बेसहारा और बेज़ुबानों के लिए चिन्ता
सदियों से कृषि को उत्तम व्यवसाय मानते आये भारत में हमेशा ही पशु धन का महत्त्व रहा है। यह मानवीय जीवन का एक ठोस आधार बना रहा है। इसीलिए भारतीयों की ओर से इन बेज़ुबानों को अक्सर हमदर्दी की भावना से देखा जाता रहा है। सामाजिक हालात में आए ज्यादातर बदलावों के बावजूद अब तक भी देशवासियों की ऐसी ही सोच बनी रही है। देश में पशुओं की रक्षा के लिए ‘पशु सुरक्षा’ से जुड़े कड़े कानून भी बने हुए हैं, परन्तु इसके साथ-साथ आज के समूचे हालात के दृष्टिगत यह भी महसूस होता है कि किसी भी सभ्यक देश में शहरों, नगरों और गांवों में लावारिस कुत्तों और हर तरह के बेसहारा जानवरों के झुंड गलियों, बाज़ारों में क्यों घूमते-फिरते हैं? हम इन बेज़ुबानों को ‘आवारा’ नहीं कहते, अपितु इन निराश्रितों को बेसहारा समझते हैं। यदि ये भूखे-प्यासे, दिन-रात भीषण गर्मी और भीषण सर्दी में इसी तरह घूमते-फिरते हैं तो इनकी ऐसी दयनीय हालत को देख कर दिल का पसीजना ज़रूरी है। यह दर-दर के धक्के खाते, टुकड़ों के लिए तरसते और हर तरफ से मिलती फटकारों को सहते हैं, परन्तु हम मनुष्य अक्सर ऐसे दयनीय दृश्यों से बेपरवाह रहते हैं।
नि:संदेह इन दृश्यों के लिए हमारा समाज और हमारी सरकारें ज़िम्मेदार हैं। हम करोड़ों की संख्या में घूमते इन बेज़ुबानों, बेसहारा संबंधी कोई प्रबन्ध करने मेें असमर्थ रहे हैं। अभी तक यह बात समझ से दूर है कि पैदा हुए ऐसे दृश्यों और इनके दर्दनाक हालात संबंधी हम कुछ भी करने में असमर्थ क्यों रहे हैं? परन्तु अब तक यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि जो कुछ समाज और हमारी सरकारें करने में असमर्थ रही हैं, देश की उच्च अदालतें उन समस्याओं संबंधी प्रबन्ध करने बारे ज़रूर सुचेत होती रही हैं। उनके फैसले अक्सर प्रभावी भी होते हैं। विगत दिवस सुप्रीम कोर्ट ने चाहे दिल्ली और उसके साथ लगते क्षेत्रों के लावारिस कुत्तों के प्रति अपने फैसले सुनाए हैं परन्तु ऐसे फैसले कुछ बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं रहने चाहिएं। इनका देश भर में लागू होना भी बेहद ज़रूरी है। विश्व के बड़े विकासशील और अन्य बहुत-से देशों में भारत की तरह लावारिस घूमते कुत्ते और पशु नज़र नहीं आते। इन देशों ने कड़ी योजनाएं बना कर ऐसे हालात से छुटकारा पाया है। एक अनुमान के अनुसार आज देश में 4 करोड़ से भी अधिक लावारिस कुत्ते घूमते-फिरते हैं। केन्द्र सरकार देश में इनकी सराल की भांति बढ़ती आबादी को रोकने में असमर्थ रही है। इस संबंध में उसके राज्य सरकारों को दिए आदेश भी विफल हो गए हैं। देश भर में वर्ष 2023 में पालतू और लावारिस कुत्तों ने 30 लाख से भी अधिक लोगों को अपना निशाना बनाया था।
इसी तरह पंजाब में प्रत्येक वर्ष हज़ारों ही लोग कुत्तों द्वारा नोचे जाते हैं। चाहे सर्वोच्च अदालत ने इन कुत्तों के लिए आरक्षित स्थान बनाने और उनकी नसबंदी और टीकाकरण के आदेश दिए हैं परन्तु मौजूदा स्थिति में यह प्रतीत नहीं होता कि आदेश क्रियात्मक रूप में कारगर सिद्ध हो सकेंगे। यदि बात निकली है तो यह अब दूर तक जानी चाहिए। अभिप्राय देश भर के लिए इन करोड़ों लावारिस कुत्तों और बेसहारा पशुओं के प्रबन्ध हेतु कड़े कानून अमल में लाये जाने ज़रूरी हैं, जो भावी पीढ़ियों को ऐसे करुणामय दृश्यों से निजात दिला सकें।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द