विश्व-प्रसिद्ध है जोधपुर का मोमेंटो व्यवसाय

किसी को उसकी कामयाबी पर नवाजने के क्षणों का दस्तावेज है ‘मोमेंटो’! वैसे तो प्राय: यह परंपरा है कि व्यक्ति के कामयाब होने पर उसे प्रोत्साहन स्वरूप सम्मान पत्र दिए जाते हैं, लेकिन ऐसे अवसरों पर मिलने वाले ‘स्मृति चिन्ह’ का अपना ही महत्व है, जो कि एक यादगार वस्तु के रूप में होता है जिसे लोग ताउम्र अपने ड्राईंगरूम में सहेजकर रखते है। मोमेंटो का स्वरूप समय के साथ बदलता रहा है। अंग्रेजों के शासनकाल में मोमेंटो सोने-चांदी के बनवाकर व्यक्ति को विशेष अवसरों पर भेंट किए जाते थे। आज़ादी के बाद ये स्मृति चिन्ह पीतल-तांबे व जस्ते के बनने लगे। धीरे-धीरे इनमें भी बदलाव आता गया और यह शील्ड और कपों व ट्राफी के रूप में भेंट किया जाने लगा। आजकल पीतल के मोमेंटो खास अवसर पर ही बनवाए जाते हैं, चूंकि ये काफी महंगे होते हैं, बड़े-बड़े आयोजनों में ही पीतल के मैडल, ट्राफी व शील्ड दिए जाते हैं तो धार्मिक मूर्तियों का भी प्रचलन है। पहले जमाने के बहुत से लोग अपनी आर्थिक स्थिति गड़बड़ाने पर अपने स्मृति चिन्ह तक बेचकर अपना गुजारा चला लेते थे, लेकिन आज यह संभव नहीं है, क्योंकि अब ये शुद्ध एल्यूमीनियम के बनने लगे है। 
राजस्थान के दूसरे बड़े शहर जोधपुर में ‘मोमेंटो’ बनाने का धंधा आजकल जोरों पर है, जोकि समूचे देश के शहरों को यहां से आपूर्ति करने में अग्रणीय है। यही वजह है कि जोधपुर में चप्पे-चप्पे पर फैले इस व्यवसाय में सैकड़ों डिजाइन के स्मृति चिन्ह उपलब्ध हैं जो कि 25 रूपये से लेकर दस हजार तक की कीमत के हैं। प्रतियोगिता के दौर में आज स्मृति-चिन्हों की मांग में तेजी आ जाने से मोमेंटो व्यवसाय तेजी से फल फूल रहा है, जिससे हजारों लोगों को रोज़गार भी मिला है। 
हालांकि पीतल से बने मोमेंटो की भी मांग है, जिसे मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश) पूरी करता है। हालांकि जोधपुर के भी व्यवसायी अपनी फैक्ट्रियों में विभिन्न प्रकार के पीतल के मोमेंटो भी ढालने लगे हैं। जोधपुर शहर के प्रमुख सोजती गेट व स्टेशन रोड के अलावा शहर के भीतरी बाज़ारों में भी इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की कई नामी-गिरामी दुकानें हैं, जिनके शो-रूम में विभिन्न प्रकार के आकर्षक स्मृति चिन्ह देखे जा सकते है। 
मोमेंटो व्यवसाय से जुड़े लगभग 27 साल पुराने जगदीश ठठेरा का विशाल शोरूम शहरी परकोटे के भीतर है, जो कि अपने कारखाने में विभिन्न प्रकार के मोमेंटों का निर्माण करने में महारत रखते हैं। ये मोमेंटो बनाने के लिए ‘एल्यूमीनियम’ की सिल्लियां बाहर से मंगवाते हैं और इन्हें विभिन्न सांचों में गलवाकर ढालते हैं। एल्यूमीनियम के अलावा ब्रास के भी आयटम बनाए जाते हैं। जोधपुर में बनने वाले मोमेंटो में सर्वाधिक लोकप्रिय उम्मेद पैलेस व मेहरानगढ ‘मण्डोर के देवलों’ के डिजाइन हैं। इन तमाम मोमेंटो के डिजाइन अब कम्प्यूटर्स पर तैयार होते है। पहले ये सभी डिजाइन हाथ से बनाए गए सांचों में बनते थे। जोधपुर के मशहूर हैंडीक्रॉफ्ट्स विक्रेता राज हैंडीक्रॉफ्ट्स के यहां भी तरह-तरह के आधुनिक मोमेंटो बनते हैं। 
आज जोधपुर में 40-50 फैक्ट्रियां है, जिनमें मोमेंटों बनाने का कार्य होता है। मैटल के मोमेंटों बनाने के साथ-साथ आजकल फाईबर व प्लास्टिक के मोमेंटो बनने लगे हैं, जिन पर गोल्डन व सिल्वर पॉलिश की जाती है। इन मोमेंटो का निर्माण कैमीकल्स ब्रास शीट, सिल्वर प्लेटिंग लकड़ी से किया जाता है। यह मोमेंटों चार इंच से लेकर तीन फुट तक ऊंचाई के बनते हैं। इन प्रतीक चिन्हों पर नाम और संदेश लिखने का कार्य स्क्रिन प्रिंटिग से होता है। स्मृति चिन्हों की मांग र्स्पोट्स क्लब, मनोरंजन क्लब, व्यवसायिक कंपनियां, बैंक, रेलवे व अन्य सरकारी कार्यालयों के अलावा शैक्षणिक संस्थाओं में सर्वाधिक है। गत 6-7 वर्षों से इस व्यवसाय में बदलाव के साथ-साथ निखार भी आया है। यूं भी जोधपुर जैसे ऐतिहासिक शहर में वर्ष भर देशी-विदेशी सैलानियों की भरमार रहती है, जोकि इन स्मृति चिन्हों को अपने ड्राइंगरूम में सजाकर यहां की याद ताजा करते है। यहां के शो-रूम से फिल्मी हस्तियां, क्रिकेटर व राजनयिक विभिन्न प्रकार के मोमेंटो खरीदने में विशेष रूचि लेते हैं। जोधपुर में बने मोमेंटो की मांग देश के अलावा अब विदेशों में भी बढ़ती जा रही है। (सुमन सागर)

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