मज़बूत लोकतंत्र भारत में अराजकता की कोई गुंजाइश नहीं
पिछले दिनों अपने पड़ोसी देश नेपाल में जो हुआ वह बहुत चिंताजनक रहा। सेना के दखल के बाद वहां की स्थिति धीरे धीरे सामान्य हुई। चर्चा है कि सोशल मीडिया पर बैन के बाद नेपाल में युवाओं में आक्रोश फैल गया और एक राजनीतिक आंदोलन में बदल गया। वहां की सरकार का तख्ता पलट दिया गया। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के खिलाफ जनता का गुस्सा ऐसा फूटा कि लोगों ने सीधे सड़कों पर आकर जो तांडव मचाया वैसा नेपाल के इतिहास में पहली बार हुआ है। मंत्रियों को दौड़ा -दौड़ा कर पीटा गया। संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट व व्यवासायिक प्रतिष्ठानों की इमारतें आग के हवाले कर दिया गया। सब जगह अराजकता का माहौल उत्पन्न हो गया। कैदी भी जेल तोड़कर भाग गए। इसी बीच जनता की मांग व आंदोलनकारियों की सहमति पर सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया।
इसके पहले श्रीलंका और बांग्लादेश में इसी तरह का आंदोलन हो चुका है। भारत में भी कुछ अराजक लोग इस खुशफहमी में हैं कि भारत में भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। दरअसल जनता में आक्रोश का सबसे बड़ा कारण होता है सरकार का भ्रष्टाचार में लिप्त होना। जे.पी. आंदोलन भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही किया गया था लेकिन उस समय भी इस तरह की अराजक स्थिति देश में नहीं हुई थी। लोगों ने लोकतांत्रिक तरीके से अपने गुस्से का प्रकटावा किया था। चुनाव में तब की सरकार को हटाकर सत्ता से बेदखल किया गया था। हमारी सेना इतनी निष्पक्ष और लोकतांत्रिक है कि हमारे देश में इस तरह की अराजक स्थिति कभी पैदा नहीं हो सकती है। सबसे बड़ी बात ये है कि छोटे-मोटे देश में इस तरह की स्थिति पैदा होना संभव है क्योंकि आबादी कम होने से लोगों में एकता होना संभव है लेकिन भारत जैसी आबादी वाले देश में सभी लोगों का सड़कों पर उतरना असंभव है। यहां नेपाल, श्रीलंका या बांग्लादेश जैसा आंदोलन कदापि संभव नहीं है।
सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इसके लिए सरकार के खिलाफ जनाक्रोश ज़रूरी है। अगर सरकार अपने दायित्वों को बखूबी अंजाम दे रही है तो मुठ्ठी भर लोगों के सरकार के खिलाफ होने से कोई बात बनने वाली नहीं है और जब सरकार पूरी तरह राष्ट्रवादी हो तो यह और भी नामुमकिन हो जाता है। अभी देश की अधिकतर जनता सरकार के साथ है। कुछेक विपक्षी दलों को छोड़कर देश की जनता प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को देखना चाहती है। ऐसे में कुछ विपरीत विचारधारा वाले लोगों के चाहने से कुछ नहीं होने वाला है। इसलिए इतना तो तय है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चंद मुठ्ठी भर लोग अराजकता कदापि नहीं फैला सकते। इस देश में लोकतंत्र की जड़ें काफी मजबूत हैं, इसलिए यहाँ पड़ोसी देशों की घटनाओं का कोई असर नहीं होने वाला है। यहां तक कि विश्व भर की उथल-पुथल की घटनाओं से भी इस देश के सेहत पर कोई असर होने वाला नहीं है। रूस-यूक्रेन युद्ध का कोई असर भारत में नहीं देखा गया। उसी तरह इज़रायल और ईरान या इज़रायल और हमास के बीच होने वाले युद्ध से भी भारत पर कोई असर नहीं पड़ा और ना पड़ने वाला है।
भारत अपने हितों को सुरक्षित रखने में पूरी तरह सक्षम है और ये भी तय है कि पड़ोसी देशों में अराजकता फैलने से भारत पर आंशिक रूप में ही असर हो सकता है। बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद थोड़े बहुत हिंदुओं का पलायन ज़रूर हुआ है, लेकिन बहुसंख्यक हिन्दू अभी बांग्लादेश में ही हैं। भारत के साथ मैत्री संबंध होने से पड़ोसी देश को ही फायदा होता है। नेपाल के साथ हमारा बेटी-रोटी का संबंध है और वहां कोई दल सत्ता में रहे, भारत के साथ संबंधों में ज़्यादा परिवर्तित होने वाला नहीं है। नेपाल में व्यापक जनसमूह भारत के साथ बेहतर रिश्ता रखने में विश्वास रखता है।
भारत में कुछ लोग हमेशा से ऐसे रहे हैं जिनको कुछ भी सुविधा दे दी जाए, वे असंतुष्ट ही रहते हैं। व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा यहां के लोगों में कूट-कूट कर भरी हुई है। भारत अपनी गति से आगे बढ़ रहा है। भारतीय अर्थ-व्यवस्था धीरे-धीरे सुदृढ़ होती जा रही है। देश विश्व की तीसरी बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। पूरे विश्व के लिए ये चिंता का सबब बना हुआ है। इसलिए देश विरोधी ताकतें भारत को कमज़ोर करने की साज़िश कर रही है, लेकिन इसमें उनको कोई सफलता नहीं मिलने वाली है।
भारत के विपक्षी दल सकारात्मक विपक्ष की भूमिका कतई नहीं निभा रहे हैं। विपक्षी दलों का नकारात्मक रवैया देश को नुकसान पहुंचा रहा है। विपक्षी दल कभी भी सरकार को उन मुद्दों पर नहीं घेरते जिसका जनता से कोई सरोकार हो। आज का विपक्ष जनता के जायज़ मुद्दों के लिये सड़कों पर धूप में नहीं निकलता। सबको छाया में रहने की आदत हो गई है। जनता के मुद्दे के लिये सड़क पर लाठी खानी पड़ती है। सड़के गड्ढों से भरी होती हैं, लेकिन इसके लिए कोई आवाज़ नहीं उठाता है। अस्पताल में डॉक्टर उपलब्ध नहीं रहता पर इसके लिए कोई आवाज़ उठाने को तैयार नहीं है। बेरोज़गारी तथा आर्थिक असमानता के खिलाफ कोई आवाज़ नहीं उठाता।
सिर्फ टी.वी. पर बहस में महंगाई और बेरोज़गारी का मुद्दा उठाने से कुछ नहीं होगा, इसके खिलाफ निरन्तर संघर्ष करना होगा। आज जो देश की परिस्थिति है उसमें देश का विपक्ष कभी भी सत्ता हासिल करने के बारे में सोच नहीं सकता। इस मानसिकता से लोगों को उबरना होगा। (अदिति)