नम्रता बत्रा ने वुशु फाइट में रचा इतिहास
ये कहानी है एक ऐसी लड़की की जो छोटे से शहर से बड़े सपने लेकर निकलती है, पारिवारिक विरोध से लेकर लगभग हर प्रकार की विपरीत स्थितियों का सामना करते हुए अंतर्राष्ट्रीय सफलता हासिल करती है। यह कहानी है भारत की वुशु एथलीट नम्रता बत्रा की, जिन्होंने हाल ही में चेंगदू में आयोजित वर्ल्ड गेम्स में रजत पदक जीता है। वर्ल्ड गेम्स में वुशु स्पर्धा में भारत का यह पहला पदक है।
नम्रता का जन्म इंदौर के एक पुरातनपंथी परिवार में हुआ था। वह मार्शल आर्ट्स में अपना करियर बनाने की इच्छुक थीं, लेकिन उनके दादा-दादी ने इस बात का ज़बरदस्त विरोध किया। उन्हें इस खेल से जुडी धारणाओं, विशेषकर छोटे कपड़ों को लेकर चिंता थी। वह नहीं चाहते थे कि उनकी पोती ट्रेनिंग व प्रतियोगिताओं के दौरान बिना बाहों की बनियान व मैचिंग नेकर पहने अजनबी पुरुषों के सामने, जिससे उनके खानदान की ‘बदनामी’ होती। उन्हें यह भी डर था कि अगर इस खेल में नम्रता के शरीर, खासकर चेहरे पर कोई गंभीर चोट आ गई, तो उसके ब्याह में अवरोध उत्पन्न होंगे।
लेकिन नम्रता के व्यापारी पिता संजय बत्रा ने अपनी बेटी का निरंतर साथ दिया, यह सुनिश्चित करते हुए कि समाज का दबाव उसकी महत्वाकांक्षा और देश का प्रतिनिधित्व करते हुए पदक जीतने में बाधक न बने। नतीजतन 12 अगस्त 2025 को नम्रता ऐसी पहली भारतीय बनीं जिन्होंने वुशु में वर्ल्ड गेम्स पदक हासिल किया है। चेंगदू, चीन में नम्रता 52 किलो (सांडा) के महिला वर्ग में दूसरे स्थान पर रहीं। उन्होंने रजत पदक जीता। भारत ने वर्ल्ड गेम्स के विभिन्न सत्रों में अभी तक कुल सात पदक जीते हैं- 1 स्वर्ण, 2 रजत व 4 कांस्य, लेकिन चार वर्षीय मल्टीस्पोर्ट्स प्रतियोगिता के 44 वर्षीय इतिहास में वुशु में यह पहला पदक है।
चूंकि कामयाबी से मीठी कोई शय नहीं होती, जैसा कि अमरीकी कवियत्री एमिली डिकनसन ने कहा था, यह विरोधियों को भी समर्थक बना देती है, इसलिए आज नम्रता के दादा दादी को भी उसकी उपलब्धि पर अत्यधिक गर्व है। जब उन्होंने अखबारों व वेबसाइट्स पर अपनी पोती की तस्वीरें पदक के साथ देखीं तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। अब वह सबको बताते घूम रहे हैं कि नम्रता उनकी पोती है, उसने चीन में पदक जीता है। चीन से लौटने के बाद नम्रता ने बताया, मेरा संबंध एक बड़े संयुक्त परिवार से है। मेरे दादा दादी को यह पसंद नहीं था कि अपने सपने को साकार करने के लिए मैं शॉर्ट्स व स्कर्ट्स पहनूं। शुरुआत में उन्होंने मुझ पर बहुत पाबंदियां लगायीं और वह मुझे अकेले ट्रेनिंग के लिए भी नहीं जाने देते थे। किसी भी प्रतियोगिता में उन्होंने मुझे कभी अकेले नहीं जाने दिया। उनको बस यही चिंता रहती थी कि लोग क्या कहेंगे? उन्हें समाज का बहुत अधिक डर था। वह तो केवल यह चाहते थे कि मैं अच्छी शिक्षा प्राप्त करूं, अच्छे नंबर लाऊं ताकि मुझे कहीं स्थायी नौकरी मिल जाये और किसी अच्छे घर में रिश्ता हो जाये। लेकिन मेरे कॅरियर च्वॉइस में मेरे पिता ने हमेशा मेरा साथ दिया, मेरी मदद की। वह पहाड़ की तरह मेरे साथ खड़े रहे और मेरे इस फैसले का समर्थन किया कि मैं मार्शल आर्ट्स खिलाड़ी बनना चाहती हूं। आज मेरे दादा दादी व वह लोग जो मेरा विरोध करते थे, मेरी उपलब्धि पर गर्व महसूस करते हैं। अब मेरी यात्रा में मुझे उनका पूर्ण समर्थन प्राप्त है।
इसमें शक नहीं है कि नम्रता का सीवी प्रभावी है। वह देश की प्रमुख वुशु (सांडा) खिलाड़ी है और अनेक घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय पदक जीत चुकी हैं। चीनी मार्शल आर्ट्स वुशु को दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता है- ताओलू यानी खाली हाथों या हथियारों से कोरियोग्राफ किया गया रूटीन और सांडा यानी पूर्ण संपर्क युद्ध। वुशु का इतिहास हज़ारों साल पुराना है जो किन राजवंश तक पहुंचता है। अब यह एशियन गेम्स में भी शामिल है और इसकी विश्व चैंपियनशिप भी 1991 से नियमित आयोजित हो रही है। यहां यह बताना भी आवश्यक है कि वर्ल्ड गेम्स में रजत पदक जीतने के अतिरिक्त नम्रता ने पिछले साल एशियन चैंपियनशिप्स में भी रजत पदक जीता था और इस साल के शुरू में एशिया कप में कांस्य पदक जीता था। मास्को वुशु स्टार चैंपियनशिप्स में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था और नेशनल गेम्स के दोनों उत्तराखंड व गुजरात सत्रों में भी वह पोडियम तक पहुंचीं। नम्रता 2015 से 2018 तक जूनियर राष्ट्रीय चैंपियन रहीं और सीनियर वर्ग में भी उनकी यह कामयाबी जारी रही कि 2018 से 2021 तक 48 किलो वर्ग के स्वर्ण पदक उनके हिस्से में आये। इसके बाद 2022 से वह 52 किलो वर्ग में खेल रही हैं और अपनी सफलता को निरंतर जारी रखे हुए हैं।
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