शतरंज और इसका इतिहास
शतरंज आधुनिक युग में बच्चों और बढ़ों के द्वारा खेले जाने वाला एक लोकप्रिय खेल है। शतरंज का खेल संसार के प्राय: सभी देशों में खेला जाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी खेला जाता है। लेकिन आपके मन में यह प्रश्न अवश्य उठता होगा कि शतरंज के खेल सबसे पहले किसने खेला और इसका आविष्कार सबसे पहले किस देश में हुआ?
शतरंज के खेल का आविष्कार सर्वप्रथम भारत हुआ था लेकिन इस खेल को किसने और कब खेला? यह कहना काफी मुश्किल है। ऐसी मान्यता है कि इस खेल का आविष्कार लंका की महारानी मंदोदरी ने किया था। लंका के राजा रावण अपना अधिकांश समय युद्ध में व्यतीत करते थे। यही कारण था कि मंदोदरी ने इस खेल का आविष्कार किया ताकि रावण का ध्यान युद्ध की ओर न जाये। इसके विपरीत कुछ विद्वानों का मत है कि इस खेल का आविष्कार रावण के पुत्र मेघनाथ की पत्नी ने किया।
भारतीय साहित्य में इसका सर्वप्रथम उल्लेख 7वीं शताब्दी के सुबुंध रचित ‘वासवदत्ता’ नामक संस्कृत ग्रंथ में मिलता है। बाणभट्ट द्वारा रचित पुस्तक ‘हर्ष चरित’ में इस खेल का वर्णन चुतरंग से किया गया है। इससे यह स्पष्ट है कि यह एक राजसी खेल था। प्राचीनकाल में इसे चतुरंग अर्थात सेना का खेल कहा जाता था। चतुरंग (सेना) के चार अंग होते थे। पैदल, अश्वारोही, रथ और गज। इसलिए खेल के नियम बहुत कुछ युद्ध जैसी परंपरा पर आधारित था। फारसी में इसे ‘शतरंग’ कहा गया, जो विकृत अरबी में ‘शतरंज’ हो गया।
भारत में इसका सबसे अधिक प्रचलन मुगलकाल में हुआ। शाही परिवारों, नवाबों और मनसबदारों तथा सैनिकों में यह खेल सर्वाधिक लोकप्रिय था। धीरे-धीरे इसका प्रचलन आम जनता के बीच हो गया और आम जनता के बीच यह एक लोकप्रिय खेल बन गया। यही कारण था कि इसका प्रभाव भारतीय जनजीवन और भाषा पर भी पड़ा। शतरंज के खेल में विभिन्न आकृतियों के दो रंगों की लकड़ी आदि के मोहरें होते हैं। एक काले और दूसरे सफेद, जो संख्या में 16-16 होते हैं। एक वृक्ष के 16 मोहरें अर्थात एक बादशाह, एक फर्जी (वजीर), दो रुख (हाथी), दो फीले (ऊंट), दो घोड़े और आठ प्यादे होते हैं। सारा खेल इन्हीं मोहरों की चाल पर निर्भर करता है। मोहरें चूंकि बेबस होते हैं, इसलिए इनका चालक कोई और होता है। इसलिए जनभाषा में आगे चलकर इसी को ‘मोहरा बनाना’ मुहावरे के रुप में कहा जाने लगा। कपड़े आदि के जिस चौकोर टुकड़े पर शतरंज खेला जाता है, उसे ‘ बिसात’ कहते हैं। विभिन्न रंग की सेत की दरी को ‘शतरंज’ कहा जाता है, जो अक्सर विवाह/शादियों और अन्य उत्सवों में बिछाई जाती है। इसकी मूल उत्पत्ति भी शतरंज के खेल से हुई है। ऐसी दरी पहले शतरंज के खेल में प्रयुक्त होती थी। बाद में सामान्य रंग-बिरंगी दरियां ‘शतरंज’ कहलाने लगी।
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