बाल कलाकार से सेल्समैन बने रत्न कुमार
विख्यात लेखक कृष्णचंद्र अपनी लिखी कहानी ‘राख’ पर इसी नाम से एक फिल्म बना रहे थे, जिसके निर्माता व निर्देशक भी वह स्वयं थे। यह 1946 की बात है। इस फिल्म के लिए उन्हें एक बाल कलाकार की ज़रूरत थी। काफी तलाश के बाद उनकी नज़र आखिरकार अपने एक गहरे दोस्त के 5 वर्षीय बेटे सैय्यद नाज़िर अली रिज़वी पर पड़ी। इस बच्चे को उन्होंने दिलीप कुमार की तरह रत्न कुमार नाम दिया। फिल्म ‘राख’ कामयाब रही और रत्न कुमार का काम बहुत पसंद किया गया। बाद में रत्न कुमार ने बैजू बावरा, बूट पॉलिश, दो बीघा ज़मीन, सरगम आदि कालजयी फिल्मों में यादगार भूमिकाएं कीं और वह बॉम्बे फिल्मोद्योग में बेबी तबस्सुम व बेबी नाज़ के साथ सबसे चर्चित व पसंदीदा बाल कलाकारों की फेहरिस्त में शामिल हो गये। उन्होंने मीना कुमारी, मधुबाला, दिलीप कुमार, राज कपूर आदि बड़े सितारों के साथ प्रभावी काम किया। राज कपूर उन्हें विशेषरूप से बहुत पसंद करते थे।
बहरहाल, जैसा कि लगभग हर बाल कलाकार के साथ होता है, रत्न कुमार ने जब किशोरावस्था में कदम रखा तो उन्हें फिल्मों में काम मिलना बंद हो गया। इस बात से वह इतने कुंठित हुए कि उन्होंने सीमा पार जाने का मन बना लिया। यह 1956 की बात है। राज कपूर ने उन्हें बहुत रोकने की कोशिश की, उन्हें उम्र में थोड़ा और बड़ा होने पर जवान व्यक्तियों की भूमिकाएं देने का वायदा भी किया, लेकिन वह नहीं माने। रत्न कुमार अपने भाई के साथ पाकिस्तान चले गये। पाकिस्तान जाकर रत्न कुमार ने अपना कॅरियर नये सिरे से शुरू करने का प्रयास किया, लेकिन वहां परेशानियां उनकी प्रतीक्षा में खड़ी थीं। रत्न कुमार ने अपने भाई के साथ मिलकर एक प्रोडक्शन हाउस स्थापित किया और फिल्में बनाने लगे। उन्होंने चर्चित व सफल फिल्म जागृति को पाकिस्तान में बेदारी के नाम से बनाया, जिसकी अपनी एक दिलचस्प कहानी है। मूल फिल्म जागृति का निर्देशन सत्येन बोस ने किया था और इसमें आइकोनिक गीत ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की’ शामिल था, जिसे कवि प्रदीप ने लिखा था।
जब रत्न कुमार ने इस फिल्म की नकल पाकिस्तान में बेदारी के नाम से बनायी तो कहानी, डायलॉग और हद तो यह है कि गीतों को भी ज्यों का त्यों उतार दिया। गीतों के बोलों में केवल इतना परिवर्तन किया कि नेहरु के आदर्शों को पाकिस्तानी देशभक्ति से बदल दिया। अत: गीत की चर्चित पंक्ति ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की’ को बदलकर ‘आओ बच्चों सैर कराएं तुमको पाकिस्तान की’ कर दिया गया। एक अन्य गीत ‘दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल/साबरमती के संत तू ने कर दिया कमाल’ को बदलकर इस तरह से कर दिया गया ‘दे दी हमें आज़ादी कि दुनिया हुई हैरान/ए कायदे-आज़म तेरा एहसान है एहसान’। महात्मा गांधीजी के संदर्भ को मोहम्मद अली जिन्ना से बदल दिया गया था। आगे बढ़ने से पहले उस दौर के सांस्कृतिक संदर्भ को समझना आवश्यक है। पाकिस्तान में उन दिनों भारतीय फिल्मों के आयात या सार्वजनिक प्रदर्शन पर प्रतिबंध था। इसलिए लाहौर फिल्मोद्योग के निर्माता बिना रोक टोक भारतीय फिल्मों की नकल बनाकर चांदी काट रहे थे। बेदारी तो कहानी व गीतों सहित जागृति की कार्बन कॉपी थी। जब बेदारी को पाकिस्तान में रिलीज़ किया गया तो पहले कुछ सप्ताह में उसने शानदार बिज़नस किया लेकिन जल्द ही यह बात जंगल की तरह फैल गई कि दर्शक भारतीय फिल्म की नकल देख रहे हैं।
पाकिस्तान में हंगामा हो गया। बेदारी के खिलाफ जन प्रदर्शन होने लगे। पाकिस्तान के सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म पर तुरंत प्रतिबंध लगा दिया, हमेशा के लिए। अनजाने में गीत ‘दे दी हमें आज़ादी कि दुनिया हुई हैरान/ए कायदे-आज़म तेरा एहसान है एहसान’ की खोज 1990 के दशक में हुई और इसे पीटीवी पर प्रसारित कर दिया गया। यह इतना चर्चित हुआ कि पीटीवी ने इसे अपना एंथम (गान) बना लिया। उसे यह एहसास ही नहीं हुआ कि यह प्रतिबंधित फिल्म का गीत है और वह भी नकल किया हुआ। एक बार फिर हंगामा हुआ कि गीत चोरी का है और प्रतिबंधित फिल्म से है। हर जगह यह चर्चा होने लगी कि चोरी के भारतीय गीत से राष्ट्र पिता (जिन्ना) को श्रद्धा सुमन आर्पित करना शर्मनाक है। गीत पर एक बार फिर प्रतिबंध लगा दिया गया।
बहरहाल, 1970 का दशक आते आते रत्न कुमार का करियर ढलान पर आ गया था। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया था, ‘हर किसी के करियर में उतराव चढ़ाव आता है। जब मैंने शुरुआत की तो मैं बहुत छोटा था, मुझे नहीं मालूम था कि मैं क्या कर रहा हूं। बड़ा हुआ तो अपने काम को समझने लगा। जब हर चीज़ आसानी से मिल जाती है तो आप सीखते नहीं हैं। इसलिए मैं अपने बच्चों से कहता हूं कि किसी चीज़ को हलके में मत लो।’ लेकिन जब 1977 में रत्न कुमार की 4-वर्षीय बेटी का लाहौर में एक दुर्घटना में निधन हो गया, तो उन्हें इतना सदमा पहुंचा कि फिल्मोद्योग को उन्होंने हमेशा के लिए छोड़ दिया।
रत्न कुमार ने पाकिस्तान भी छोड़ दिया और अमरीका जाकर कालीन बेचने लगे। 1980 के दशक के शुरू में राज कपूर न्यूयॉर्क सिटी की यात्रा पर थे। रत्न कुमार अपने परिवार के आग्रह पर परिवार सहित न्यू जर्सी से न्यूयॉर्क राज कपूर से मिलने के लिए पहुंचे। राज कपूर ने रत्न कुमार को देखते ही पहचान लिया और वापस भारत लौटकर फिल्मों में काम करने के लिए कहा। राज कपूर ने उन्हें एक रोल भी ऑफर किया लेकिन रत्न कुमार फिल्मों को हमेशा के लिए छोड़ चुके थे। 1990 के दशक में एक साल के भीतर रत्न कुमार के फेफड़ों ने दो बार काम करना बंद किया, लेकिन दोनों बार ही उनकी जान चमत्कारिक ढंग से बच गई। इसके बाद वह अपने साथ हर समय ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर चलते थे और हर दिन को अपने जीवन का अंतिम दिन समझकर जितना संभव हो आनंद लेते थे। रत्न कुमार का 2016 में 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
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