हरियाणा विधानसभा का चौथा सत्र भी नेता प्रतिपक्ष के बिना ही गुजरा
हरियाणा में पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के बाद लगातार चौथा विधानसभा सत्र भी बिना नेता प्रतिपक्ष के गुजर गया। हरियाणा कांग्रेस विधानसभा के लिए अपनी पार्टी के विधायक दल के नेता का फैसला नही कर पाई। हरियाणा विधानसभा में भाजपा की 48 विधायकों के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार है जबकि 37 विधायकों के साथ कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है। 90 सदस्यीय विधानसभा में 2 विधायक इनेलो के और 3 विधायक निर्दलीय हैं। कांग्रेस विधायक दल का नेता ही विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष होगा, लेकिन मौजूदा विधानसभा के अब तक 4 सैशन गुजर गए हैं, इसके बावजूद कांग्रेस पार्टी अभी तक नेता प्रतिपक्ष का फैसला नही कर पाई। कुछ दिन पहले कांग्रेस ने पार्टी के 32 जिलाध्यक्षों की घोषणा की थी। प्रदेश में पिछले 11 सालों से कांगे्रस का प्रदेश में कोई संगठन नहीं था और जिला व ब्लॉक स्तर पर भी कोई पदाधिकारी नहीं था। 11 साल बाद कांग्रेस ने जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की है। इससे यह उम्मीद बंध गई थी कि कांग्रेस आलाकमान हरियाणा में जल्द ही कांग्रेस के नए प्रदेशाध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष का ऐलान कर देगा। यह भी माना जा रहा था कि 22 अगस्त से शुरू होने जा रहे विधानसभा के मॉनसून सत्र से पहले-पहले नेता प्रतिपक्ष का निर्णय जरूर हो जाएगा लेकिन 22 अगस्त को विधानसभा सत्र शुरू होकर 27 अगस्त को समाप्त भी हो गया। कांग्रेस विधानसभा के चौथे सत्र तक भी नेता प्रतिपक्ष का निर्णय नहीं कर पाई। इससे कांग्रेस आलाकमान व प्रदेश कांग्रेस लगातार मजाक का पात्र बने हैं।
सुनने पड़े तन्ज़
विधानसभा के मॉनसून सत्र में जब कांग्रेस विधायक कानून व्यवस्था की स्थिति पर दिए गए काम रोको प्रस्ताव पर चर्चा करवाने के लिए अडिग थे, तब ऊर्जा, श्रम व परिवहन मंत्री अनिल विज ने कांग्रेस विधायकों पर यह कहते हुए तन्ज़ कसा कि इनका तो विधायक दल का कोई नेता ही नहीं है, इसलिए ये कोई निर्णय लेने की स्थिति में नहीं हैं। एक बार जब विधानसभा में कांग्रेस विधायक ज्यादा उत्तेजना दिखा रहे थे और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा चुपचाप अपनी सीट पर बैठे थे तो स्पीकर ने हुड्डा को कह दिया कि आप चाहे अभी तक नेता प्रतिपक्ष नहीं हैं, फिर भी पूरा सदन आपको नेता प्रतिपक्ष जैसा सम्मान ही देता है। उनका कहने का भाव था कि वह चुपचाप बैठने की बजाय कांग्रेस विधायकों को शांत करें। भूपेंद्र हुड्डा ने भी यह कह कर बात को टाल दिया कि वह नेता प्रतिपक्ष हों या न हों, इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। पिछली विधानसभा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ही नेता प्रतिपक्ष थे और अभी तक उनके नेता प्रतिपक्ष का निर्णय न होने के बावजूद वह पिछले 10 महीनों से नेता प्रतिपक्ष वाले सरकारी बंगले में ही रह रहे हैं। अब कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष का फैसला कब करेगी, यह तो समय बताएगा लेकिन एक बात साफ है कि नेता प्रतिपक्ष का निर्णय न होने के कारण कांग्रेस पार्टी को सदन के अंदर व बाहर लगातार ताने सुनने पड़ रहे हैं। वैसे भी कांग्रेस हरियाणा में कई गुटों में बंटी हुई है। कांग्रेस की गुटबाजी खत्म करने के लिए पार्टी आलाकमान काफी सक्रिय है और राहुल गांधी ने नवनियुक्त जिलाध्यक्षों को अपनी गुटबाजी खत्म करने और सभी को साथ लेकर जल्द नई कार्यकारिणी गठित करने के निर्देश दिए हैं। जिलों की कार्यकारिणी कैसी बनेगी, यह तो कुछ दिन बाद ही साफ हो पाएगा।
डबवाली को जिला बनाने की मांग
डबवाली को जिला बनाने की मांग एक बार फिर हरियाणा विधानसभा में मजबूती से उठाई गई है। डबवाली से विधायक और इनेलो विधायक दल के नेता आदित्य देवीलाल ने हरियाणा विधानसभा के मॉनसून सत्र में डबवाली को पूर्ण जिला का दर्जा दिए जाने की मांग को काफी जोर-शोर से उठाया है। डबवाली इस समय पुलिस जिला है और भाजपा ने पार्टी के संगठन के तौर पर भी डबवाली को अलग से जिला का दर्जा दिया हुआ है। आदित्य देवीलाल ने यह मांग उठाते हुए कहा कि डबवाली जिला बनाए जाने की सभी शर्तों को पूरा करता है और नए जिलों के गठन के लिए बनाई गई मंत्रिमंडल की सब-कमेटी के समक्ष भी डबवाली के लोग विभिन्न संस्थाएं और संगठन अपनी मांग मजबूती से रख चुके हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जिलों का गठन करते समय डबवाली के दावे को नज़र-अंदाज़ न किया जाए। इसी सप्ताह मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी डबवाली यूथ मैराथन में हिस्सा लेने के लिए गए थे और उस समय भी उनके समक्ष यह मांग दोहराई गई थी। बड़ी बात यह है कि पिछली विधानसभा में भी डबवाली से कांग्रेसी विधायक रहे अमित सिहाग इस मांग को उठाते रहे थे। अनेक गांवों की पंचायतें भी सरकार को इस बारे में अपने प्रस्ताव दे चुकी हैं। सिरसा जिला मुख्यालय से डबवाली की दूरी करीब 60 किलोमीटर और चौटाला गांव की दूरी लगभग 90 किलोमीटर है। इसलिए लोगों को अपने कामकाज करवाने जब सिरसा जाना पड़ता है तो उनका आने-जाने में पूरा दिन निकल जाता है। कांग्रेस, भाजपा, इनेलो व जजपा सहित प्रदेश के सभी राजनीतिक दल इस मांग का अब तक खुला समर्थन कर चुके हैं। विधानसभा में एक बार फिर यह मामला गूंजने के बाद लोगों को डबवाली के पूर्ण जिला बनने की उम्मीद फिर बंध गई है।
स्पीकर में गजब का धैर्य
हरियाणा विधानसभा के स्पीकर हरविन्दर कल्याण के धैर्य और सहनशीलता का विधानसभा के मॉनसून सत्र में खूब इम्तिहान लिया गया। विधानसभा सत्र के पहले ही दिन प्रश्न काल शुरू होते ही कांग्रेस विधायक एवं पूर्व शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल की अगुवाई में कानून व्यवस्था पर दिए गए काम रोको प्रस्ताव पर तुरंत बहस करवाए जाने को लेकर अड़ गए और विधानसभा में नारेबाजी शुरू हो गई। कांग्रेस के कई विधायक स्पीकर के आसन तक भी चले गए। स्थिति को सामान्य बनाने के लिए स्पीकर ने विधानसभा का सत्र आधे घंटे के लिए स्थगित कर दिया। जब सदन की बैठक दोबारा शुरू हुई तो वही शोर-शराबा फिर होने लगा और एक बार फिर सदन की बैठक स्थगित करनी पड़ी। कांग्रेस विधायक बार-बार शोर-शराबा करते रहे और स्पीकर विधायकों को नेम करने या निलंबित करके बाहर निकालने की बजाय बार-बार सदन की कार्यवाही स्थगित करते रहे।
6वीं बार स्थगित हुई विधानसभा
हरियाणा विधानसभा के इतिहास में पहली बार एक ही सिटिंग में लगातार 6 बार विधानसभा की कार्यवाही स्थगित की गई। पिछले चार दशकों से विधानसभा की कार्यवाही कवर करने वाले पत्रकारों और अधिकारियों के लिए यह सब बेहद हैरानी वाली बात थी, क्योंकि इससे पहले पुराने जो भी स्पीकर रहे, वे एक या दो बार कार्यवाही स्थगित करने के बाद विधायकों को नेम करके या निलम्बित करके बाहर निकाल दिया करते थे। लेकिन इस बार प्रदेश के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और स्पीकर हरविन्दर कल्याण के धैर्य और संयम को देखते हुए सभी लोग हैरान रह गए। छह बार स्थगन के बाद आखिरकार सर्वदलीय बैठक के बाद स्पीकर ने कांग्रेस का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए इस पर दो दिन बाद चर्चा करवाने का निर्णय लिया और सदन की कार्यवाही आगे चल पाई। पहले दिन विधानसभा की पहली सिटिंग में न तो प्रश्न काल हो पाया और न ही शून्य काल हो सका। सदन में नारे लगते रहे, पोस्टर लहराये जाते रहे लेकिन स्पीकर ने न तो मार्शल बुलाए और न ही 3 घंटे तक चले हंगामे के बावजूद किसी को बाहर किया। स्पीकर की सहनशीलता की उनके विरोधी भी तारीफ कर रहे हैं।
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