प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है गांव मलाणा
हिमाचल प्रदेश का यह गांव मलाणा हिमालय की चोटियों के बीच स्थित है और चारों तरफ से गहरी खाइयों व बर्फीले पहाड़ों से घिरा हुआ है। इसलिए मलाणा तक कोई सीधी सड़क नहीं जाती है। पहाड़ी पगडंडियों से होते हुए ही यहां तक पहुंचा जा सकता है। कुल्लू घाटी के निकट पार्वती घाटी की तलहटी में स्थित जरी गांव से यहां तक सीधी चढ़ाई है। जरी से मलाणा तक पहुंचने में मुझे चार घंटे से भी अधिक का समय लगा। मलाणा नाला में यह एकमात्र गांव है।
जब मैं मलाणा जा रहा था तो यह सोच रहा था कि इतना कष्ट उठाते हुए भला कौन पर्यटक इस गांव में जाता होगा लेकिन मलाणा पहुंचकर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि वहां तो देश के ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक भी मौजूद थे और अच्छी खासी संख्या में। वह भला क्यों मौजूद न होते, मलाणा न सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य व सुकून का गढ़ है बल्कि संभवत: भारत का सबसे रहस्यमयी गांव है। इस गांव के अनेक ऐतिहासिक किस्से, रहस्यमयी और अनसुलझे सवाल हैं। इस गांव में स्वशासित लोकतांत्रिक व्यवस्था है।
मलाणा की आबादी लगभग 1500 है। यह लोग खुद को यूनान के विख्यात राजा सिकंदर महान का वंशज बताते हैं। इनके अनुसार, सिकंदर ने जब हिंदुस्तान पर हमला किया था, तो उसके कुछ सैनिकों ने मलाणा में पनाह ली और हमेशा के लिए यहीं पर बस गये लेकिन यह लोग यूनानी नहीं बोलते हैं बल्कि एक ऐसी भाषा बोलते हैं जो दुनिया में कहीं नहीं बोली जाती। यह लोग कनाशी नाम की भाषा बोलते हैं। उनके लिए यह पवित्र भाषा है, इसलिए गांव के बाहर के किसी भी व्यक्ति को यह भाषा सिखायी नहीं जाती है। वैसे इस भाषा पर अनेक देशों में शोध हो रहे हैं।
मलाणा में भले ही यूनानी न बोली जाती हो, लेकिन यहां ऐसी अनेक चीज़ें मिली हैं जो यहां के लोगों का सिकंदर से संपर्क होने की ओर इशारा करती हैं। ग्रामीणों का दावा है कि उनके मंदिर में जो तलवार रखी हुई है, वह सिकंदर महान की है। मुझे एक अजीबोगरीब बात भी मलाणा में देखने को मिली। मैंने एक दुकान से खाने की एक चीज़ खरीदी। दुकानदार ने वह चीज़ मेरे हाथ में नहीं पकड़ाई बल्कि काउंटर पर रख दी कि मैं उसे स्वयं उठा लूं। मैंने जब उसे पैसे दिये तो उसने वह भी मेरे हाथ से नहीं पकड़े बल्कि काउंटर पर ही रखने का इशारा किया। मुझे अजीब लगा। ऐसा महसूस हुआ जैसे वह मुझे अछूत समझ रहा हो। लेकिन जल्द ही मुझे मालूम हुआ कि मलाणा के लोग बाहरी व्यक्तियों से हाथ मिलाने व उन्हें स्पर्श करने से भी परहेज़ करते हैं। यह उनकी संस्कृति का हिस्सा है या ऐसा भी अनुमान है कि वह खुद को इतना श्रेष्ठ व पवित्र समझते हैं कि अगर बाहरी व्यक्ति से उनका अनजाने में भी स्पर्श हो गया तो वह अपवित्र हो जायेंगे।
आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि मलाणा के लोग शादियां भी अपने गांव के भीतर ही करते हैं। अगर कोई गांव के बाहर शादी कर लेता है, तो उसे समाज से बेदखल कर दिया जाता है। वैसे गांव के लोगों का कहना है कि ऐसा कोई मामला कभी सुनने में नहीं आया कि किसी ने गांव से बाहर शादी की हो और उसे समाज से बेदखल करने की आवश्यकता पड़ी हो। बहरहाल, शाम होने को थी और मुझे कठिन रास्ते से वापस लौटना था। मलाणा से हर पर्यटक को मजबूरन दिन में ही लौटना पड़ता है क्योंकि चाहते हुए भी वह गांव में ठहर नहीं सकता। रात में मलाणा के सारे गेस्ट हाउस बंद कर दिये जाते हैं, क्योंकि पर्यटकों व बाहरी लोगों को केवल दिन में ही गांव में आने की अनुमति है।
मान्यता यह है कि जमलू देवता का ऐसा ही आदेश है। इसलिए अगर आप मलाणा जाने का इरादा करें तो पहले यह अंदाज़ा कर लें कि आप दिन में आठ घंटे की चढ़ाई व पहाड़ी पगडंडियों से उतर सकते हैं या नहीं। साथ ही गांव में भी पैदल ही घूमना होगा। अगर आपके लिए यह मुमकिन है तो फिर मलाणा का प्राकृतिक सौन्दर्य, उसका रहस्य व इतिहास और उसके लोग आपको हमेशा याद रहेंगे। पर्यटकों से उम्मीद की जाती है कि वह स्थानीय रीति-रिवाजों व परम्पराओं का पालन करें, जिन्हें शताब्दियों से सुरक्षित रखा गया है। हालांकि अन्य जगहों की तरह मलाणा में भी परिवर्तन की लहर बहुत धीमे-धीमे आ रही है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर