राजा की शर्त
सारंगढ़ में राजा जयसिंह का शासन था। प्रजा बहुत सुखी थी। राजा प्रजा को संतान की तरह प्यार करते थे। तारा उसकी इकलौती बेटी थी। वह रूप-गुण में अद्वितीय थी। बड़ी हुई तो जयसिंह को यही चिंता थी कि बेटी का विवाह योग्य वर से होना चाहिए। तारा के रूप-गुण की चर्चा दूर-दूर तक थी। अनेक राजा और वीर सामंत उससे विवाह करना चाहते थे। समस्या यही थी कि किसका प्रस्ताव स्वीकार किया जाए। जयसिंह ने अपनी उलझन मंत्री को बताई। मंत्री ने सुझाया ‘राजन, क्यों न हम राजकुमारी तारा का स्वयंवर रचाएं। उसमें केवल राजकुमारों को ही बुलाएं। तारा के लिए योग्य वर का चुनाव हो जाएगा।’
राजा जयसिंह को मंत्री का सुझाव पसंद आ गया। तुरंत दूर-दूर तक के राज्यों में स्वयंवर की सूचना भेज दी गई। शर्त यह थी कि स्वयंवर में भाग लेने वाला राजकुमार हो।
निश्चित दिन सारंगढ़ में अनेक राजकुमार आ गए। राजा जयसिंह की ओर से उनका स्वागत किया गया। उन्हें महल के बगीचे में ले जाया गया। वहां तारा सहित राजपरिवार पहले ही उपस्थित था। राजा जयसिंह सभी राजकुमारों को ले एक ऐसे स्थान पर आए, जहां आकाश में असंख्य चीलें उड़ रही थीं। उन चीलों को दिखाकर बोले-इन में भूरे रंग की एक चील है। जो उसे जीवित पकड़कर राजकुमारी तारा के पास लाएगा, वही उसका पति होगा। स्वयंवर की इस विचित्र शर्त को सुनकर वहां उपस्थित सभी राजकुमारों के चेहरे उतर गए। वे तो वहां अपनी वीरता दिखाने के लिए अनेक अस्त्र शस्त्रों से सज्जित होकर आए थे। जयसिंह के पड़ोसी राजा का बेटा कमलदेव विवाह की इच्छा लेकर स्वयंवर में आया था। वह भी जयसिंह की शर्त पूरी नहीं कर सका पर कमलदेव ने कह दिया-मैं राजकुमारी तारा से विवाह करके रहूंगा। देखता हूं, मुझे कौन रोकता है। धमकी देकर कमलदेव चला गया।
जिस दिन कमलदेव धमकी देकर गया, राजकुमार नरेश भूरे रंग की चील को जीवित पकड़ने के लिए आ पहुंचा। वह रामगढ़ के राजा का बेटा था।
‘तुम चील को कैसे पकड़ोगे’ जयसिंह ने पूछा।
शक्ति, विश्वास और चतुराई से। राजकुमार नरेश बोला-आप मुझे एक चूहा, छोटी-सी एक डोरी और कुछ चिकनी मिट्टी मंगवा दीजिए।
सभी हैरान थे कि यह इन बेकार की चीजों से सैंकड़ों चीलों में से भूरी चील को कैसे पकड़ पाएगा? राजा जयसिंह चकित थे। उन्होंने ये चीजें मंगवा दी।
राजकुमार नरेश ने डोरी का एक सिरा चूहे के पैर में बांध कर दूसरा सिरा मैदान में गड़े खूंटे से बांध दिया। चिकनी मिट्टी को गूंथकर चिपचिपा गोला बना लिया। फिर दूर जा खड़ा हुआ। चूहे को देख, आकाश में उड़ती चीलें उस पर झपट्टा मारने लगीं किन्तु खूंटे से बंधे होने के कारण उसे ले जा न सकीं। होते-होते भूरी चील भी नीचे उतरी। जैसे ही उसने चूहे पर झपट्टा मारा, राजकुमार नरेश ने निशाना बांधकर चिकनी मिट्टी का गोला उस पर फेंका। निशाना अचूक था। गोला सीधा जाकर भूरी चील की पीठ पर गिरा। गिरते ही उसके दोनों पंख लिसलिसी चिकनी मिट्टी से चिपक गए। वह उड़ नहीं सकी। धरती पर गिरी कि राजकुमार ने उसे पकड़ लिया। फिर राजकुमारी तारा के पास ले गया। कुछ दिन बाद राजकुमारी तारा के साथ नरेश का धूमधाम से विवाह सम्पन्न हो गया। नरेश तारा के साथ रामगढ़ चला गया।एक दिन नरेश शिकार पर गया, तो उसने तारा को भी साथ ले लिया। जंगल में शिविर लग गया। उधर यह समाचार कमलदेव को भी मिल चुका था। उसने लालच देकर रामगढ़ के सेनापति को मिला लिया।
जंगल के बीचोंबीच एक विशाल झील थी। चांदनी रात में उनका नौका विहार का कार्यक्रम था लेकिन जंगल को चारों ओर कमलदेव के सैनिकों ने घेर लिया था।
नरेश और तारा झील के तट पर पहुंचे। तारा नौका में जा बैठी। तभी हो हल्ला सुनकर नरेश ने मुड़कर देखा। कमलदेव के सैनिक नंगी तलवारें लेकर निकल आए थे।
गड़बड़ी देखकर, मल्लाह नौका को तट से दूर हटा ले गया। नरेश घायल होकर पानी में गिर पड़ा।
तभी मल्लाह नौका से कूद पड़ा। तैरता हुआ थोड़ा आगे किनारे पर जा लगा। फिर तेजी से नगर की ओर भाग गया।
तारा अनिष्ट की आशंका से कांप उठी। तभी कमलदेव नाव में बैठकर तारा की ओर चल दिया।
तारा ने झटपट निश्चय किया। वह पानी में कूद पड़ी लेकिन इस अन्याय और अनर्थ को वन देवता ने ठीक नहीं समझा। उन्होंने पत्ते तोड़े और पानी में डाल दिए। पानी पर पत्तों की चादर-सी बिह गई। पत्तों की चादर ने डूबती तारा को ऊपर ही रोक लिया। डूबने से बचा लिया।
कमलदेव की नौका तब तक तारा के निकट पहुंच चुकी थी। जैसे ही उसने हाथ बढ़ाकर तारा को पकड़ना चाहा, उसकी नौका उलट गई। वह पानी में डूब गया।
वन देवता की पत्तों की चादर ने धीरे-धीरे तारा को किनारे तक पहुंचा दिया। घायल पड़े नरेश को भी होश आ गया।
तब तक स्वामीभक्त मंत्री सैनिकों को लेकर वहां आ गया था। सैनिकों ने देशद्रोही सेनापति और कमलदेव के अनेक साथियों को मार गिराया। बाकी पकड़े गए।
नरेश तारा के साथ राजधानी लौट आया। दोनों एक दूसरे से एक ही बात पूछ रहे थे कि तुम्हारी प्राण रक्षा कैसे हुई?
वन देवता ने बचाया। बेहोशी की हालत में मैंने वन देवता को मुस्कुराते देखा था।
और मुझे भी वन देवता दिखाई दिए थे-नरेश ने कहा। दोनों ने अदृश्य वन देवता को नमस्कार किया और प्रसन्न मन से राजधानी लौट आए। (उर्वशी)



