बारिश क्यों बन रही है आफत?
मानसून भारत में हमेशा से जीवन का पर्याय माना गया है। यही वह ऋतु है, जो देश के खेत-खलिहानों को सींचती है, नदियों को भरती है, तालाबों को जीवंत करती है और करोड़ों लोगों की जीविका का आधार बनती है किन्तु अब यही मानसून भयावह आपदाओं का पर्याय बन चुका है। इस वर्ष एक ओर जहां हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों में लगातार बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं ने तबाही मचा रखी है तो दूसरी ओर महाराष्ट्र और विशेषकर मुंबई जैसी महानगरियों में भारी बारिश ने आम जनजीवन को लगभग ठप कर दिया है। सड़कों पर सैलाब का दृश्य, डूबते घर, टूटी सड़कें बहते वाहन और बेघर लोग यह साबित करते हैं कि मानसून अब केवल राहत का मौसम नहीं रहा बल्कि अब हर साल देशभर में एक भयावह आपदा का रूप ले रहा है।
हिमाचल प्रदेश की स्थिति इस बार बेहद गंभीर है। आंकड़े बताते हैं कि केवल अगस्त मध्य तक ही राज्य में 260 से अधिक लोग मानसूनी आपदाओं का शिकार हो चुके थे और महीने के उत्तरार्ध तक यह संख्या 280 के आसपास पहुंच गई। इनमें बड़ी संख्या उन लोगों की है, जो लैंडस्लाइड, बादल फटने, फ्लैश फ्लड या घर गिरने जैसी घटनाओं के कारण काल के ग्रास बने। राज्य की सैंकड़ों सड़कें अवरुद्ध हैं, पुल बह चुके हैं और हजारों करोड़ रुपये की सार्वजनिक व निजी संपत्ति बर्बाद हो चुकी है। कई ज़िलों में बिजली और पानी की आपूर्ति ठप हो है, जिससे सामान्य जीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त है। राहत कार्य भी इतनी बड़ी तबाही के सामने अपर्याप्त साबित हो रहे हैं। पहाड़ी ढलानों पर बने घर और होटल अब थोड़ी-सी बारिश में ही दरकने लगे हैं, जिससे साफ है कि प्रकृति के साथ की गई छेड़छाड़ अब विनाश का कारण बन रही है। बादल फटना कोई नया प्राकृतिक चमत्कार नहीं बल्कि एक खतरनाक मौसम विज्ञान संबंधी स्थिति है, जिसमें अत्यधिक आर्द्र बादल सीमित क्षेत्र में अचानक फट पड़ते हैं और एक घंटे में सौ मिलीमीटर या उससे भी अधिक वर्षा हो जाती है। पहाड़ों की ढलानों और घाटियों में जब इतनी मात्रा में पानी गिरता है तो नदियां तुरंत उफान पर आ जाती हैं, मिट्टी और चट्टानें खिसककर भूस्खलन का रूप ले लेती हैं और गांव के गांव बह जाते हैं। हिमालयी क्षेत्र में गर्म और आर्द्र मानसूनी हवाओं का टकराव ठंडी पर्वतीय हवा से होता है, जो इस तरह की घटनाओं को जन्म देता है किन्तु जलवायु परिवर्तन ने इस प्रवृत्ति को बहुत घातक बना दिया है। बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण वायुमंडल में अधिक जलवाष्प बनने लगा है और जब वह अचानक वर्षा के रूप में गिरता है तो परिणाम भयावह होता है।
महाराष्ट्र की तस्वीर अलग होते हुए भी उतनी ही त्रासद है। यहां इस समय बंगाल की खाड़ी में बने गहरे दबा ने मानसूनी धाराओं को तीव्र कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप कोंकण, मध्य महाराष्ट्र और विदर्भ क्षेत्रों में भारी से अत्यधिक भारी वर्षा हो रही है। नांदेड़ ज़िले में बादल फटने की घटना ने 8 लोगों की जान ले ली और कई गांव जलमग्न हो गए। रत्नागिरी, ठाणे और पालघर ज़िलों में नदियां खतरे के निशान पर हैं और हजारों लोग राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर हुए हैं। केवल चार-पांच दिनों में ही राज्य में बीस से अधिक लोग मानसूनी आपदाओं के कारण मारे गए और फसलों का नुकसान इतना व्यापक है कि लाखों किसानों की मेहनत पर पानी फिर गया। मायानगरी मुंबई की स्थिति तो किसी महानगरीय विडंबना से कम नहीं है। देश की आर्थिक राजधानी, जहां आधुनिक ड्रेनेज सिस्टम और अरबों रुपये खर्च की जाने वाली नगर योजनाएं हैं, वहां भी मानसून ने पूरे शहर को पानी-पानी कर रखा है। अगस्त महीने में अब तक एक हजार मिलीमीटर से अधिक वर्षा दर्ज की जा चुकी है। स्थानीय रेल सेवाएं बार-बार ठप हो रही हैं, हवाई अड्डों पर उड़ानें घंटों तक विलंबित हो रही हैं और सड़कों पर जगह-जगह कमर तक पानी भरा है। हजारों वाहन पानी में डूबे हैं, बिजली की आपूर्ति बाधित हुई है और लोगों को घंटों तक जाम में फंसा रहना पड़ रहा है। यह स्थिति इस तथ्य को उजागर करती है कि दुनिया के सबसे व्यस्त और समृद्ध महानगरों में से एक मुम्बई प्रकृति की इस मार के समक्ष कितनी असहाय है और यह केवल इस साल की नहीं बल्कि अब हर साल की कहानी है।
स्पष्ट है कि यह केवल प्राकृतिक आपदा भर नहीं है बल्कि इसका बड़ा कारण हमारी नीतिगत असफलताएं और शहरी व ग्रामीण नियोजन की खामियां हैं। हिमाचल और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में अंधाधुंध सड़क निर्माण, होटल, हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स और जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने प्राकृतिक ढलानों और जलस्रोतों को नष्ट कर दिया है। नदियों के किनारे कंक्रीट निर्माण और पारंपरिक तालाबों-पोखरों का विनाश इस संकट को और बढ़ाता है। यदि इन क्षेत्रों की पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए नियोजन किया जाता तो शायद नुकसान इतना व्यापक न होता।
वहीं मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य शहरों में नालों और नदियों पर अतिक्रमण, कचरे से पटे ड्रेनेज सिस्टम और बिना सोचे-समझे किए गए निर्माण कार्यों ने जल निकासी की पूरी व्यवस्था चौपट कर दी है। परिणाम यह कि थोड़ी-सी असामान्य बारिश भी शहर को थमने पर मजबूर कर देती है। जलवायु परिवर्तन की भूमिका भी इस पूरी स्थिति को विकट बना रही है। बढ़ते तापमान के कारण मानसून अब पहले से अधिक अनिश्चित और चरम हो गया है। कहीं अल्प अवधि में ही पूरे सीजन की बारिश हो जाती है तो कहीं महीनों सूखा पड़ा रहता है। कार्बन उत्सर्जन, ग्रीनहाउस गैसें और वनों की कटाई ने इस असंतुलन को और बढ़ाया है। यही कारण है कि अब बादल फटने जैसी घटनाएं अधिक बार और अधिक व्यापक पैमाने पर सामने आने लगी हैं।
प्रश्न उठता है कि समाधान क्या है? क्या हर बार आपदा के बाद राहत पैकेज की घोषणा, नावें और हेलीकॉप्टर भेज देना ही पर्याप्त है? निश्चित रूप से नहीं। असली समाधान पूर्व तैयारी में है। वर्षा जल संचयन को हर घर, हर कॉलोनी और हर ग्राम पंचायत में अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। शहरों में नालों और नदियों की सफाई मानसून से पहले सुनिश्चित की जानी चाहिए। मुंबई जैसी जगहों पर स्मार्ट सिटी योजनाओं में जल निकासी और बाढ़ प्रबंधन को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए। हिमाचल जैसे राज्यों में निर्माण कार्यों पर सख्त पर्यावरणीय प्रभाव आकलन लागू होना चाहिए और संवेदनशील ढलानों पर भारी निर्माण की पूरी तरह रोक होनी चाहिए। जंगलों की कटाई पर कठोर प्रतिबंध और हरित आवरण बढ़ाने की योजनाएं लागू करनी होंगी। आपदा प्रबंधन को भी केवल औपचारिकता नहीं बल्कि वास्तविक तैयारी बनाना होगा। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ को पर्याप्त संसाधन, उपकरण और प्रशिक्षण देने होंगे। राज्यों को दिए जाने वाले राहत बजट का पारदर्शी उपयोग सुनिश्चित करना होगा ताकि वह सही समय पर सही जगह पहुंच सके। इसके साथ ही जनभागीदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। नागरिक स्तर पर वर्षा जल संचयन, नालों की सफाई और जल संरक्षण की दिशा में जागरूकता लाना आवश्यक है।
कुल मिलाकर बारिश जीवन के लिए अनिवार्य है किंतु जब यही जीवनदायिनी वर्षा हर साल मौत और तबाही का पर्याय बन जाए तो दोष प्रकृति का नहीं बल्कि हमारी लापरवाहियों का है। हमें स्वीकार करना होगा कि हमने ही जल, जंगल और जमीन के साथ खिलवाड़ किया है। यदि अब भी हम नहीं चेते तो भविष्य का हर मानसून और अधिक भयावह रूप लेकर आएगा। समाधान हमारे पास हैं लेकिन उनका लाभ तभी मिलेगा, जब सरकारें, प्रशासन और नागरिक मिलकर गंभीरता और ईमानदारी से उन्हें लागू करेंगे।