रिश्तों की अहमियत

कहानी-पुष्पेश कुमार पुष्प
(क्रम जोड़ने के लिए पिछला ‘तुरविवारीय अंक देखें)
तुम्हारा किससे क्या संबंध है? मैं जानना नहीं चाहता। मैं तुमसे कुछ कहने आया हूं।’ वह बोला। 
‘क्या कहना चाहते हो?’ हेली बोली। 
‘मैं आज़ाद ख्यालों का इंसान हूं और मैं इन वैवाहिक बंधनों में विश्वास नहीं करता। एक पत्नीव्रता बनकर नहीं रह सकता। मैं बंदिशों में जीना पसंद नहीं करता। ये बंदिशें जीवन को नर्क बना देती है। तुम भी जीवन का आनंद उठाओ और मौज-मस्ती करो। मुझे कोई आपत्ति नहीं, लेकिन मुझे इन बंधनों से मुक्त करो। मैं तुम्हारे साथ जीवन नहीं बिता सकता।’ अजय मुस्कुराकर बोला। 
उसकी बातें सुनते ही हेली पत्थर की बुत बन गयी। फिर नितांत उदास स्वर में बोली-‘जब तुम उन्मुक्त जीवन जीना चाहते थे, तो मेरे साथ शादी क्यों की? क्या इसलिए हम शादी के बंधन में बंधे थे कि एक दिन हम दोनों अलग हो जाएंगे। यदि मैं जानती कि तुम्हारी ज़िंदगी में मेरी जैसी कई लड़कियां है तो मैं तुमसे शादी नहीं करती। तुमने शादी जैसे पवित्र रिश्ते को गुड्डे-गुड़ियां का खेल समझ रखे हो कि जब मन किया विवाह कर लिया और जब मन भर गया तो उसका परित्याग कर दिया। तुम्हारे लिए यह रिश्ता मजाक ज़रूर होगा लेकिन मैं इन बंधनों से मुक्त नहीं हो सकती। जिस घर में लड़की की डोली उतरती है, वही से उसकी अर्थी भी निकलती है। एक बार इस नन्हीं सी बच्ची के बारे में सोचो। जब वह अपने पिता के बारे पूछेगी तो मैं क्या जवाब दूंगी?’
‘मेरे लिए रिश्तों की मर्यादा कोई मायने नहीं रखती। मैं इन बेकार की बातों में विश्वास नहीं करता। आज जमाना कहां से कहां चला गया और तुम वही की वही रह गयी। तुम भी खुश रहो और दूसरों को भी खुश रहने दो।’ वह ठहाके मारकर बोला। 
‘आधुनिक परिवेश में जीने का यह अर्थ नहीं कि हम अपनी सभ्यता-संस्कृति को भूल जाए। भारतीय नारी अपने पति के प्रति समर्पित होती है। पति उसे माने या न माने लेकिन वह उसके नाम के ही सिंदूर अपनी मांग में भरती है। भले ही वह किसी और की बांहों में झूले, लेकिन वह पति पत्नी की नज़रों में उसका भगवान होता है। उसमें ही उसकी दुनिया समाहित होती है।’ हेली डबडबायी आंखों से बोली। 
हेली की बातों का अजय पर कोई असर नहीं हुआ और वह इन बंधनों से मुक्त हो चला गया। हेली बेबस निगाहों से देखती रह गयी। वर्षों हो गये अजय वापस लौटकर नहीं आया। कई बार रश्मि अपने पिता के बारे में जानने की कोशिश की। हेली हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देती। आखिर कब तक इस सच को हेली अपने सीने में दबाये रखेगी? एक न एक दिन इस सच पर से पर्दा उठ ही जायेगा, तब रश्मि पर क्या गुजरेगी? इन 17 वर्षों में उसने क्या कुछ नहीं सहा? हर मुसीबत का डटकर मुकाबला किया। हर पल टूटती-बिखरती हेली अपने हौसले को टूटने नहीं दी। इस अकेलापन को दूर करने के लिए ही वह रश्मि के साथ बच्ची बन जाया करती थी। वह संबंध के वास्तविक अर्थ को समझ गयी थी। किसी से अपेक्षा रखना ही इंसान के दुख का मूल कारण है और उसने कभी किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखी। वह विवाहित होकर भी अविवाहित की ज़िंदगी जीती रही। 
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। उसका ध्यान भंग हुआ। हेली को लगा कि रश्मि आ गयी। वह फौरन दरवाजे की ओर भागी। दरवाजा खोलते ही वह दंग रह गयी। सामने वही व्यक्ति खड़ा था, जो पेड़ के नीचे बैठा उसे निहारता रहता था। 
हेली उसे एकटक देखने लगी और सोचने लगी- ‘यह कौन है जो पहले पेड़ के नीचे बैठा उसे देखा करता था और आज यह दरवाजे पर दस्तक देने आ गया।’ ‘मुझे पहचाना नहीं, हेली।’ वह उसका ध्यान भंग करते हुए बोला।  उसके मुंह से अपना नाम सुनकर वह अवाक रह गयी और बोली- ‘नहीं।’
‘मैं तुम्हारा अभागा पति अजय हूं। तुमने ठीक कहा था, पति-पत्नी का रिश्ता अटूट होता है। जीवन का वास्तविक आनंद परिवार के बीच ही मिलता है। पति-पत्नी से बढ़कर इस संसार में कोई और अटूट रिश्ता नहीं हो सकता। बाकी सारे रिश्ते तो पैसों की चकाचौंध समाप्त होते ही रेत के महल की तरह भरभरा कर ढह जाते हैं। मेरे साथ भी तो यही हुआ। जब तक मेरे पास पैसे रहे, मेरे जीवन में प्यार रहा लेकिन पैसे खत्म होते ही चूसे हुए आम की गुठली की तरह फुटपाथ पर फेंक दिया। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं। तुमसे माफी मांगने लायक भी नहीं हूं।’
उसकी ऐसी दशा देखकर हेली की आंखों में आंसू आ गये। उसके हृदय में दया -करूणा का भाव उमड़ आया लेकिन अगले ही पल वह सोचने लगी- ‘इस पर मैं दया क्यों दिखाऊं? इसने इन 17 वर्षों में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यह पत्थर दिल इंसान है। दया का पात्र नहीं है।’
वह अपने हृदय को कठोर कर बोली- ‘अब यहां क्या करने आये हो?’
‘मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं। मुझे जो सजा देना चाहो दे सकती हो, लेकिन एक बार मुझे मेरी बेटी से मिला दो। मैं तुम्हारे जीवन से दूर चला जाऊंगा। यह भी नहीं बताऊंगा कि मैं उसका पिता हूं।’ वह आंसू बहाते हुए बोला।  ‘आज तुम्हें बेटी की याद आ रही है। उस समय मैं उसकी दुहाई देती रही। तुम पत्थर दिल इंसान बने एक झटके में चले गये। कभी देखने भी आये कि वह मर रही है या जी रही है। नहीं, क्योंकि तुम तो जीवन का आनंद उठा रहे थे। अब हमारा तुमसे कोई रिश्ता नहीं। तुम यहां से चले जाओ। फिर कभी अपनी शक्ल दिखाने यहां मत आना।’ इतना कहकर हेली मुंह ढांपकर रोने लगी। 
हेली की बातों को सुनकर वह वापस जाने के लिए मुड़ा ही था कि दरवाजे पर खड़ी रश्मि उन दोनों की बातें सुन लीं और आंसू बहाते हुए बोली- ‘ठहरिये, पिता जी! आप कहां जा रहे हैं? अब तो हमें छोड़कर मत जाइये। आपने गलती की और आपको अपनी गलती का एहसास हो गया। सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते। मां ने आपको ज़रूर कटु वचन कहे, लेकिन सच तो यह है कि वह आज भी आपको उतना ही प्यार करती है, जितना पहले। आइये हम सब बीती बातों को भुलाकर एक नयी ज़िंदगी की शुरूआत करें।’ इतना कह वह अपने पिता से लिपट कर बोली- ‘अब आपको कहीं नहीं जाने दूंगी।’ हेली इस सुखद मिलन को देखकर भाव-विभोर हो गयी। वही अजय अपने किये गुनाह के बोझ से दबा जा रहा था। उसे रिश्तों की अहमियत समझ में आ गयी थी। (समाप्त)

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