जोड़ तोड़ का खेल बेजोड़

घर हो, परिवार हो या राजनीति का अखाड़ा। समस्या हर जगह होती है खड़ी। अपने अधिकार के लिए जोड़-तोड़ की नीति अपनाकर अपने करतूतों से फोड़कर, नाता जोड़ने की कवायद चलते रहता है। यह कार्यक्रम दिन-प्रतिदिन फलीभूत लाभदायक होते जा रहा है। घर परिवार के शांति को भंग कर या राजनीतिक गलियारे में विपक्ष को तंग कर आज शासन प्रशासन में इसी तरह के लोगों को खड़ा कर जमावड़ा लगाया जाता रहा है। इनका प्रयास यही होता है तोड़ने का कयास लगाकर, अमन चैन को बेचैन कर अपने सत्यानाशी विचारधारा के प्रवाह में, जनता के सुकून को मिट्टी में मिला, उनकी सिट्टी-पिट्टी गुम कर अपने नाम का धूम मचाने का प्रयास करे। ये राजनीति में देर-सवेर इस तरह की अपनी प्रस्तुति करते रहते हैं, देते रहते हैं।
आज हर जगह यही चल रहा है। मंच पर चढ़कर बातें तो स्पष्ट वगैर लाग-लपेट के टंच करेंगे लेकिन गहराइयों में जाकर इनका अवलोकन किया जाए तो जनता के सुख-सुविधाओं को पंच करने में यह अव्वल भूमिका निभाते हैं। तात्पर्य यह है कि खाने के दांत और दिखाने के दांत अलग-अलग होता है, उसमें अंतर होता है। अपना सुख भोगने के लिए दूसरे को दुख या कष्ट भी दिया जाए तो चलेगा कोई बात नहीं। ये लोग इसी सिद्धांत पर कार्य करते हैं। यदि कोई परिवार सुख शांति से जीवन यापन कर रहा है तो उसे तोड़ कर उस में द्वेष भरने के लिए इनके मन में क्रांति का भाव जगाता है कि कैसे तोड़ा जाए। जिसको तोड़ा जाता है उसको ऐसा मरोड़ा जाता है कि वह अपना सुध-बुध खो दे, शांत सरोवर में कलह का बीज बो दे। कितना भी समझाया जाए एक से बढ़कर एक उपमा देकर उस विकट परिस्थिति से कैसे बाहर लाया जाए लेकिन वह अपने मिशन से एक रति भी इधर से उधर टस-से-मस नहीं होता। इनके तरफ से ऐसा अंधभक्ति का दवाई या घूंट पिलाया जाता है। जीवन में एक यौवन काल होता है। जब आता है तो उस समय जीवन रंगीन और गमगीन के घेरे में चक्कर काटते रहता है। कहावत है। दिल है कि मानता नहीं, सुनता ही नहीं एक ऐसा होता है सवार जुनून, जो अपने धुन में मगन रहता है। 
और दूसरा काल प्रलोभन काल का दौर होता है। अगर कोई उस अमूक परिवार में घुसकर, इसमें अपनी उपस्थिति दर्ज करा तोड़ने की चिंगारी को हल्के में फेंकते ही अपना वृहद प्रभाव छोड़ने लगता है और यही आगे चलकर तोड़ने का कारण बनता है। यह जिस पर प्रयोग किया जाता है, यहां आते तक अपना अप्पा खो चुका होता है। जब तोड़ने वाले का निरंतर चाबुक चलता है या जिस पर छोड़ा जाता है वह भावूक खोकर अपने कमियों को उजागर कर अपने ही धुन को जुनून की तरह पेश करता है। उसके शांत चित फेश पर द्वेष दिखने लगता है। उसे कुछ सुझता नहीं है। पिछली सारी बातें भूल जाता है उसके परिवार ने क्या-क्या किया एक छोटी से भूल ने तूल पकड़कर परिवार को तोड़ने में पीछे नहीं हटता।
राजनीति के तलवार की धार दुधारी होती है। वह जनता का प्यारी बनाकर दुआरी-दुआरी जाती है और जीतते ही जनता जो बनाती है उसी को लताडती है। इसलिए परिवार हो या राजनीति दोनों जगहों पर कूटनीति घुसने ना पाए। क्योंकि यह द्वेष से प्रेरित हो परिवार के बीच प्रवेश से परिवेश बदल देता है।
मो. 8329680650

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