ट्रम्प की चुनौती

अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को टैरिफ (कर) संबंधी दी धमकी को अमल में ला ही दिया है। जनवरी महीने से ट्रम्प के कुर्सी सम्भालने के बाद वह किसी न किसी कारण चर्चा में ही रहे हैं। चाहे उन्होंने इस समय में कई देशों में छिड़े युद्धों को सुलझाने के यत्न किए। चाहे अपने देश से ़गैर-कानूनी प्रवासियों को निकालने में सख्ती दिखाई, चाहे बड़े अन्तर्राष्ट्रीय नेताओं संबंधी उनके बयान ज़रूरत से अधिक आलोचनात्मक रहे और सबसे ऊपर उन्होंने विश्व भर के देशों से अपने देश के साथ होते व्यापार को नए मार्ग पर डालने का यत्न किया। उन्होंने सरेआम यह घोषणा की कि वह अमरीका को अन्य देशों द्वारा निर्यात की जाती वस्तुओं पर लगाए जाते टैक्सों (करों) की दरों पर पुन: विचार करेंगे। इसे उन्होंने कुछ महीनों में ही अलग-अलग स्तरों पर नए टैरिफ लगा कर क्रियात्मक रूप भी दे दिया है। अमरीका को इस नई व्यापार नीति से कितना लाभ होगा, इस संबंध में तो शीघ्र अनुमान लगाया जाना कठिन है परन्तु अपनी ऐसी नीति से ट्रम्प ने एक तरह से अमरीका को ज्यादातर देशों से अलग-थलग कर दिया है।
अब तक दर्जनों ही देशों की सरकारों ने उनकी इस नीति की कड़ी आलोचना की है। इसी क्रम में उन्होंने भारत और चीन जैसे बड़े देशों से किसी तर्क के आधार पर समझौते करने से ही इन्कार नहीं किया अपितु दशकों से चल रहे व्यापार को एक तरह से ब्रेक लगाने का ही यत्न किया है। उनके प्रशासन सम्भालने के बाद भारत और अमरीका में आपसी समझौतों को लेकर लम्बी और विस्तारपूर्वक बातचीत होती रही है, परन्तु वह सफल नहीं हुई। भारत ने आम लोगों और वर्गों के हितों को मुख्य रखते हुए ज्यादातर वस्तुओं पर अमरीका द्वारा लगाए टैरिफों को मानने से इन्कार कर दिया और इसके साथ ही अपने देश के किसानों, डेयरी फार्मिंग से संबंधित व्यापारियों और मछली पालकों के हितों की रक्षा करने के लिए इन क्षेत्रों से संबंधित अमरीकी उत्पादनों के लिए अपने बाज़ार खोलने से भी इन्कार कर दिया है। बातचीत सफल न होने के कारण उन्होंने अपने तौर पर विगत 7 अगस्त से भारत द्वारा अमरीका को किए जाते निर्यात पर 25 प्रतिशत टैक्स लगाने के आदेश जारी कर दिए। इसके बाद उसने भारत को यह धमकी भी दी कि वह रूस से कच्चा तेल न खरीदे और ज्यादातर सैन्य सामान भी उससे न खरीदे। भारत और रूस के दशकों पुराने अच्छे और आपसी मेल-मिलाप वाले संबंध चले आ रहे हैं। रूस ने हमेशा अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर भी भारत के साथ खड़े होने को प्राथमिकता दी है। अमरीकी राष्ट्रपति द्वारा सुनाया गया यह आदेश देश के स्वाभिमान के लिए गवारा नहीं हो सकता। ऐसा न होने की स्थिति में ट्रम्प ने भारत के निर्यात पर 25 प्रतिशत और टैक्स लगाने की धमकी दी थी, जिस पर अब क्रियान्वयन शुरू कर दिया है। वर्ष 2021-22 में अमरीका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा है। वर्ष 2024-25 में दोनों देशों में 131.8 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था।
अब अमरीका के अतिरिक्त टैक्स लगाए जाने से लगभग 48.2 अरब डॉलर के भारत द्वारा भेजे जाते सामान पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। भारत से अमरीका को भेजे जाते कपड़ा, गारमेंटस, आभूषण, झींगा मछली, चमड़ा, जूते और पशु उत्पाद आदि का व्यापार प्रभावित होगा। इसके मुकाबले में म्यांमार, थाईलैंड, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, श्रीलंका, फिलीपीन्ज़ और वियतनाम जैसे देशों को इसका लाभ मिलेगा, क्योंकि इनके ऐसे सामान पर अमरीका द्वारा लगाए गए टैक्स (कर) भारत से काफी कम हैं। नि:संदेह इससे भारतीय बाज़ार पर बड़ा प्रभाव पड़ने की सम्भावना है, परन्तु विगत कुछ समय से भारत ने ब्रिटेन और जापान जैसे विकसित देशों से अच्छे व्यापार समझौतों को सफल बनाया है। आगामी दिनों में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जापान का दौरा कर रहे हैं। जहां वह भारत के जापान के साथ अब तक होते व्यापार को दोगुना करने के लिए बातचीत करेंगे। इसी ही तरह यूरोपियन यूनियन के देशों के साथ भी भारत अपना व्यापार बढ़ाने के लिए कदम उठाने को प्राथमिकता दे रहा है। प्रधानमंत्री ने पहले भी स्वदेशी उत्पादन को लगातार बढ़ाने की नीति अपनाई है और देश को आत्म-निर्भर बनाने का भी लगातार संदेश दिया है। लम्बी अवधि में ऐसी चुनौतियां भारत को, अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अपने यत्न तेज़ करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। नि:संदेह अपने पांवों पर खड़े होने का गौरव देश के स्वाभिमान की निशानी होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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