पंज आब बनाम मित्र प्यारे

बादलों का फटना तथा बाढ़ का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा। हिमाचल, हरियाणा तथा पंजाब से होते हुए उत्तराखंड पहुंच गया। देश विभाजन के दिनों में आई ऐसी बाढ़ ने करतार सिंह चर्खा नामक कवीशर से निम्नलिखित शब्द लिखवाए तथा बुलवाए थे।
कंधां कोठे सारे हिल्ल गये
लग्गीआं साऊण दीआं झड़ीआं 
गलीआं ’च गोहा तरदा
कट्ठीआं हो के गवांढणां लड़ीआं
सीमा पार से आए शरणार्थ तीन-चार वर्ष अपने-अपने कैम्पों में ही खाते-पीते तथा सोते रहे। वर्तमान ज़ीरकपुर के निकट घग्गर (मुबारकबाद) वाले कैम्प में झंग से आईं महिलाओं को नंगे पांव काम करते मैं देखता रहा हूं। 
परन्तु वह दृश्य वर्तमान कहर से बहुत कम था। कहते हैं कि आज का कहर पर्वतों तथा इनके पांवों में उगे पेड़ों तथा जड़ी-बूटियों की अंधाधुंध कटाई का परिणाम है, या फिर नदियों के प्राकृतिक बहाव से की गई मानवीय छेड़छाड़ का। पर्वत चीर कर बनाए मॉल, रैस्टोरैंट एवं आवास तथा कई-कई मार्गों वाली खुली सड़कों इसका मुख्य कारण माना जाता है।  
धर्म स्थानों तथा सरबत दा भला चैरिटेबल ट्रस्ट जैसे गैर-सरकारी संगठन तथा संस्थाएं ट्रकों में राशन-पानी, वस्त्र तथा दवाईयां लेकर पीड़ित परिवारों का दुख बांटने चल पड़ी तो पड़ोसी राज्यों की सरकारों ने भी अपने मंत्रियों को आपदाग्रस्त क्षेत्रों में जाने के साधन जुटा दिए। इंटरनैट की यू-ट्यूब का जाना-पहचाना चेहरा प्रिंसीपल बचित्र सिंह तरसिक्का भी प्रभावित क्षेत्रों में वाहन रोक कर निर्देश देते रहे। दुबई में बड़ी परियोजनाओं शुरू करने वाले एस.पी. सिंह ओबराय 55 टन सूखा चारा लेकर तरनतारन तथा पट्टी पहुंचे तथा उन्होंने बीएसएफ की 155 तथा 99 बटालियनों की 54 से अधिक चौकियों के लिए दो ट्रक राशन, वस्त्र तथा दवाईयां हुसैनीवाला सीमा तक पहुंचाए, विशेषकर ब्लीचिंग पाऊडर, क्लोरीन की गोलियां, कार्बोंनिक एसिड, नाईलोन के रस्से, पीने वाला पानी, दस्ताने, ड्रैसिंग सामग्री तथा प्लास्टिक ड्रम। बीएसएफ की ज़रूरतों को समझना एक ऐसा कार्य था जिसकी ओर केन्द्र तथा राज्य सरकार का ध्यान ही नहीं था। 
दूषित पानी पीने से दस्त, हैज़ा, टाइफाईड जैसी बीमारियां पैदा होने की आशंका बढ़ जाती है। खड़े पानी में मच्छरों का लारवा पनपने से मच्छरों की भरमार हो जाती है, जिससे डेंगू तथा मलेरिया जैसी बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ जाता है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में फॉगिंग तथा मच्छरों की रोकथान की ओर विशेष ध्यना देना पड़ता है। सीलन वाले स्थानों पर रहते लोगों को त्वचा की बीमारियां तथा फंगल इंफैक्शन होने की बहुत सम्भावना होती है। इसी तरह पशुओं में भी बहुत-सी बीमारियां फैलने सकती हैं। आमजन तथा पशुधन की देखभाल बाढ़ के बाद भी करनी पड़ती है।
सरबत दा भला चैरिटेबल ट्रस्ट ने इन ज़रूरतों के दृष्टिगत चैरिटेबल लैबोटरियां, फिज़ियो थैरेपी सैंटर तथा डैंटल क्लीनिक स्थापित करके इनके लिए ऐम्बूलैंस वैनें भी दान की हैं। प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए ट्रस्ट द्वारा ऐसी सुविधा अखनूर (जम्मू) के गुरुद्वारा तप स्थान वाले संत बाबा सुन्दर सिंह अलीबेग के लिए जुटाना विशेष ध्यान मांगता है। इस कठिन समय में राज्य सरकारों को भी चाहिए कि विशेष गिरदावरी करवा कर प्रभावित किसानों को उचित मुआवज़ा दें तथा ध्यान रखें कि खेत मज़दूरों तथा अन्य प्रभावित लोग वंचित न रह जाएं। समाज सेवी संस्थाओं को बाढ़ का पानी उतरने के बाद भी किसानों की बाजू पकड़नी चाहिए। खेतों को समतल करके कृषि योग्य बनाने के लिए समय लगेगा। बाढ़ का पानी उतरने के बाद विशेष चौकसी बरतने की ज़रूरत होगी। स्वास्थ्य विभाग तथा पशु पालन विभाग की ज़िम्मेदारी और बढ़ जाएगी। आवश्यक है कि ज़हरीले पदार्थों के मिल जाने से भू-जल दूषित हो चुका है। इस ओर भी ध्यान देने की विशेष ज़रूरत है। होम्योपैथी की दवाईयां देने वाले मेरे मित्र चन्द्र त्रिखा ने 1945 में अखंड हिन्दुस्तान के टुकड़े करने वाले ब्रिटिश अधिकारी पर व्यंग्य करते हुए यह सवाल भी किया है कि उनके द्वारा 78 वर्ष पहले खींची गई विभाजन की रेखा कहां है? बाढ़ के पानी ने एलओसी तथा एलएसी धो डाली हैं। अब तो इन पर आम जनता ही पहरा दे सकती है।
वर्तमान भारत में पोठोहारिये
भारत में अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेयरमैन रहे तरलोचन सिंह को ब्रिटेन की पोठोहार एसोसिएशन द्वारा सम्मानित किए जाने के समाचार ने वहां से आए उन महारथियों की याद दिला दी है, जिन्होंने भारत आकर बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। इनमें इन्द्र कुमार गुजराल तथा मनमोहन सिंह यहां के प्रधानमंत्री रहे और हरदित्त सिंह मनिक राजदूत। इनके अतिरिक्त गुरमुख सिंह मुसाफर, जनरल जगजीत सिंह तथा मास्टर तारा सिंह ने सेना तथा राजनीति में उपलब्धि हासिल की और भाई जोध सिंह, कवि मोहन सिंह तथा उपन्यासकार करतार सिंह दुग्गल ने शिक्षा तथा साहित्य के क्षेत्र में।
लंदन स्थित यह पोठोहार एसोसिएशन समय-समय पर ऐसे महापुरुषों को सम्मानित करती रही है, जो देश के विभाजन के समय रावलपिंडी, जेहलम तथा कैबलपुर में अपना घर-बार त्याग कर शरणार्थी बन गए और इधर आकर अपने साहस तथा उद्दम से बड़ी उपलब्धियां हासिल करने के योग्य बने। ज़िन्दाबाद!
अंतिका
(सुरजीत पातर)
सतलुज नूं कुझ समझ ना आवे, 
जश्नां विच्च किंझ रोवे
ना वी रोवे तां लहिरां विच्च, 
लाशां किवें लुकोवे
नाल नमोशी पानी, होये झनां के पानी
ऩफरत दे विच्च डुब्ब के मर गई, 
हर इक प्रीत कहानी
कहे बिआसा मैं बेआसा, 
मैं की धीर धरावां
एह रत्त रंगे आपणे पानी, 
कित्थे धोवण जावां
जेहलम आखे चुप्प कराओ, 
पानी दा की रोणा
किस तक्कना पानी दा हंझू, 
पानी विच्च समोणा।

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