क्यों रद्द हो जाती हैं केन्द्रीय मदद वाली परियोजनाएं ?
केन्द्र सरकार ने पिछले दिनों पंजाब की लगभग आठ सौ करोड़ रुपये की केन्द्रीय मदद वाली ग्रामीण सड़क परियोजनाओं को रद्द करके प्रदेश की ढिलमुल नीतियों को बड़ा झटका दिया था। यह कार्रवाई पंजाब में सड़क परियोजनाओं हेतु टैंडर जारी करने की प्रक्रियाओं और फिर इनके अन्तर्गत सड़कों के निर्माण अथवा मार्ग विविधिकरण के लिए की जाने वाली कार्रवाइयों हेतु ढीली प्रक्रिया अपनाये जाने के दृष्टिगत की गई है।
केन्द्र सरकार द्वारा प्रदेश को अलाट की गई परियोजनाओं के निर्माण के लिए अक्सर देरी होने और प्रदेश की सरकार द्वारा टैंडरों की अलाटमैंट में देरी की प्रक्रिया अपनाये जाने की शिकायतें चिरकाल से चली आ रही हैं। इस कारण पहले भी ऐसी कई परियोजनाएं अधर में लटकती रही हैं, और कि अनेक बार प्रदेश सरकार को इन परियोजनाओं के लिए आबंटित भारी धन-राशियां वापिस भी लौटानी पड़ी हैं। इससे न केवल प्रदेश को अनेक विकास कार्यों के लटकने का संकट सहन करना पड़ता रहा है, अपितु भारी वित्तीय नुक्सान भी सहन करना पड़ा है। तथापि, मौजूदा चरण पर 800 करोड़ रुपए की राशि का केन्द्र सरकार के खज़ाने में लौट जाना, और इतनी बड़ी राशि की योजनाओं का लटक जाना एक बहुत बड़े संकट के आ़गाज़ जैसा है। नि:संदेह इन परियोजनाओं के रद्द होने से प्रदेश में बेरोज़गारी का संकट भी घनी-भूत हुआ है। ये परियोजनाएं यदि कार-आमद होती तो इनसे न केवल प्रदेश में विकास और उन्नति की राह हमवार होती, अपितु हज़ारों लोगों को रोज़गार भी उपलब्ध हुआ होता।
अब समग्र शिक्षा के धरातल पर एक और परियोजना के लिए केन्द्र सरकार ने पंजाब के लिए 114 करोड़ रुपए की राशि जारी की है। उम्मीद है, प्रदेश सरकार इस परियोजना को लेकर केन्द्र सरकार के सहायता-नियमों एवं कानूनों के अनुसार तालमेल बिठा कर इस राशि का समुचित उपयोग करेगी, और पूर्व की भांति इस परियोजना और इस राशि को बट्टे खाते में नहीं जाने देगी। ग्रामीण सड़क परियोजना का रद्द हो जाना नि:संदेह पहले से ही वित्तीय संकट से जूझ रही प्रदेश सरकार के लिए यह एक बहुत बड़ा झटका है। सरकार अपने स्थापना काल से ही ऋण की बैसाखियों के सहारे चली आ रही है। मौजूदा संकट के दौर में 800 करोड़ रुपए की सड़क परियोजनाएं अधर में लटक जाने से न केवल पंजाब की सरकार को अपने सिर पर ऋण की गठरी को और भारी करना पड़ सकता है, अपितु प्रदेश में नई सड़कों के निर्माण और विनिर्माण के लिए और ऋण उठाना पड़ सकता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि प्रदेश की सरकार पर पहले ही चार लाख करोड़ रुपए से अधिक का कज़र् है, और कि प्रदेश के प्रत्येक प्राणी के सिर पर जन्म लेते ही एक लाख रुपये से अधिक का कज़र् बना होता है।
प्रदेश की सरकार के लिए यह स्थिति तब और भी गम्भीर हो जाती है जब यह पता चलता है कि केन्द्र सरकार ने पहले ही पंजाब के लिए देय राशियों में से 7000 करोड़ रुपए से अधिक का फंड विभिन्न तर्कों के अन्तर्गत रोक रखा है। यह राशि प्रदेश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क निर्माण और अन्य विकास के कार्यों हेतु खर्च की जानी थी। केन्द्र सरकार के सड़क निर्माण मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री सड़क परियोजना-3 के अन्तर्गत केन्द्र ने पंजाब में 628 किलोमीटर से अधिक लम्बाई की 64 सड़कों के विस्तार आदि कार्यों के लिए मंजूरी दी थी। इन सड़कों पर 38 पुलों के निर्माण अथवा सुधार का कार्य भी किया जाना था। प्रदेश सरकार को यहां यह सुनिश्चित करना था कि इन परियोजनाओं की टैंडर प्रक्रिया तथा निर्माण कार्य विधिवत रूप से सम्पन्न होता रहे। इस हेतु 31 मार्च, 2025 की तिथि निर्धारित की गई थी, किन्तु इस दौरान चार बार टैंडर जारी होने के बावजूद प्रदेश सरकार निर्माण कार्यों की शुरुआत नहीं करा सकी। लिहाज़ा केन्द्र सरकार ने न केवल इन परियोजनाओं की मंजूरी रद्द कर दी, अपितु इनके लिए आबंटित की गई राशि भी रोक ली।
हम समझते हैं कि केन्द्र सरकार की यह कार्रवाई न केवल पंजाब की सरकार के लिए बड़ा झटका है, अपितु इससे प्रदेश के विकास का पथ अवरुद्ध होने का भी ़खदशा है। बेशक इस कारण प्रदेश में बेरोज़गारी का दंश भी तीव्र हो सकता है। केन्द्र के इस फैसले से प्रदेश की केन्द्रीय सहायता से पहले से चल रही सड़क विकास परियोजनाओं का निर्माण कार्य भी प्रभावित होगा। हम यह भी समझते हैं कि प्रदेश की सरकार को केन्द्रीय मदद से चलने वाली परियोजनाओं के लिए, वांछित प्रक्रियाओं की सम्पन्नता हेतु अपने प्रशासन को पूर्णतया दक्ष और क्रिया-सम्पन्न अवश्य बनाना चाहिए। प्रदेश सरकार के पास अपने हिस्से से अदा की जाने वाली सहयोग-राशि की उपलब्धता भी यकीनी होनी चाहिए। अधिकतर केन्द्रीय योजनाएं इसी सहयोग राशि की अनुपलब्धता से ही निरस्त होती हैं। सड़क परियोजनाओं के लिए वांछित भूमि के अधिग्रहण हेतु किसान-हित और कृषि-समर्थक नीतियों का निर्धारण भी बेहद ज़रूरी है। हम समझते हैं कि इस प्रकार की कवायद किये बिना प्रदेश की केन्द्रीय सहयोग वाली परियोजनाएं ऐसे ही अवरुद्ध होती रहेंगी।



