्बई तथा महाराष्ट्र के समाचार और भी भयावह हैं। यदि हरियाली वाले क्षेत्रों में इसका दोष प्रकृति से की छेड़छाड़ पर लगा दें तो इसका कारण घनी आबादी वाले क्षेत्रों में दिन-प्रतिदिन बढ़ रही आबादी माना जा सकता है। यदि प्रकृति के इस प्रकोप में मानव जाति के स्वयं निर्मित हादसे भी शामिल कर लें तो भविष्य का नक्शा और भी भयावह हो जाता है। 
करें तो क्या करें?
विवाह-शादियों तथा मेलों-उत्सवों आदि में भीड़ सांस नहीं लेने देती और पाठ-पूजा वाले पर्वत आम जन को सुख की सांस नहीं लेने देते। उनकी आंखों पर चढ़कर मुक्ति प्राप्त करने के चश्मे उनके कान भी बंद कर देते हैं। मुक्ति मार्ग किसी भी हालत में भावनाओं पर नियंत्रण नहीं करने देता। 
मामला इतना गम्भीर है कि इसके बारे कहे, सुने  तथा लिखे बिना नहीं रहा जाता। सौ समझदारों की एक राय पर क्रियान्वयन करें तो अपने आप को इतना तो समझा ही लेना चाहिए कि धैर्य से काम लें और पैट्रोल वाले वाहनों की गति कम रखें। प्रकृति से छेड़छाड़ भी कम करें। 
स्वतंत्रता दिवस तथा आर.एस.एस.  
इस बार के स्वतंत्रता दिवस से संबंधित सरकारी विज्ञापनों में वीर सावरकर की तस्वीर को महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस तथा भगत सिंह से ऊपर दिखाना तथा 17 अगस्त को अंग्रेज़ सरकार द्वारा फांसी पर लटकाए गये मदन लाल ढींगरा को भुला देने से प्रतीत होता है कि वर्तमान सरकार को अपने दिन पूरे हो गए लगते हैं और उसने आर.एस.एस. को समाचारों में लाने का जुआ खेला है।
आज के दिन ऐसे संगठन की प्रशंसा करना जिसने स्वतंत्रता संग्राम में एक भी शहादत न दी हो और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के समय हर तरह की जासूसी करके धर्म-निरपेक्ष विचारधारा को नकारा हो, तो यह सच्चे स्वतंत्रता संग्रामियों का अपमान नहीं तो और क्या है। ऐसे संगठन की प्रशंसा के लिए लाल किला की प्राचीर का इस्तेमाल करना भी राजनीतिक चतुराई से कम नहीं है। 
भारतवासियों को आर.एस.एस. द्वारा 1949 में भारतीय संविधान का विरोध भी नहीं भूला तथा राष्ट्रीय ध्वज का अपमान भी नहीं। कौन नहीं जानता कि इस संस्था ने आज़ादी से 55 वर्ष बाद तक अपने मुख्यालय पर तिरंगा नहीं लहराया था। 26 जनवरी, 2002 को लहराना भी पड़ा तो यह उनकी मजबूरी थी। अदालती आदेश हो चुके थे और उनका पालन न करने का परिणाम अच्छा नहीं होना था। यह बात भी नोट करने वाली है कि सुभाष चन्द्र बोस की ‘आज़ाद हिन्द फौज’ का विरोध करने के लिए ब्रिटिश शासकों के भर्ती अभियान का गुणगान करने के लिए संघियों ने निम्नलिखित गीत को अपनाया तथा प्रचार किया :
भर्ती हो जाना
हो जाना रकरूट 
एथे मिलदी टुट्टी होई जुत्ती 
ओथे मिलते बूट
भर्ती हो जाना...
एथे मिलते पाटे होए कपड़े
ओथे मिलदे सूट 
भर्ती हो जाना...
यह बात भी जगजाहिर है कि महात्मा गांधी का हत्यारा नत्थूराम गोडसे हिन्दू महासभा तथा आर.एस.एस. का सदस्य था। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि प्रधानमंत्री का संबंधित भाषण लिखने वाला भी कोई संघ का कार्यकर्ता ही है। वैसे आर.एस.एस. के विरोधियों को खुश होना चाहिए कि संघ की इस अनुचित प्रशंसा ने लोगों के मन में एक सदी पुरानी यादों को जीवित कर दिया है। इस समूचे घटनाक्रम का भावी राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह समय ही बताएगा।
अंतिका
(शमशेर संधू) 
तूं नहीं बोलदी,
रकाने! तूं नहीं बोलदी
तेरे ’च तेरा यार बोलदा। 

#प्रकृति का प्रकोप तथा मानवीय लापरवाही