जसविंदर भल्ला : चला गया हंसी का बादशाह चाचा चतर सिंह

दुनिया की बहु-गिनती किसी की शोहरत या तरक्की देख कर सोचती है कि शायद यह सीढ़ियां रातो-रात चढ़ी गई हैं परन्तु किसी सूरमे को पूछकर देखें कि खूबसूरत आंखों तक पहुंचने के लिए संघर्ष कितना करना पड़ता है। कहने को मन नहीं करता कि जसविंदर भल्ला हमारे बीच नहीं रहे। इस नाम से कौन अवगत नहीं है? इस नाम का अर्थ ही हंसी कहा जा सकता है या कह सकते हैं कि जसविंदर भल्ला का नाम लफ्ज़ों पर आते ही अपने आप हंसी निकल जाती है। लगभग 45 साल पंजाबियों को हंसाने वाले का एकदम से चले जाना शायद उनके चाहने वालों को जल्दी कहीं हज़्म न हो। जसविंदर भल्ला खुद एक खूबसूरत आर्टिस्ट ही नहीं थे, कलाकार, हंसी के बादशाह ही नहीं थे बल्कि इन्सानियत के पक्ष से भी जसविंदर भल्ला का कोई जवाब नहीं था। उनके नाम के साथ डाक्टर लगा, वह कृषि यूनिवर्सिटी में अहम पद से सेवामुक्त हुए। उन्होंने दूरदर्शन को एक शिखर पर पहुंचाया, उन्होंने बड़े कलाकारों को अपने हास्य मंच से प्रसिद्धि तक पहुंचाया। किसको नहीं पता कि फिल्मों में काम करने वाले सरूप परिंदा तथा देसराज अतरो-चतरो के किरदार के कारण प्रसिद्ध हुए तो यह खोज जसविंदर भल्ला की ही थी। इकट्ठे प्रसिद्ध हुए जसविंदर भल्ला और बाल मुकंद शर्मा ‘चाचा-भतीज’ बन कर पंजाबियों के बहुत निकट हुए और सच में इन दोनों कलाकारों ने हम सभी को बहुत हंसाया। नीलू शर्मा नाम की मुटियार को एक मुकम्मल कलाकार बनाने में जसविंदर भल्ला की बहुत बड़ी भूमिका थी। फिल्म हो, सीरियल हो, जालन्धर दूरदर्शन हो, विदेशों में हास्य-रस प्रोग्राम हो, कृषि यूनिवर्सिटी के आंगन में कोई प्रोग्राम हो, जसविंदर भल्ला अनुपस्थित हो, ऐसा हो ही नहीं सकता था। 65 साल की आयु कुछ भी नहीं होती और इस आयु में जसविंदर भल्ला का जाना बहुत देर तक भूलेगा नहीं। एक साल पहले पता चला था कि वह बीमार हैं, परन्तु ऐसा नहीं लगा कि वह चले जाएंगे। चलो! यह कमी तो पूरी नहीं होगी। 
शायद बहुत कम लोगों को पता हो कि कालेज, फिर यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हुए वह बाल मुकंद शर्मा के साथ भांडों का नकलें करते थे। बाद में जब मोहन सिंह मेले पर उन्होंने इसी रंग में हाज़िरी लगाई को कमाल हो गया। यहां से जगदेव सिंह जस्सोवाल का साथ हुआ तो फिर जस्सोवाल ने कहा कि आप मेरे साथ ही रहने लगें। यह जोड़ी जसविंदर भल्ला और बाल मुकंद शर्मा बड़ी देर तक जस्सोवाल के गुरदेव नगर स्थित लुधियाना वाले घर में पढ़ने के दिनों से लेकर कई छनकाटे पाने तक रहती रही। दो दर्जन से अधिक जसविंदर भल्ला और बाले ने पहले ओडियो कैसेटें, फिर वीडियो एल्बम से बहुत देर तक पंजाबियों का मनोरंजन किया। कह सकते हैं कि इन कैसेटों और एल्बम को लोगों ने लाईन में लग कर खरीदा और मीलों तक छनकाटा सुनाई देता गया। फिल्मों की ओर हाथ बढ़ाया तो कमाल हो गया। यदि दूरदर्शन जालन्धर की ओर देखें तो चाहे ‘कच्च दियां मुंदरां’ थी, चाहे ‘छनकाटा’ था और चाहे ‘रौणक मेला’ जसविंदर भल्ला की हाज़िरी के बिना शायद लोगों की हंसी निकलती ही नहीं थी। यह वही दिन थे जब हरभजन जब्बल और जतिंदर कौर छाए हुए थे और फिर जसविंदर भल्ला, नीलू शर्मा और बाल मुकंद शर्मा शिकर पर पहुंचे। गायक सुखविंदर सुक्खी जसविंदर भल्ला के छनकाटे में गायन के कारण ही शिखर पर पहुंच गये थे। इसमें कोई शक नहीं कि जस्सोवाल के डेरे में डाक्टर सुखनैन ने बहुत समय गुज़ारा, जसविंदर भल्ला ने भी और कई गायकों ने यहीं जस्सोवाल के घर में रह कर अपनी कला की शोहरत प्राप्त की। 
चाचा चतरे का अर्थ भी जसविंदर भल्ला रहा है। लुधियाना के दोराहा गांव से संबंधित जसविंदर भल्ला ने काफी समय लुधियाना और फिर मोहाली में गुज़ारा। वह 1960 में पैदा हुए। उनके पिता स. बहादुर सिंह भल्ला पेशे से अध्यापक थे और उन्होंने प्राथमिक शिक्षा भी दोराहा से ही प्राप्त की। कृषि यूनिवर्सिटी से बी.एससी., एम. एससी और यहीं सेवा करने का मौका मिला और यहीं सेवामुक्त होने का वक्त मिला। वह 1975 में ऑल इंडिया रेडियो के लिए चुने गये। 1988 में उनकी पहली कैसेट ‘छनकाटा’ आई थी और उसके बाद 2003 तक यह झड़ी लगी रही। जसविंदर भल्ला की हर बात में व्यंग्य था और हर बात में ही हंसाने का एक रस छुपा हुआ होता था। ‘दुल्ला भट्टी’ से अपने फिल्मी करियर को ब्रेक देने वाले जसविंदर भल्ला ने ‘माहौल ठीक है, जीजा जी, जिहने मेरा दिल लुटिया, मेल करा दे रब्बा, कैरी ऑन जट्टा, जट्ट एैंड जुलियट, वैसाखी लिस्ट’ तक दर्जनों फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाये। ‘एन.आर.आई.’ (नहीं रहना इंडिया) और एक उनका स्टेज शो ‘नौटी बाबा इन यूअर टाऊन’ विदेशों में बहुत प्रसिद्ध हुआ। इत्तेफाक था कि दो साल पहले कनाडा के एबस्फोर्ट शहर में उनका ‘नौटी बाबा’ वाला शो देखने का मौका मिला। सच में जिस ढंग से पंजाब की राजनीति और खासतौर पर कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के अभिनय को जसविंदर भल्ला ने निभाया, शायद और किसी से निभाया ही नहीं जा सकता था। इस नाटक में बहुत कुछ सीखने वाला था और बहुत कुछ सिखाने वाला भी था। शायद राजनीति पर सबसे तीखा जसविंदर भल्ले का कटाक्ष भी था। अपने पुत्र पुखराज भल्ला और बेटी अशप्रीत भल्ला को अपने साथ छनकाटा लड़ी में और फिल्मों में लाने का सफल यत्न किया। पुत्र पुखराज भल्ला इस समय फिल्मों में काफी सक्रिय हैं। फाईन आर्ट्स की अध्यापिका परमदीप भल्ला के साथ जसविंदर का विवाह हुआ और दोनों की ज़िंदगी भी हास्य भरी रही।
जालन्धर दूरदर्शन के अनेक प्रोग्रामों में जसविंदर भल्ला की हाज़िरी कमाल की रही। नववर्ष के प्रोग्रामों को पेश करने में उनकी लाजवाब पेशकारी को कोई नहीं भूल सका। कई दशकों तक वह जालन्धर दूरदर्शन का सबसे प्यारा हास्य कलाकार अपने साथी बाल मुकंद शर्मा के साथ बना रहा। पंजाबी सभ्याचार के आंगन में जसविंदर भल्ला के नाम से जो फूल खिला था, उसकी अपनी महक, उसका अपना रंग था और बहुत कुछ उनका अपना था। उनके चले जाने का परिवार को ही नहीं बल्कि हर उस पंजाबी का घाटा पड़ा है जो चाहता है कि तनाव के माहौल में यदि किसी के चेहरे पर रौणक है तो वह खुशकिस्मत है और इन चेहरों पर रौणक लाने वाली यह आवाज़ अब हमेशा के लिए खामोश हो गई है।

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