भारत-रूस रिश्तों पर मैली नज़र

अमरीका और भारत के रिश्ते तभी खराब नज़र आने लगे जब ट्रम्प ने 50 प्रतिशत टैरिफ भारत पर किसी जुर्माने की तरह लाद दिया। भारत को यह कदम अन्यायपूर्ण लगा, विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया कि यह फतवा तर्कपूर्ण नहीं है। इस कार्रवाई में भारत ही ट्रम्प के निशाने पर क्यों रहा? ट्रम्प स्पष्ट कर रहे थे कि भारत रूस से तेल ले रहा है, लेकिन चीन और तुर्किये जैसे देश भी तो रूस से तेल ले रहे हैं। यूरोप रूस से प्राकृतिक गैस खरीद रहा है फिर भारत पर ही पेनल्टी क्यों? थोड़ा-सा पीछे जाएं तो इस मनोविज्ञान को समझने में मदद मिल सकती है। साल 2014 का समय, सत्ता तंत्र में एक ताकतवर नेता को लेकर आया। चेतावनी तब मिली जब शी जिनपिंग की फौज दक्षिणी लद्दाख में टहलने आ गई। लगभग यही समय था जब अहमदाबाद में शी जिनपिंग की मेहमाननवाज़ी हो रही थी। फिर 2023 में जी-20 का आयोजन हो रहा था, उस समय भारत की चर्चा विश्व भर में होने लगी। शीघ्र ही वह दुनिया की चौथी बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने जा रहा था। क्वाड के केन्द्र में आ गया। तब हम किसी संधि में बंधे न थे, लेकिन चीन को बराबर सामना करने वाली निगाह से देख रहे थे। दुनिया आत्म-निर्भर भारत देख रही थी लेकिन इसे स्वीकार करने में दिक्कत आ रही थी। टैरिफ में भारत को ही निशाना क्यों बनाया जा रहा है? ट्रेड डील पर एक और चरण की बातचीत के लिए अमरीका का एक दल भारत आने वाला है। परिणाम कुछ भी हो सकता है। भारत के सामने स्पष्ट दो मुद्दे हैं। पहला-रूस से तेल की खरीद। इसके बिना भारत का काम तो चल सकता है लेकिन क्या भारत को ऐसा करना मुनासिब होगा? इससे भारत-रूस संबंधों पर गहरा असर पड़ने वाला है जो भारत को स्वीकार न होगा। दूसरा मुद्दा है-अमरीकी कृषि और डेयरी उत्पाद का भारतीय बाज़ार में दाखिला। इसके बारे में प्रधानमंत्री मोदी स्पष्ट शब्दों में कह चुके हैं कि वह वे समझौता नहीं करने वाले, भले ही इसके व्यक्तिगत नतीजे भुगतने पड़ें।
रूस और यूक्रेन युद्ध चरम सीमा पर है। युद्ध-विराम की कोशिश भी हो सकती है, लेकिन रूस इसके लिए तैयार नज़र नहीं आता। हाल ही में अमरीका से एक विशेष दल रूस भेजा गया था और सम्भावना है कि जल्द ही ट्रम्प और पुतिन की बातचीत हो। अगर यह बातचीत सफल हो जाए तो ट्रम्प अतिरिक्त टैरिफ वापिस ले सकते हैं, जिसकी उम्मीद कम ही है। एक और असमंजस है कि ट्रम्प पाकिस्तान को जानते समझते हुए कि वह आतंकवाद की फैक्टरी है, उससे संबंध क्यों बढ़ा रहे हैं? एक कारण क्रिप्टो डील बताया जा रहा है जो पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान ने ट्रम्प समर्थित कम्पनी से की। दूसरे नीतिगत तौर पर वह ईरान को नियंत्रित करने के लिए पाकिस्तानी सेना के इस्तेमाल से जुड़ा कारण भी हो सकता है। भारत के कारण उसके पाकिस्तान से कभी निकट के संबंध नहीं रहे। हाल ही की लड़ाई में हम पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दे पाए क्योंकि हमारे पास रूस से पाई सफल टैक्नालोजी थी।
हम एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश हैं अगर रूस से भारत को सस्ता तेल मिलता है तो हम क्यों नहीं लें। 1998 के बाद पच्चीस साल हमने अमरीका से नये रिश्ते बनाये जो ट्रम्प के कारण बेकार जाते हुए मालूम पड़ रहे हैं। बांग्लादेश में हमने भारी निवेश किया परन्तु जान न पाये कि शेख हसीना इतनी अलोकप्रिय क्यों हैं। हमारी कूटनीति कहीं न कहीं तो असफल भी हुई है। लेकिन अब नहीं। हम रूस से अपनी मित्रता किसी के कहने से तोड़ने वाले नहीं। बल्कि और मज़बूती से आगे बढ़ने का अवसर मिल रहा है जिसे भारतीय जन-मानस गंवाना नहीं चाहता।

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