भारत के किसानों का आर्थिक सहारा है केर का पेड़

भारत की शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों में पाये जाने वाले पारंपरिक पेड़ों में केर का एक विशेष स्थान है। केर का वैज्ञानिक नाम कैपेरिस डेसीडुआ है। यह पेड़ न केवल प्राकृतिक रूप से कठोर परिस्थितियों में जीवित रहता है बल्कि इन भौगोलिक क्षेत्रों के किसानों को बहुआयामी आर्थिक लाभ भी पहुंचाता है। राजस्थान के लोग जीवन और आहार संस्कृति में केर की खास पहचान है और आजकल धीरे-धीरे इसकी व्यवसायिक खेती किसानों को आकर्षित कर रही है। 
केपारीजासई परिवार के इस पेड़ के स्थानीय नाम कई हैं। जैसे- केर, कहीं कैर, कहीं करिर, कहीं करेल, तो कहीं इसे काबर भी कहते हैं। यह पर्णहीन कांटेदार झाड़ीनुमा वृक्ष है, जिसकी ऊंचाई सामान्यत: 2 से 4 मीटर होती है। इसकी खासियत यह है कि बेहद सूखे इलाकों, गर्म और रेतीली जमीन में भी आसानी से उग आता है और इसमें फलने वाले छोटे-छोटे हरे बेर जैसे फल अचार, सब्जी और चटनी के साथ-साथ बहुत सारी आयुर्वेदिक दवाओं और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल होते हैं। केर का पेड़ विशेषकर राजस्थान के थार मरुस्थल, नागौर, जोधपुर, बाड़मेर जैसलमेर और बीकानेर के इलाकों में बहुतायत रूप में पाया जाता है। इसके अलावा यह हरियाणा और पंजाब के शुष्क इलाकों, गुजरात के कच्छ क्षेत्र, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड और महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश के शुष्क तथा अर्धशुष्क क्षेत्र में पाये जाते हैं। अब चूंकि इस पेड़ के तमाम आर्थिक फायदे उभरकर सामने आये हैं, इसलिए इसे इन सभी जगहों में जहां यह प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। बड़े पैमाने पर लगाया जा रहा है, खासकर बंजर, पथरीली और रेतीली भूमि वाले क्षेत्र में। ऐसी जमीन जहां पानी की कमी हो और अन्य फसलें सफल न होती हों, वहां केर के पेड़ के कई आर्थिक और सामाजिक फायदे हैं। 
जहां तक केर के पेड़ के आर्थिक फायदों की बात है तो ताजे केर के फल स्थानीय मंडियों में 80 से 120 रुपये प्रतिकिलो आसानी से बिक जाते हैं। जबकि सूखे फलों की कीमत 250 रुपये से लेकर 400 रुपये प्रतिकिलो आसानी से मिल जाती है। देश ही नहीं इन दिनों अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में भी इन दिनों भारतीय केर विशेषकर राजस्थानी केर के फलों की भारी मांग है। इसके फलों से अचार, मसाला, सब्जी और हर्बल दवाएं बनती हैं। राजस्थान और दिल्ली में केर का अचार एक बड़ा ब्रांड बन चुका है। सूखा केर मसाला सब्जी बनाने में उपयुक्त होता है और इसकी भी बहुत मांग है। खाड़ी देशों में और यूरोप के बाज़ारों में भारतीय केर उत्पादों की भारी मांग है। इसलिए इसके निर्यात की भी खूब संभावनाएं हैं। केर के औषधीय और हर्बल उत्पाद भी खूब मांग में हैं। आयुर्वेदिक दवाओं में इस पारंपरिक शुष्क फल का खूब प्रयोग होता है। इसलिए कई हर्बल कंपनियां इस फल के लिए सीधे किसानों से ही अनुबंध कर लेती हैं। इस सबके अलावा केर के पौधे की टहनियां बाड़ यानी फैंसिंग के लिए भी बहुत उपयोगी साबित होती है। 
केर का पेड़ प्राकृतिक रूप से हवाओं को रोकने और मिट्टी संरक्षण का कार्य करता है। जहां तक केर के पेड़ की उत्पादन खूबियों यानी इसके लगाने और इसकी देखरेख का सवाल है तो इस पेड़ को अतिरिक्त सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती। वर्षा आधारित खेती में यह आसानी से फलता फूलता है। केर का पेड़ जिस तरह की मिट्टी में आसानी से लग जाता है, वह हल्की, बलुई और पथरीली मिट्टी से लेकर दोमट मिट्टी तक कोई भी हो सकती है। जहां तक इस पेड़ के जरिये मिट्टी की सुरक्षा का सवाल है तो केर के पेड़ की जड़ें मिट्टी को बांधती हैं, जिस कारण यह मरुस्थलीयकरण की प्रक्रिया को रोकने में मददगार साबित होता है। केर का पेड़ 40 से 45 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी और शुष्क हवाओं को आसानी से सहन कर लेता है। यह इस तापमान में खूब फलता फूलता है। क्याेंकि केर के फल में कई तरह के औषधीय गुण पाये जाते हैं, जैसे यह हमारी पाचन प्रक्रिया को सुधारता है। त्वचा रोग की समस्याओं को दूर करता है, हृदय और लिवर संबंधी बीमारियों में फायदेमंद होता है। इसलिए आयुर्वेदिक दवा उद्योग में भी केर के फलों की अच्छी खासी मांग है। केर के पेड़ की लकड़ी भी बड़े काम की है। यह जलावन और फैंसिंग के काम तो आती ही है, पशुओं के चारे के काम भी आती है। 
इस तरह किसान भाई केर के पेड़ से कई किस्म के फायदे ले सकते हैं। ये अपनी बंजर जमीन में केर के पौधे लगाकर इसे आजीविका का स्रोत बना सकते हैं। केर के पेड़ में तीन से चार सालों में फल आना शुरु हो जाता है। साथ ही केर के पेड़ को उन खेतों में आसानी से लगाया जा सकता है, जहां बाजरा, चना, मंगूफली आदि की खेती भी की जा सकती है। इससे जमीन का दोहरा उपयोग तो होता ही है, किसानों को अच्छा आर्थिक फायदा भी मिलता है। महिलाएं केर के अचार और सूखे फलों से कई तरह के कुटीर उद्योग खड़े कर सकती हैं और बहुत आसानी से कमाई कर सकती हैं। गौरतलब है कि राजस्थान में केर को ‘वन डिस्ट्रिक, वन प्रोडक्ट’ के अंतर्गत प्रोत्साहन दिया जाता है। इसके अलावा राजस्थान में और देश के दूसरे प्रांतों में भी बंजर भूमि विकास और बानगी योजनाओं के तहत केर के रोपण पर सब्सिडी मिलती है। बहरहाल जहां तक कमाई का सवाल है तो केर का एक परिपक्व पेड़ हर साल औसतन 15 से 25 किलो फल उत्पादित करता है। इस तरह केर का एक पेड़ 2000 से लेकर 4000 रुपये तक की न्यूनतम कमाई करा सकता है।
अगर किसान 100 केर के पेड़ लगा लेते हैं तो हर साल इसके फलों से वे तीन से चार लाख रुपये आसानी से कमा सकते हैं। इस तरह केर का पेड़ भारतीय शुष्क क्षेत्रों का एक ऐसा प्राकृतिक वरदान है, जो कम पानी, कम लागत और कम देखभाल में आसानी से तैयार हो जाता है तथा कमाई भी हर साल अच्छी खासी करा देता है। यदि किसान संगठित होकर प्रसंस्करण और ब्रांडिंग पर ध्यान दें तो केर का पेड़ उन्हें आत्मनिर्भर और समृद्ध बना सकता है। इसलिए अगर कहा जाए कि केर का पेड़ एक पौधा नहीं बल्कि शुष्क भारत के किसानों का आर्थिक सहारा है, तो इसमें अतिश्योक्ति कतई नहीं होगी। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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