संघर्ष के बीच आशा की किरण शांति के दूत श्री श्री रविशंकर
सुबह के 6 बज रहे हैं। दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी जेल तिहाड़ ‘शांति के महासागर’ में बदल गई है। पांच हज़ार कैदी एक कतार में बैठे निरन्तर सांस ले रहे हैं। वर्षों से इकट्ठा किया गया तनाव तथा पीड़ा जैसे सांसों के साथ पिघल रही है। यह 2013 का दृश्य है जब ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ का एक विशेष कार्यक्रम जेल की दीवारों की भीतर चल रहा था।
इनमें एक कैदी बताता है कि ‘मैं कक्षा 12 में था जब जेल में आने के बाद मेरे माता-पिता की मौत हो गई। तनाव इतना अधिक था कि जीवन खत्म करने के विचार आने लगे, परन्तु कार्यक्रम के बाद मन हल्का हो गया। अब मैं अच्छा महसूस करता हूं और रिहाई के बाद नई शुरुआत की आशा रखता हूं।’
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर कहते हैं कि ‘प्रत्येक अपराधी के भीतर एक पीड़ित छिपा होता है, जो मदद की गुहार कर रहा होता है। जब उस पीड़ित को ठीक कर दें, तो अपराधी अपने आप खत्म हो जाता है।’
यही विचारधारा आज विश्व भर में आठ लाख से अधिक कैदियों को नया जीवन दे चुकी है। उन्होंने सीखा है कि मन को कैसे शांत करना है, भावनाओं को कैसे साधना है और आतंरिक आज़ादी का अनुभव कैसे करना है।
गुरुदेव अक्सर कहते हैं कि ‘मेरे पास एक पागलपन से भरा सपना है—हिंसा रहित दुनिया। यह सुनने में काल्पनिक लग सकता है, परन्तु सपने देखना ज़रूरी है और हम वहां अवश्य पहुंचेंगे।’ यही सपना उन्हें बार-बार संघर्ष की आग में जल रहे समाज तक ले गया, जहां उन्होंने बंद दिलों को पुन: खोलने का कार्य किया।
2017 में बैंग्लुरू में प़ैगाम-ए-मोहब्बत का आयोजन हुआ। यहां आतंकवादियों के परिवार, गोलीबारी में मारे गए लोगों के परिवार तथा शहीद सिपाहियों के परिवार पहली बार एक मंच पर आए। यह वह पल था जब दुख ने सीमाएं लांघ लीं और संवाद के लिए जगह बनाई। अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी तक ने माना कि लोग गुरुदेव पर इसलिए भरोसा करते हैं क्योंकि उनके पास कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं, अपितु मानवीय मूल्य हैं।
अयोध्या राम मंदिर विवाद के समाधान में भी गुरुदेव की भूमिका निर्णायक रही। कई वर्षों तक उन्होंने चुपचाप, धैर्य तथा समावेश से सब पक्षों से संवाद किया। हिन्दुओं के लिए राम मंदिर की आस्था तथा मुसलमानों की संवेदनशीनलता दोनों का सम्मान करते हुए उन्होंने पुल बनाया और ऐसा मार्ग निकाला जिससे आपसी विश्वास बना।
भारत के उत्तर-पूर्व में भी उन्होंने धैर्य का रंग बिखेरा। 2015 में 67 आतंकी संगठनों ने गुवाहाटी घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करके शांति का संकल्प लिया। इससे पहले 2014 में 700 उग्रवादियों ने गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के समक्ष हथियार डाल कर ‘आर्ट आफ लिविंग’ सैंटर में एक माह के पुनर्वास कैम्प में भाग लिया। उनमें से एक ‘आर.डेका’ जो उल्फा का जिला प्रमुख रह चुका था, ने स्वीकार किया, ‘पहले कई बार गिरफ्तार हुआ। फिर भी पुन: हिंसा में चला जाता था, परन्तु इस बार जब प्रशिक्षण पूरा हुआ तो मैं रोता ही रहा। तब समझा कि जीवन का वास्तविक अर्थ क्या है। काश, यह प्रशिक्षण मुझे पहले मिला होता।’
भारत से बाहर कोलम्बिया में गुरुदेव की मध्यस्थता विशेष तौर पर ऐतिहासिक रही। 53 वर्ष लम्बे गृह युद्ध ने दो लाख से अधिक जानें ले ली थीं। सरकार तथा एफएआरसी बगावती गहन अविश्वास में फंसे हुए थे। संवाद असंभव लग रहा था, परन्तु गुरुदेव ने उन्हें भी पीड़ित की नज़र से देखा और करुणा से छूआ। परिणाम यह हुआ कि एफएआरसी ने एक-पक्षीय युद्धविराम की घोषणा कर दी, जिसने 2016 की ऐतिहासिक शांति संधि का रास्ता खोला, जिसे बाद में पूर्व राष्ट्रपति जुआन मैनुएल सैंटोस ने एक महत्वपूर्ण सफलता के रूप में माना।
युद्ध की भयावहता भोग रहे यूक्रेन में भी गुरुदेव की करुणा पुहंची। 2022 से आर्ट ऑफ लिविंग के सेवादार वहां सैनिकों तथा विस्थापित नागरिकों के लिए ट्रोमा-राहत कैम्प लगा रहे हैं।
यूक्रेनी सेना के साथ काम कर रही नतालिया कहती है कि ‘आर्ट आफ लिविंग की तकनीकें सैनिकों की मानसिक दृढ़ता तथा युद्ध के तनाव के सहन करने का सामर्थ्य बढ़ाती हैं। हमने देखा है कि इन तकनीकों से अभ्यास करने वाले सैनिक गम्भीर हालातों में भी अधिक समय तक जीते हैं।’
उन्होंने एक सैनिक की कहानी साझा की, जो ज़मीन पर गिर गया था, परन्तु एक साधारण श्वास-प्रक्रिया को याद करके उसने अपनी जान बचा ली।
इन सब अनुभवों में गुरुदेव की भूमिका एक जैसी रही है—दुश्मनों या पीड़ितों के बीच बैठना, उन्हें ऐसे साधन देना जो आंतरिक बदलाव लाएं, तथा परिणाम असमान होने पर भी जुड़े रहें। चाहे आत्म-समर्पित उग्रवादी हो, जो अब बिना नींद की गोलियों के सो जाता है, जेल में शांति प्राप्त करके साफ सोचने वाला कैदी हो, या डरा हुए शरणार्थी बच्चा, जो पुन: गहन सांस ले पाता है—ये सब अदृश्य पड़ाव हैं जिन्होंने शांति तथा राहत की लहरें चलाई हैं।
—आर्ट ऑफ लिविंग